मोंटेग्यू घोषणा 1917 & मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार ( Montagu announcement 1917 & Montague Chelmsford Reforms 1919)

(Montagu announcement 1917 & Montague Chelmsford Reforms 1919)


मोंटेग्यू घोषणा 1917

  • मोंटेग्यू भारत के नए सचिव थे जिन्होंने अपने कार्यभार संभालने के 5 सप्ताह के अंदर ही एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी इस घोषणा को मोंटेग्यू घोषणा कहा गया

  •  भारतीय सचिव मोंटेग्यू ने 20 अगस्त 1917 को ब्रिटीश की कॉमन सभा में अंग्रेजी सरकार के उद्देश्य पर एक घोषणा की थी

  • इस घोषणा का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करना था

  • इस घोषणा में मोंटेग्यू ने कहा कि ब्रिटीश सरकार की नीति जिससे भारत सरकार भी पूर्णतः सहमत है यह थी कि भारतीय शासन के प्रत्येक विभाग में भारतीयों का संपर्क उत्तरोतर बड़े और स्वशासी शासनिक संस्थाओं का धीरे-धीरे विकास हो जिससे अधिकाधिक प्रगति करते हुए उत्तरदायी प्रणाली भारत में स्थापित हो जाए और यह अंग्रेजी साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में आगे बढ़े उन्होंने निश्चय कर लिया है कि इस दिशा में एक महत्वपूर्ण चरण शीघ्रातिशीघ्र लिया जाए में इस विषय में यह बता दूं कि यह प्रगति क्रमबद्ध चरणों में ही संभव है ब्रिटिश सरकार और भारत सरकार जिन पर भारत के लोगों की भलाई और अग्रसरण का उत्तरदायित्व है वे ही समय तथा प्रत्येक उन्नति की मात्रा को निश्चित करेंगे और वह उन लोगों के सहयोग पर निर्भर होगा जिनको अब सेवा के अवसर मिलेंगे अथवा जिस सीमा तक के विश्वास को जो उसकी उत्तरदायित्व की चेतना पर किया जा सकता है,निभाएगे

  • मोंटफोर्ट रिपोर्ट के प्रवर्तकों ने इस घोषणा को भारत के रंग-बिरंगे इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घोषणा की संज्ञा दी है इससे एक युग का अंत हुआ और एक नवीन युग का प्रारंभ हुआ माना गया ऐसा मानना उदारवाद के दर्शन में विश्वास की घोषणा थी यह इस भावना पर निर्भर था की स्वतंत्रता ही मनुष्य को स्वतंत्रता के उपयुक्त बनाती है इस घोषणा ने कुछ समय के लिए भारत में तनाव पूर्ण वातावरण को शांत बना दिया पहली बार उत्तरदायी शासन शब्दों का प्रयोग किया गया

  • लेकिन भारत में एक ऐसा वर्ग भी था जो इस घोषणा से संतुष्ट नहीं था

  • उन्होंने कहा कि भारत के उद्देश्य की पूर्ति के लिए समय निश्चित नहीं किया गया है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि कैसे पता लगेगा सुधारो के  नए चरण के लिए समय आ गया है

  • निश्चय ही यह भारतीय लोगों का तिरस्कार है कि अंग्रेजी ही निर्णय करेंगे कि भारत को क्या और कब मिलना चाहिए भारत सचिव स्यवं नवंबर 1917 में भारत आए और उन्होंने लार्ड चेम्सफोर्ड कुछ प्रतिष्ठित असैनिक अधिकारियों और भारत के सभी विचारों के नेताओं से बातचीत की उन्होंने एक समिति का गठन किया जिसमें वह सदस्य मौजूद थे जिसके उत्तर में अगस्त घोषणा की गई थी इन सदस्यों में विलयम ड्युक भूपेंद्र नाथ बसु और अंग्रेजी संसद के सदस्य चार्ल्स राबर्ट सम्मिलित है इस समिति ने वॉ़स राय के साथ मिलकर मोंटेग्यू महोदय को सुधारों का मसौदा तैयार करने में सहायता दी थी यह योजना 8जुलाई 1918 में प्रकाशित की गई और इस को आधार मानकर 1919 का भारत सरकार अधिनियम बनाया गया

