Naxalism ( नक्सलवाद )

Naxalism ( नक्सलवाद ) 


 

नक्सलवाद एक विचारात्मक राजनीतिक आर्थिक संघर्ष है। जो शासकों वर्ग को राज सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहता है,जिसके मालिक देश विदेशी पूंजीपति भूस्वामी ठेकेदार दलाल नौकरशाह आदि हैं,जो बहुसंघीय श्रमजीवी वर्ग पर शासन करते हैं। भारत में नक्सलवाद पनपने के लिए असंतुलन और असमानता काफी हद तक जिम्मेदार है। संविधान के भाग 3 और भाग 4 में भी असंतुलन और असमानता को दूर करने का लक्ष्य रखा गया, किंतु 70 वर्ष के बाद भी उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकें। वर्तमान में विकास को व्यवस्था का अंग मानकर अनदेखी की जा रही है। नक्सलवाद के विस्तार का यह भी एक बड़ा कारण है।

नक्सलवाद का प्रारंभ एवं विकास ( Start and development of Naxalism )


नक्सलवाद का प्रारंभ 1967 में चारू मजूमदार के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलवाड़ी गांव से हुआ। नक्सलवाड़ी गांव के नाम पर इसे "नक्सलवाद" कहा जाने लगा।

चारू मजूमदार भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के दार्जिलिंग जिला कमेटी के सदस्य थे। उन्होंने अपनी पार्टी द्वारा आम चुनाव में भाग लेने की नीति का विरोध किया। एक सच्ची क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना का आह्वान करने तथा मुक्त अंचल स्थापित करने का नारा दिया था।

आंदोलन का आरंभिक नेतृत्व कानू सान्याल, चारू मजूमदार और जंगल संथाल ने किया। 1969 में चारू मजूमदार के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवाद लेनिनवादी का गठन हुआ।आंध्रप्रदेश बिहार उड़ीसा उत्तर प्रदेश पंजाब और केरल में भी इसी प्रकार पार्टियों और गुटों की स्थापना हुई। 14 जून 1967 को कोलकाता में एक जनसभा में प्रस्ताव पास कर "नक्सलवाड़ी और कृषक संग्राम सहायक समिति" गठित की गई।

नक्सलवादी आंदोलन के प्रसार साथ उनके अंदर मतभेद भी उत्पन्न हुए। 70 के दशक में चारू मजूमदार की गिरफ्तारी और कैद में मृत्यु के बाद कई गुटों द्वारा नीतिगत परिवर्तन और उतार-चढ़ाव के बाद 2002 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अस्तित्व में आई। भाकपा माले( पीपुल्स वार),मोआवादी कम्युनिस्ट केंद्र और भाकपा-मोले (पार्टी यूनिटी) के विलय से बनी।

अक्टूबर 1969 में कान्हाई चटर्जी ने माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) और 1980 में सीतारभ्मैया ने पीपुल्स वार ग्रुप (पी.डब्ल्यू.जी.) की स्थापना कर नक्सली आंदोलन को मजबूती और विस्तार करने में काफी हद तक मदद की। इस संगठन के पास अत्याधुनिक विध्वंसक अस्त्र-शस्त्र तथा संचार साधन उपलब्ध है।

1972 में चारू मजूमदार की पुलिस हिरासत में मृत्यु और कानू संन्याल तथा लिबरेशन नेताओं द्वारा सशस्त्र संघर्ष को त्यागकर संसदीय रास्ता पकड़ने की घटना ने नक्सली आंदोलन को काफी धक्का पहुंचाया। लेकिन नक्सलवाद संगठन  तब तक परवान चढ़ चुका था।

21 सितंबर 1999 को पी.डब्ल्यू.जी. और एम.सी.सी. के विलय से सी.पी.आई.(माओवादी) का निर्माण हुआ। फलस्वरूप नक्सली संगठनों की ताकत में फिर से बड़ा इजाफा हुआ। सीपीआई को देश में सर्वाधिक सक्रिय नक्सलवादी संगठन के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान में इन नक्सली गुटों ने देश के कुछ राज्यों के क्षेत्रों को मिलाकर एक "रेड कॉरिडोर" का निर्माण कर लिया है।

इन्होंने जम्मू कश्मीर तथा पूर्वोत्तर के कुछ आतंकवादी संगठनों से भी हाथ मिलाना शुरू कर दिया है,जो बेहद ही खतरनाक भविष्य का संकेत है। यहां के नक्सली गुट नेपाल के माओवादी गुट से स्पष्ट रूप से जुड़े हुए हैं। जो भविष्य में देश के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आएंगे।

नक्सलवाद की समस्या के लिए उत्तरदायी कारण ( Reasons for the problem of Naxalism )



