नर्मदा नदी से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

नर्मदा नदी की भौगोलिक स्थिति 

  • उदगम स्थल - Narmada river का उदगम स्थल मध्यप्रदेश के जबलपुर में Amarkantak की पहाड़ियों से।
  • विस्तार क्षेत्र - नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले की अमर कंठक पहाड़ियों से निकलने के बाद में यह महाराष्ट्र और गुजरात में 1312 किलोमीटर की लंबाई में बहते हुए गुजरात में भड़ौच के निकट भ्रंशधारी या दरार घाटी में बहती है।
  • बहाव क्षेत्र- यह विद्यांचल आवाज Satpura range के मध्य बहती है, यह भ्रंश घाटी में बहती हुई जवान आदमी का निर्माण करती है।
  • समुद्र तल से ऊँचाई- 1057 मीटर
  • नर्मदा नदी पर स्थित शहर- ओकारेश्वर, जबलपुर और रायगढ़ इस नदी के किनारे पर स्थित हैं। नर्मदा नदी डेल्टा नहीं बनाती है
  • नदी पर स्थित जलप्रपात- इस नदी पर धुआंधार जलप्रपात जबलपुर, मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • प्रायद्वीपीय नदियों का लम्बाई के घटता क्रम - गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा, महानदी, ताप्ती।

    बांध परियोजना (Dam project) -  गुजरात मे इस नदी पर Sardar Sarovar Dam परियोजना चलाई जा रही है।
  • तवा परियोजना(Tawa project)- नर्मदा की सहायक नदी पर तवा परियोजना चलाई जा रही है जिससे मध्यप्रदेश राज्य लाभ ले रहा है।
  • गिरने का स्थान- Arabian Sea में स्थित खंभात की खाड़ी में गिरती है जिसे गुजरात की जीवन रेखा कहते हैं।
  • विशेष उपलब्धि- ये प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) की सबसे लंबी नदी है।
  • नर्मदा नहर- सरदार सरोवर बांध जो कि गुजरात में है उससे राजस्थान में नर्मदा नहर आती है।

नर्मदा नदी की कहानी

नर्मदा नदी भारत की एक विशाल नदी है जिसके पीछे एक त्याग वाली प्रेम कहानी छिपी हुई है, संपूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां पवित्र नदियों को देवी स्वरूपा माना गया है। इनके उद्गम, प्रकटन और जीवन प्रवाह की रोचक कहानियां हैं। देवी-देवताओं की तरह ही इनके प्रेम, विवाह, विरह और प्रतिशोध की भी गाथाएं हैं। ऐसी ही एक रोचक गाथा है मां नर्मदा की जिन्होंने अपने युवा साथी से प्रेम में धोखा खाने के बाद ऐसा कदम उठाया कि प्रेमी के हिस्से में सदा के लिए पछतावा आया और फिर वह कभी उनका मुंह नहीं देख सका। 

नर्मदा अपने हृदय में विरह की जो पीड़ा लेकर बहीं वह आज भी उनके जल की कल-कल ध्वनि के बीच अपना आभास कराता है। हम सुनाने जा रहे हैं मां नर्मदा के जन्म लेने, उनके युवा होने और प्रेम में विश्वासघात होने पर विरक्त होकर जीने की वह मार्मिक कहानी।

नर्मदा के उद्गम और प्रवाह को लेकर जो कहानियां प्रचलित हैं उनमें उनके निश्छल प्रेम, प्रेमी की बेवफाई और फिर प्रतिशोध स्वरूप आजीवन कुंवारे रहने और फिर कभी प्रेमी का मुंह न देखने के लिए नदी बहकर विपरीत दिशा में बहने का दर्द बयां किया जाता है। कहते हैं नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया हर कथा का अंत कमोबेश यही है कि शोणभद्र के नर्मदा की दासी जुहिला के साथ संबंधों के चलते नर्मदा ने अपना मुंह मोड़ लिया और उलटी दिशा में चल पड़ीं। सत्य और कथ्य का मिलन देखिए कि नर्मदा नदी विपरीत दिशा में ही बहती दिखाई देती है।

राजा मेखल ने तय किया था नर्मदा शोणभद्र का विवाह

नर्मदा के विवाह को लेकर प्रचलित एक कथा के अनुसार नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है। नद यानी नदी का पुरुष रूप। बहरहाल यह कथा बताती है कि राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी। राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ संपन्न करेंगे। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए अत: उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ।

प्रेमी को हुआ भ्रम, दासी ने दिया धोखा नर्मदा

अब तक सोनभद्र के दर्शन न कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी। विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा ना गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची। जुहिला को सुझी ठिठोली। 

उसने राजकुमारी से उसके वस्त्राभूषण मांगे और चल पड़ी राजकुमार से मिलने। सोनभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर बैठा। जुहिला की नियत में भी खोट आ गया। राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा ना सकी। इधर नर्मदा का सब्र का बांध टूटने लगा। दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी सोनभद्र से मिलने। 

वहां पहुंचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण आग में जल उठीं। तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी फिर कभी न लौटने के लिए। सोनभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई।