  • कांग्रेस ने इसे असंतोषजनक और निराशा पूर्ण माना बाल गंगाधर तिलक ने मोंटेग्यू घोषणा को सूर्यवीर उषा काल की संज्ञा दी थी लेकिन नरमपंथी नेताओं ने सुबह ना सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में 17 अगस्त 1918 को एक सभा करके इस रिपोर्ट का स्वागत किया और कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रीय उदारवादी संघ नेशनल लिबरल लीग का गठन किया जो बाद में अखिल भारतीय उदारवादी संघ के रूप में प्रसिद्ध हुआ कांग्रेस के उदारवादी ने मोंटेग्यू घोषणा को भारत का मैग्नाकार्टा कहा इस प्रकार कांग्रेस का दूसरा विभाजन हो गया


मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार 1919

  • बी०आर०टोमलिंसन के अनुसार 1919 के अधिनियम का प्रयत्न यह था कि किस प्रकार से एक प्रभावशाली वर्ग को कम से कम 10 वर्ष के लिए ब्रिटिश राज का समर्थक बना लिया जाए

  • इस अधिनियम के पारित होने का कारण मिंटो मार्ले सुधार अधिनियम के कारण हुई है

  • क्योंकि  मिंटो मार्ले सुधार भारत में संसदीय व्यवस्था लागू करने की भावना से पारित नहीं किया गया था बल्कि नौकरशाही की स्थिति अधिक सुदृढ हो जाए और मुसलमान और सयंत मार्गी लोग इनके साथ मिल जाए इसलिए पारित किया गया था

  • इस कथन की पुष्टि लार्ड मारर्ले के उस वक्तव्य से स्पष्ट होता है जो उन्होंने 23 फरवरी 1990 लार्डज सभा में दिया था

  • उन्होंने कहा था इस प्रकार की योजना में हमें तीन प्रकार के लोगों से निपटना है 1एक है अतिवादी जो स्वेचेछा से योजनाएं बनाते हैं और एक दिन हमें भारत से निकालने की सोचते हैं 2दूसरे प्रकार के ऐसे व्यक्ति जो यह नहीं सोचते हैं लेकिन स्वायत्तता पूर्ण उपनिवेशवादी सरकार की स्थापना चाहते हैं तीसरा वर्ग ऐसा है जो केवल हमारे प्रशासन में सहयोग देना चाहता है ताकि अपनी लोगों की आवश्यक्ताओं का प्रतिनिधित्व कर सकें मैं आशा करता हूं कि इन सुधारों का परिणाम हुआ है और होगा कि हम दूसरे वर्ग के लोगों को जो उपनिवेशीय स्वायत्तता चाहते हैं तीसरे वर्ग के लोगों की परिधि में ले आए जो केवल एक संतोषजनक तथा पूर्ण सहयोग देना चाहते हैं वास्तव में इन सुधारों से कोई भी वर्ग प्रसन्न नहीं हुआ था

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिसने इसके वामपंथी लोग नहीं थे वह इस बात पर अप्रसन्न थी कि एक विशेष धर्म के लोगों को अपनी संख्या से अधिक प्रतिनिधि  दे दिया गया था मुस्लिम और गैर मुस्लिम चुनाव मंडलों में मताधिकार और उम्मीदवारों की योग्यता में एक बहुत ही लज्जाजनक और द्वेषपूर्ण भेदभाव बरता गया था परिषदों के लिए उम्मीदवारों पर मनमानी और अनुचित योग्यताएं और प्रतिबंध लगा दिए गए थे शिक्षित वर्ग के प्रति साधारण विश्वास था प्रांतीय परिषदों की अशासकीय  बहुसंख्यक परंतु असंतोषजनक रचना और उनका एक प्रकार से निरर्थक होना