  1. सामाजिक न्याय का अभाव

  2. प्रशासनिक तंत्र की उदासीनता

  3. शासन का निरकुंश रवैया

  4. लक्षित समूह की पहचान का अभाव

  5. विचारधारा की भूमिका


नक्सलवादी समस्या के लिए व्यक्ति ही नहीं,अपितु हमारी शासन व्यवस्था भी काफी हद तक जिम्मेदार है,दबाव दहशत पीड़ा एवं रोजगार से वंचित आबादी रहेगी,तब तक असंतोष और अराजकता जैसे आंदोलनों को जन्म देती रहेगी अर्थात् नक्सलवाद सीधे तौर पर सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और काफी हद तक प्रशासनिक शोषण से भी जुड़ा है।

नक्सलवाद का उद्देश्य ऐसे शासन तंत्र की स्थापना करना है, जिसमें मजदूर, कृषक,दबे कुचले वर्ग का प्रभुत्व हो। नक्सलवादियों का मानना है कि वर्तमान में राजसत्ता भ्रष्ट राजनीतिज्ञ, पूंजीपतियों और भूस्वामीयों के हाथ में है और यह सभी मिलकर कृषक मजदूर तथा दबे कुचले समूह पर राज कर रहे हैं।

कहा जाए तो नक्सलवाद उग्रवादी विचारधारा की पृष्ठभूमि पर भले ही आधारित हैं, लेकिन मूल रूप से अलगाववाद या आतंकवाद से काफी हद तक अलग है। यह देश की आर्थिक सामाजिक राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करना चाहते हैं और यही इनका दूरगामी लक्ष्य है।

अगस्त 2010 को एक जनहित याचिका पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति मोहित शाह ने भी कहा था कि "विकास की परियोजनाओं से प्रभावित लोगों की समस्याओं के प्रति सरकार की उपेक्षापूर्ण रवैया के कारण नक्सलियों का जन्म होता है।"

नक्सलवाद की समस्या के समाधान के प्रयास ( Attempts to solve the problem of Naxalism )



  1. आदिवासियों के उत्थान की परियोजनाएं

  2. लक्षित समूह की पहचान करना

  3. रोजगार परियोजनाएं

  4. पुलिस बल का आधुनिकरण

  5. स्थानीय निवासियों का सहयोग


नक्सली गुटों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए 19 सितंबर 2005 को केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल पर 12 नक्सल प्रभावित राज्यों का सम्मेलन दिल्ली में हुआ। इसमें गुटों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटील "अंतरराज्यीय संयुक्त कार्यबल" के निर्माण की घोषणा की।

सितंबर 2008 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नक्सल प्रभावित राज्यों के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में 5 अरब रुपये प्रदान करने की मंजूरी दी। साथ ही आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुनर्वास योजना का लाभ दिया जा रहा है। वंचित के हितों की रक्षा के लिए बेहतर यह होगा कि नक्सली लोकतंत्र की सीमा में रहकर ही कार्य करें।

नक्सलवाद की समस्या के उन्मूलन हेतु 2005 में आम लोगों को हथियार प्रशिक्षण देकर नक्सलवादियों से मुकाबले के लिए शांति मार्च निकाला गया। आंध्र प्रदेश में गुरिल्ला युद्ध अपनाते हुए ऑपरेशन ग्रे हाउंडस् चलाया गया। उड़ीसा में कोबरा का गठन किया गया। इसमें सीआरपीएफ के साथ राज्य पुलिस के जवान भी शामिल किए गए।

हाल ही में नक्सल प्रभावित राज्य में "ऑपरेशन क्लीन हंटस्" शुरू किया गया। भारत सरकार के द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं के रोजगार और कौशल के लिए रोशनी परियोजना 2011-12 में शुरू की गई।

नक्सलवाद पर नियंत्रण के लिए छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम चलाया ( 2005 में शुरू 2011 में खत्म )।

2009 में आईएपी (इंटीग्रेटेड एक्शन प्लान) चलाया गया।

निष्कर्ष ( Conclusion )


कहा जाए तो नक्सलवादियों के कुछ उद्देश्य न्याय पूर्ण हो सकते हैं,लेकिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बर्बरतापूर्ण कृत्य करना उचित नहीं है। हिंसात्मक और विखंडित समाज लेकर हम किसी आदर्श समाज का निर्माण नहीं कर सकते। देश के संविधान में सभी वर्गों एवं सभी के हितों को संरक्षित एवं संवर्धित करने के प्रावधान किए गए हैं।

नक्सली अपनी समस्याओं के समाधान के लिए संवैधानिक और लोकतांत्रिक साधनों की बजाय हिंसा एवं क्रांतिकारी में अधिक विश्वास रखते हैं,जो भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरा है। नक्सलवादियों को यह भी समझना होगा कि सत्ता एवं व्यवस्था से मतभेद के बर्बरतापूर्ण कार्य करना नक्सलवाद के मूल उद्देश्य के विरुद्ध है।

 

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

 दिनेश मीना,झालरा,टोंक 


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