धन के अधिकतमीकरण की अवधारणा एवं उद्देश्य ( Concept and purpose of maximization of wealth )
धन के अधिकतमीकरण की अवधारणा वित्तीय प्रबंध का एक आधुनिक दृष्टिकोण है।
धन के अधिकतमीकरण की अवधारणा से पूर्व लाभों का अधिकतमीकरण व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य माना जाता था परंतु यह अवधारणा अधिक विस्तृत एवं व्यापक रूप से व्यवसाय के लक्ष्यों पर अपना ध्यान केंद्रित करती है।
धन से अभिप्राय व्यवसाय के मूल्य से है दूसरे अर्थ में व्यवसाय में लगी अंश धारकों की अंश पूंजी के बाजार मूल्य से लगाया जाता है।
धन के अधिकतमीकरण से अभिप्राय अंश धारकों के धन को अधिकतम करने से होता है।अंश धारकों के धन का अधिकतमीकरण कंपनी के शुद्ध मूल्य पर निर्भर करता है। एक कंपनी का शुद्ध मूल्य जितना अधिक होता है उसके अंशों का बाजार मूल्य उतना ही अधिक होता है एवं अंशों का अधिकतम बाजार मूल्य ही अंश धारकों के धन को अधिकतम करता है। इसलिए कई बार धन के अधिकतमीकरण को शुद्ध मूल्य का अधिकतमीकरण भी कहा जाता है।
धन अधिकतमीकरण के सिद्धांत ( Principles of Wealth Measurement )
धन अधिकतमीकरण के सिद्धांत को निम्न कारणों से लाभ के अधिकतमीकरण सिद्धांत से श्रेष्ठ माना जाता है-
1. यह सिद्धांत लाभों पर आधारित ना होकर भावी रोकड़ अंतर्वाही पर आधारित है। रोकड़ अंतर्वाह गणना की दृष्टि से लाभों से अधिक व्यापक एवं स्पष्ट अर्थ रखते हैं।
2. लाभों के अधिकतमीकरण की अवधारणा धन के अधिकतमीकरण की तुलना में अल्पकालीन अवधि पर आधारित है जबकि धन का अधिकतमीकरण दीर्घकालीन परिदृश्य पर आधारित है एवं संपूर्ण रोकड़ अंतर्वाहों की वर्तमान लागत से तुलना करता है।
3. धन का अधिकतमीकरण की अवधारणा रुपए के वर्तमान मूल्य का ध्यान रखती है।
4. धन के अधिकतमीकरण के अंतर्गत जोखिम एवं अनिश्चितता के संबंध में भी बट्टे की दर में प्रावधान किया जाकर वर्तमान मूल्य ज्ञात किए जा सकते हैं।
धन के अधिकतमीकरण के उद्देश्य ( The purpose of maximizing wealth )
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