इन सभी कारणों से मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम की आवश्यकता हुई मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार 1919 मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार 1919 को भारत शासन अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है इसके अंतर्गत प्रांतीय विधायी परिषदों का आकार बढ़ा दिया गया यह निश्चय किया गया कि उन के अधिकांश सदस्य चुनाव जीतकर आएंगे
प्रांतों में पहली बार द्वैध शासन लागू किया गया इस द्वैध शासन का जन्मदाता लाओनिश कर्टिश था इसके अंतर्गत प्रांतीय विषयो को आरक्षित एवं हस्तांतरित दो भागों में बांट दिया गया था आरक्षित विषयों में अत्यंत महत्वपूर्ण विषय जैसे वित्त, कानून व्यवस्था, अकाल आदि रखे गए थे इसका प्रशासन गवर्नर और उसकी एग्जिक्यूटिव काउंसलिंग के जिम्मे रखा गया था हस्तांतरित विषयो मे कम महत्वपूर्ण विषयों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य ,स्थानीय स्वशासन आदि रखे गए थे उसका प्रशासन गवर्नर जनरल अपने मंत्रियों की सहायता से करता था केंद्र में भी द्विसदनीय व्यवस्था की गई निचले सदन अर्थात लेजिस्लेटिव असेंबली में 144सदस्यो मे से 41सदस्य  नामजद होते थे ऊपरी सदन अर्थात काउंसिल ऑफ स्टेटस में 26 नामजद सदस्य और 34 चुने हुए सदस्य होते थे गवर्नर जनरल और उसकी काउंसिल पर विधानमंडल का कोई नियंत्रण नहीं था दूसरी और केंद्र सरकार का प्रांतीय सरकारों पर नियंत्रण तथा इनका वोट का अधिकार भी बहुत सीमित था

