Ombudsman ( लोकायुक्त )

Ombudsman ( लोकायुक्त )




लोकपाल एवं लोकायुक्त का विचार स्वीडन के "OMBUSMAN" संस्थान के आधार पर उत्पन्न हुआ। ओंबड्समैन स्वीडिश भाषा का एक शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ - लोगों का रिप्रजेंटेटिव या एजेंट होता है।

ओंबुड्समैन का अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जिसको कुप्रशासन भ्रष्टाचार कुशलता अपारदर्शिता एवं पद के दुरुपयोग से नागरिकों की रक्षा हेतु नियुक्त किया जावे। ब्रिटेन, डेनमार्क और न्यूजीलैंड में इस संस्था को संसदीय आयुक्त के नाम से पहचाना जाता है, और रूस में इसे वक्ता अथवा प्रॉसिक्यूटर के नाम से जाना जाता है।

भारत में केंद्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त संस्थाओं की स्थापना स्वीडन के ओंबड्समैन के आधार पर ही की गई। भारत में लोकपाल या लोकायुक्त नाम एल. एम. सिंघवी ने दिया था। लोकपाल शब्द संस्कृत भाषा के शब्द लोक (लोगों) और पाला (संरक्षक) से बना है।

स्वीडन पहला देश है,जिसने ओंबुड्समैन संस्था को वर्तमान स्वरुप में 1809 में प्रारंभ किया। इसके बाद फिनलैंड ने 1919 और नार्वे ने 1962 में इस संस्था को प्रारंभ किया। ब्रिटेन ने भी इसकी तर्ज पर 1967 में संसदीय आयोग की नियुक्ति की।

सर्वप्रथम लोकायुक्त का गठन 1971 में "महाराष्ट्र" में हुआ था। लेकिन उड़ीसा में यह अधिनियम 1970 में पारित हुआ,परंतु उसे 1983 में लागू किया गया। राजस्थान में प्रशासनिक सुधार समिति की सिफारिश पर 28 अगस्त 1973 को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश "आई डी दुआ को प्रथम लोकायुक्त और के.पी.यू.मेनन को 5 जून 1973 को प्रथम उप लोकायुक्त बनाया गया।

राजस्थान में राजस्थान प्रशासनिक सुधार समिति की सिफारिश पर लोकायुक्त की स्थापना राजस्थान लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1973 के द्वारा 3 फरवरी 1973 को की गई।  इस अधिनियम के अंतर्गत मंत्रियों तथा लोकसेवकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार अथवा बेईमानीपूर्वक कार्रवाई करने से संबंधित आरोप का अन्वेषण करने के लिए लोकायुक्त तथा उपलोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान किया गया। 

लोकायुक्त सिर्फ सिफारिश कर सकता हैं, कारवाई नहीं।

नियुक्ति ( Appointment )


लोकायुक्त और उप लोकायुक्त की नियुक्ति  राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती हैं,इनकी नियुक्ति के समय राज्यपाल द्वारा राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता से परामर्श अनिवार्य है।

राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति के संबंध में यह भी प्रावधान किया गया है कि उसका स्तर राज्य के मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के समान होना चाहिए। राज्य में सेवानिवृत्त या न्यायाधीशों को इस पद पर नियुक्त किया जाता है।

लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए कुछ प्रतिबंध निर्धारित किए गए हैं-जिनमें सांसद या विधायक होना, किसी लाभ के पद पर होना, राजनीतिक दलों से सम्बद्ध होना,व्यापार से सम्बद्ध होना आदि। लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त को उसके पद से दुर्व्यवहार या असक्षमता के आधार पर राज्यपाल द्वारा हटाया जा सकता है।

कार्यकाल ( Tenure )


अधिकांश राज्य में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र तक  जो भी पहले हो। वह पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

( नोट:- राजस्थान में वर्तमान में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 8 वर्ष किया गया)

लोकायुक्त का क्षेत्राधिकार ( Jurisdiction of Ombudsman )


लोकायुक्त के क्षेत्राधिकार का विस्तार में निम्न को छोड़कर राजस्थान राज्य के समस्त लोक सेवकों पर है।---

  1. मुख्य न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश या न्यायिक सेवा का कोई भी सदस्य।