बरहा गांव के पास नर्मदा ने छोड़ा सोनभद्र और जुहिला का साथ

अब इस कथा का भौगोलिक सत्य देखिए कि जैसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जुहिला (इस नदी को दुषित नदी माना जाता है, पवित्र नदियों में इसे शामिल नहीं किया जाता) का सोनभद्र नद से वाम-पाश्र्व में दशरथ घाट पर संगम होता है और कथा में रूठी राजकुमारी नर्मदा कुंवारी और अकेली उल्टी दिशा में बहती दिखाई देती हैं। रानी और दासी के राजवस्त्र बदलने की कथा इलाहाबाद के पूर्वी भाग में आज भी प्रचलित है।

अमरकंटक की पहाडिय़ों में जवां हुए नर्मदा और सोनभद्र

एक अन्य कथा के अनुसार कई हजारों वर्ष पहले की बात है। नर्मदा जी नदी बनकर जन्मीं। सोनभद्र नद बनकर जन्मा। दोनों के घर पास थे। दोनों अमरकंट की पहाडिय़ों में घुटनों के बल चलते, चिढ़ते-चिढ़ाते, हंसते-रुठते बड़े होने लगे। दोनों किशोर हुए, लगाव और बढऩे लगा। 

यहां की गुफाओं, पहाडिय़ों में ऋषियों, मुनियों व संतों ने डेरे डाले। चारों ओर यज्ञ-पूजन होने लगा। पूरे पर्वत में हवन की पवित्र समिधाओं से वातावरण सुगंधित होने लगा। इसी पावन माहौल में दोनों जवान हुए। उन दोनों ने कसमें खार्इं। जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोडऩे की। एक-दूसरे को धोखा नहीं देने की।

जुहिला ने चुरा लिया नर्मदा का प्यार

एक दिन अचानक रास्ते में सोनभद्र के सामने नर्मदा की सखी जुहिला नदी आ धमकी। सोलह श्रृंगार किए हुए, वन का सौन्दर्य लिए उस नवयौवना ने अपनी अदाओं से सोनभद्र को मोह लिया। सोनभद्र अपनी बाल सखी नर्मदा को भूल गया। जुहिला को भी अपनी सखी के प्यार पर डोरे डालते लाज ना आई। नर्मदा ने बहुत कोशिश की सोनभद्र को समझाने की। लेकिन सोनभद्र तो जैसे जुहिला के लिए बावरा हो गया था।

तब नर्मदा ने दी ऐसी सजा…

नर्मदा ने किसी ऐसे ही असहनीय क्षण में निर्णय लिया कि ऐसे धोखेबाज के साथ से अच्छा है इसे छोड़कर चल देना। कहते हैं तभी से नर्मदा ने अपनी दिशा बदल ली। सोनभद्र और जुहिला ने नर्मदा को जाते देखा। सोनभद्र को दुख हुआ। बचपन की सखी उसे छोड़कर जा रही थी। उसने पुकारा- न...र...म...दा...रुक जाओ, लौट आओ पर नर्मदा उसे अपने दिल से उतार चुकी थीं उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

कल-कल ध्वनि के बीच सुनाई देता है नर्मदा का विलाप

लेकिन नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया। युवावस्था में ही संन्यासिन बन गर्इं। रास्ते में घनघोर पहाडिय़ां आईं। हरे-भरे जंगल आए पर वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं। मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं। कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करुण विलाप सुनाई पड़ता है । 

नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर दौड़ीं। भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गर्इं।

भक्तों के लिए नदी नहीं मां नर्मदा हैं

नर्मदा की कथा जन मानस में कई रूपों में प्रचलित है लेकिन चिरकुंवारी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है। कहने को भौतिक रूप से वह नदी स्वरूप में हैं लेकिन भक्तों के लिए वह साक्षात माँ नर्मदा हैंं। पौराणिक कथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर सम्मिलन उनकी इस भावना को बल प्रदान करता है और इसीलिए वे हृदय से पुकार उठते हैं नमामि देवी नर्मदे.... !

गंगा से भी पवित्र माना गया है नर्मदा को

पवित्र नदियों में शामिल नर्मदा नदी को गंगा की तुलना में कहीं अधिक पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि गंगा भी खुद को पवित्र करने इनकी शरण में आती हंै। मत्स्यपुराण में बताया गया है कि कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगा जल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।

पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं नर्मदा

अब आप कथा का भौगोलिक सत्य देखिए कि सचमुच नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप(indian peninsula)  की दो प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती है यानी पूर्व से पश्चिम की ओर। कहते हैं आज भी नर्मदा एक बिंदू विशेष से शोणभद्र से अलग होती दिखाई पड़ती है। कथा की फलश्रुति यह भी है कि नर्मदा को इसीलिए चिरकुंवारी नदी कहा गया है और ग्रहों के किसी विशेष मेल पर स्वयं गंगा नदी भी यहां स्नान करने आती है। इस नदी को गंगा से भी पवित्र माना गया है।

मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है -कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।

एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान इस तरह है।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु।।

Specially thanks to Post Author - जितेंद्र सिंह


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