 कुछ आंतरिक और बाह्या कारणों से मुसलमानों में भी असंतोष बड़ा इसका प्रमाण मुस्लिम लीग के संविधान के संशोधन में मिलता है
मार्च 1913 में इसका उद्देश्य यह निश्चित किया गया था कि भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति राजभक्ति को बढ़ाना बिना ऊपर लिखे हुए उद्देश्य को हानि पहुंचाए मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करना और भारत में स्वशासन को प्राप्त करना था मुसलमानों और अंग्रेजी सरकार के बीच अलीगढ़ में मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित करने की शर्त तय नहीं हो सकी और 1911 में बंगाल के विभाजन के रद्द होने पर मुसलमान अंग्रेजों से अप्रसन्न थे इसी क्रम में बल कांड युद्धों में भी वह समझते थे कि यह सब इसाई शक्तियों का तुर्की जो इस्लाम की तलवार है के विरुद्ध षड्यंत्र है उसे वह क्रॉस और आज चंद्र के बीच युद्ध मानते थे इस प्रकार मुसलमान और अंग्रेजो के बीच वैमनस्य बढ़ गया और हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के समीप आ गए लखनऊ में हुई एक बहुत बड़ी जनसभा में एक प्रमुख मुस्लिम नेता मजरूल हक ने कहा कि कांग्रेस विरोधी मुसलमान अब समाप्त होता जा रहा है अब यह विरोध पुरातत्व संग्रहालय में ही मिलेगा और इसका परिणाम 1916 को लखनऊ समझौते के तहत कांग्रेस लीग सौहार्द का फल प्राप्त हुआ
मार्ले के शब्दों में अतिवादी शब्द का प्रयोग किया गया था जिसके तहत अंग्रेजो को भारत से बाहर निकालना चाहते थे भारत और विदेश में अपना कार्य क्षेत्र बढ़ाते रहें पंजाब में gadar और बंगाल में कामागाटामारू कांड दिल्ली में हार्डिंग पर बम फेंकना इत्यादि इनके कार्यों के कुछ उदाहरण थे मिंटो मार्ले सुधारों के प्रति भारत में इतना असंतोष बढ़ गया था कि सरकार को इसे दबाने के लिए दमन नीति अपनानी पढ़ी इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने 1910 का भारत समाचार अधिनियम 1911 का विद्रोही सभा एक्ट 1913 का फौजदारी कानून सुधार अधिनियम आदि बनाए थे इसी प्रकार 1915 का भारतीय रक्षा अधिनियम बनाया गया जिसमे क्रांतिकारी अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए एक सुदृढ़ न्यायिक गण की नियुक्ति और जिस में अपील नहीं हो सकती थी और संदिग्ध व्यक्तियों को जेल में बंद करना विशेष रुप से घिनौने कानून थे
अगस्त 1914 में यूरोपीय युद्ध के आरंभ होने का तत्कालीन भारतीय रक्षा पर कोई प्रभाव नहीं हुआ लेकिन फिर भी भारत अंग्रेजी साम्राज्य का भाग होने के कारण युद्ध में शामिल हो गया भारत में न केवल सैनिक बारूद और सामान ही दिए बल्की 10 करोड़ पाउंड के युद्ध का भार भी अपने ऊपर ले लिया
युद्ध चलता गया मित्रों ने युद्ध के समर्थन में नैतिक मूल्य पर बल दिया और आत्म निर्णय का सिद्धांत उभरकर सामने आया भारतीय लोग अत्यधिक प्रभावित हुए यदि युद्ध प्रजातंत्र की रक्षा के लिए है तो भारत कम से कम स्वशासन के मार्ग पर तो चलेगा ही यदि आत्मनिर्णय का सिद्धांत अरबों और तुर्को पर लागू हो सकता है तो भारत पर क्यों नहीं हो सकता ऐसी अवस्था में सुधारों की एक और किस्त आवश्यकता थी इस जन जागृति का एक और प्रमाण यह था कि भारतीयो ने स्वयं भी संवैधानिक सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की और सरकार को उन्हें निरूपण करने को कहा जिन लोगों ने यह भिन्न-भिन्न योजना प्रस्तुत की थी उनमे केंद्रीय विधान मंडल के 19 सदस्य थे जिनमें जिन्नाह,श्री निवास शास्त्री और सुरेंद्र नाथ बनर्जी इत्यादि सम्मिलित थे बनर्जी ने 1916 में प्रस्तुत एक ज्ञापन में कहा था कि जिस बात की आवश्यकता है वह केवल अच्छी सरकार अथवा कुशल शासन भी नहीं बल्कि ऐसी सरकार चाहिए जो उन्हें स्वीकार हो कि वह उनके प्रति उत्तरदायी है

इस अधिनियम के द्वारा भारत में पहली बार लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान रखा गया था
भारतीय विधान मंडल को बजट पास करने के संबंध में पहली बार अधिकार दे दिए गए थे प्रत्येक वर्ष बजट के प्रस्ताव दोनों सदनों में रखे जाते थे 1919 के अधिनियम द्वारा पंजाब में सिखों को और मद्रास में गैर ब्राह्मण को पृथक निर्वाचन मंडल प्रधान करके इसका विस्तार किया गया इस अधिनियम के खंड 5 में अधिनियम के पारित होने के 10 वर्ष बाद शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली की जांच के लिए एक वैधानिक आयोग नियुक्त करने के संबंध में प्रावधान रखा गया इसी प्रावधान के अंतर्गत साइमन आयोग की नियुक्ति की गई थी अगस्त 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रस्ताव पर विचार करने के लिए मुंबई में एक विशेष  सत्र बुलाया था इस सत्र में इन प्रस्तावों को निराशाजनक और असंतोषजनक बताकर इसकी जगह प्रभावी स्वशासन की मांग रखी थी तिलक ने इस अधिनियम को निराशाजनक और असंतोष जनक बताया कांग्रेस ने इस अधिनियम के अंतर्गत नवंबर 1920 में आयोजित चुनाव का बहिष्कार किया था