  2. भारत में किसी भी न्यायालय का कोई भी अधिकारी

  3. महालेखाकार,राजस्थान

  4. राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या कोई सदस्य

  5. मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयुक्त और प्रादेशिक आयुक्त तथा मुख्य निर्वाचन अधिकारी राजस्थान राज्य।

  6. राजस्थान विधानसभा सचिवालय स्टाफ का कोई भी सदस्य

  7. राजस्थान का मुख्यमंत्री

  8. सरपंच,पंच और विधायकों के विरुद्ध भी शिकायतें की जाती है किंतु उनके विरुद्ध प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता क्योंकि वह अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

  9. सेवानिवृत्त लोक सेवक


NOTE 1 - हिमाचल प्रदेश,आंध्र प्रदेश,गुजरात और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री को लोकायुक्त की परिधि में तथा हिमाचल प्रदेश,आंध्र प्रदेश,गुजरात उत्तरप्रदेश और असम राज्य में विधानसभा सदस्यों को लोकायुक्त के दायरे में रखा गया है।

NOTE 2 - 5 वर्ष से अधिक पुराने मामलों की शिकायत नहीं की जा सकती

कार्य ( Work )



  1. राज्य लोकायुक्त संस्था को मंत्रियों तथा राज्य कार्मिकों के विरुद्ध जनता से प्राप्त शिकायतों की जांच का अधिकार दिया गया है,लेकिन कोई भी लोकसेवक लोकायुक्त में शिकायत नहीं कर सकता है।

  2. मंत्रियों तथा राज्य सरकार के विभागों के अधिकारियों या कर्मचारियों के विरुद्ध शिकायतों की प्राप्ति एवं उनका पंजीकरण।

  3. प्राप्त शिकायतों की निष्पक्ष जांच करना।

  4. अन्वेषण के पश्चात मामले को निरस्त करना तथा सक्षम अधिकारी को अग्रिम कार्यवाही की अनुशंसा करना।

  5. भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिए स्वयं की पहल पर किसी भी प्रकरण पर जांच आरंभ करना

  6. लोकायुक्त सचिवालय के कार्मिक एवं विकास वित्तीय प्रशासन को संचालित करना।


जाँच प्रक्रिया ( Investigation Process )


अधिकाशं राज्यों में लोकायुक्त किसी नागरिक द्वारा अनुचित प्रशासनिक कार्रवाई के विरुद्ध दी गई शिकायतों पर स्वयं जांच प्रारंभ कर सकता है, परंतु उत्तरप्रदेश हिमाचल प्रदेश और असम राज्य में वह जांच प्रारंभ करने के लिए स्वयं पहल नहीं कर सकता।

शक्तियाँ ( Power )



  1.  लोकायुक्त द्वारा प्राप्त शिकायत के संबंध में किसी भी ऐसे अधिकारी या व्यक्ति को बुलाया जा सकता है। जो जांच पड़ताल संबंधी सूचना देने या संबंधित कागजात प्रस्तुत करने में समर्थ है।

  2. शिकायतों की जांच पड़ताल के संबंध में लोकायुक्त को आईपीसी 1908 के अंतर्गत सिविल न्यायालय की समस्त शक्तियां प्राप्त हैं, जिसके अनुसार वह किसी भी व्यक्ति को बुला सकते हैं और उनके शपथ पर बयान ले सकते हैं।

  3. लोकायुक्त के समक्ष कोई भी कारवाई भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 193 के अंतर्गत एक न्यायिक कारवाई है।


वार्षिक प्रतिवेदन ( Annual Report )


प्राप्त शिकायतों एवं उनके निराकरण के संबंध में की गई कार्रवाही से राज्यपाल को अवगत कराने के लिए लोकायुक्त प्रतिवर्ष राज्यपाल को एक प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हैं। राज्यपाल लोकायुक्त से प्राप्त विशेष प्रतिवेदन और वार्षिक प्रतिवेदन राज्य विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

विशेषताऐं ( Features )



  1. लोकायुक्त राज्य सरकार के विभागों से संबंधित मामलों की फाइलें और दस्तावेज को मांग सकता है।

  2. लोकायुक्त जांच के लिए राज्य की जांच एजेंसियों की सहायता लेते हैं।

  3. लोकायुक्त की सिफारिश केवल सलाहकारी होती है,वह राज्य सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है।


Note - लोकायुक्त के पद को राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के समान दर्जा दिया गया है।

 

Specially thanks to Post writer ( With Regards )

दिनेश मीना,झालरा टोंक


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