1919 का भारत सरकार अधिनियम की प्रस्तावना प्रस्तावना मे वें तत्व निर्धारित किए गए थे जिसके अनुसार भारत में सुधार लाए जाने से यह सभी तत्व लगभग वही थे 20अगस्त 1917 की घोषणा में कहे गए थे उनके अनुसार भारत को अंग्रेजी साम्राज्य का अभिन्न अंग रहना था भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना होनी थी जो कि केवल क्रमश: ही आनी संभव थी जिसके लिए भारतीयों का प्रशासन के विभिन्न भागों में साहचर्य बनना चाहिए और धीरे-धीरे स्वायत्त शासन आना चाहिए प्रांतों में स्वायत्त शासन के बढ़ने के साथ साथ ही यह आवश्यक है कि प्रांतों को भारत सरकार के नियंत्रण से जहां तक संभव हो अधिकाधिक मुक्त किया जाए इसका प्रस्तावना का मूल उद्देश्य था कि जो भी घोषणा मोंटेग्यू ने की थी उसे एक वैधानिक रुप दे दिया गया था अंग्रेजी सरकार का भारत पर नियंत्रण स्पष्ट कर दिया गया यह भी स्पष्ट हो गया कि भविष्य में किस दिशा में कैसे जाना है 1919 भारत सरकार अधिनियम की धाराएं ग्रह सरकार में परिवर्तन भारत सरकार में परिवर्तन विधान संबंधी परिवर्तन केंद्रीय विधान मंडल की शक्तियां कार्यकारी क्षेत्र कार्यकारणी क्षेत्र में परिवर्तन

रोलेट एक्ट 1919 भारत में क्रांतिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1917 में सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की गई थी यह कमेटी यह जांच करने के लिए नियुक्त की गई थी कि भारत में किस स्तर तक क्रांतिकारी आंदोलन संबंधी षड्यंत्र फैले हुए हैं उनका मुकाबला करने के लिए किस प्रकार के कानूनों की आवश्यकता है रोलेट एक्ट लागू करने का मुख्य कारण यह था कि भारत रक्षा कानून की अवधि समाप्त होने को थी कमेटी ने 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर केंद्रीय विधान मंडल में फरवरी 1919 में दो विधेयक लाए गए थे जिनमें एक विधेयक को वापस ले लिया गया था लेकिन दूसरे क्रांतिकारी अराजकतावादी अधिनियम को 18 मार्च 1919 को पारित कर दिया गया था इस की अवधि 3 वर्ष रखी गई थी इसे ही रोलेट एक्ट या काला कानून के नाम से जाना जाता है

इस विधेयक में यह व्यवस्था की गई थी कि मजिस्ट्रेट किसी भी संदेहास्पद व्यक्ति को गिरफ्तार करके जेल में डाल सकता था साथ ही उसे अनिश्चित काल के लिए जेल में रख सकता था इस प्रकार अपने एक अधिकार के साथ सरकार किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दंडित कर सकती थी इसको बिना वकील बिना अपील और बिना दलील का कानून भी कहा गया था इसे काला अधिनियम एवं अराजकतावादी अपराध नियम के नाम से भी जाना जाता था गांधीजी का अब तक भारतीय राजनीति में प्रवेश हो चुका था उन्होंने इस एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को एक देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था उन्होंने सत्याग्रह सभा की स्थापना की थी पहले 30 मार्च से यह आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया गया था दिल्ली में 30 मार्च को ही स्वामी श्रद्धानंद ने इस आंदोलन की बागडोर संभाली थी वहां पर भीड़ में चलाई गई गोली से करीब 5 आंदोलनकारी मारे गए थे इसके बाद मुंबई अहमदाबाद और देश के कई अन्य नगरों में सार्वजनिक विरोध और हिंसा का मार्ग अपनाया गया लाहौर पंजाब में भी भीड़ पर गोली चलाई गई स्वामी श्रद्धानंद और डॉक्टर सत्य पाल के नियंत्रण पर महात्मा गांधी पंजाब की ओर चले गए थे लेकिन मार्ग में ही 8 अप्रैल 1919 को उन्हें हरियाणा के पलवल नामक स्थान पर गिरफ्तार कर मुंबई भेज दिया गया था

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