Rajasthan Administrative and Revenue Regulation प्रशासनिक & राजस्व
Rajasthan Administrative and Revenue Regulation
18 वीं शताब्दी के अंत तक राजस्थान की प्रशासनिक एवं राजस्व व्यवस्था
जागीरदारी प्रथा ( RAS MAINS 1987 )
राजपूत शासकों द्वारा अपने राज्य क्षेत्र में से निकट संबंधियों एवं उच्चाधिकारियों को कुछ शर्तों के अनुसार एकाधिक गांव उपयोग के लिए दिए जाते थे। वह भूमि 'जागीर' एवं ग्राही 'जागीरदार' तथा व्यवस्था 'जागीदारी प्रथा' कहलाती थी।
रेख से आप क्या समझते हैं?
राजपूत शासकों द्वारा अपने सामंतों से राजकीय मांगों का हिसाब रेख के आधार पर किया जाता था। जो जागीर की अनुमानित आय पट्टे में दर्ज होती थी उसी के आधार पर रेख तय होता था।
तलवार बंधाई - मध्यकाल में शासक द्वारा जागीर के नए उत्तराधिकारी से वसूल किया जाने वाला शुल्क, जो रेख के आधार पर लिया जाता था। इसे तलवार बंधाई, हुक्मनामा, पेशकशी कैद खालसा, नजराना आदि नामों से जाना जाता था।
ताजिम ( RAS MAINS 1994 ) - ताजिम का अर्थ सम्मान देना। जब कोई सामंत दरबार में उपस्थित होता था तो महाराणा द्वारा खड़े होकर उसका आदर सत्कार करने की प्रथा ताजिम कहलाती थी।
सिरोपाव - शासकों के राज्याभिषेक, विवाह जन्म आदि के अवसर पर अपने सामंतों को विशेष वस्त्र- आभूषण दिए जाते थे जो सिरोपाव कहलाते थे। एक सामंती विशेषाधिकार था। सिरोपा सामंती श्रेणी अनुसार देय था।
बांह पसाव - मेवाड़ रियासत में जब सामंत दरबार में उपस्थित होता था तो वह झुककर महाराणा की अचकन छूता था तो सामंत का अभिवादन स्वीकार कर महाराणा सामंत के कंधे पर हाथ रखता था। यह प्रक्रिया बांह पसाव कहलाती थी।
मुत्सदी - मारवाड़ में जिन अधिकारियों को राजकीय सेवा के बदले जागीर तो मिली हुई थी लेकिन वे राठौड़ वंश के राजपूत नहीं होते थे, उन्हें मुत्सदी कहा जाता था।
नेग - राजस्थान के सामंत शाही समाज में सामाजिक - धार्मिक तथा उत्सव पूर्ण अवसरों पर शासक को सामंत द्वारा और सामन्त को उसके अनुसामंत द्वारा नेग (आर्थिक भेंट) प्रदान की जाती थी।
मध्यकालीन शासक वर्ग से संबंधित राजकीय आदेशों से संबंधित शब्दावलीयां-
फरमान - फरमान मुगल बादशाह द्वारा जारी शाही आदेश होते थे। कभी यह सार्वजनिक तो कभी विशेष रूप से मनसबदारों के लिए होते थे।
परवाना - महाराजा द्वारा अपने अधीनस्थ को जो आदेश जारी किया जाता था वह परवाना कहलाता था
अर्जदाश्त - एक प्रकार का लिखित प्रार्थना पत्र होता था जो कि एक अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को भेजता था।
निशान - बादशाह के परिवार के किसी सदस्य द्वारा मनसबदार को अपनी मोहर के साथ जो आदेश जारी किए गए, वे निशान कहलाए।
खरीता - एक राजा का दूसरे राजा के साथ जो पत्र व्यवहार होता था, वह खरीता कहलाता था।
मन्सूर - यह एक प्रकार का शाही आदेश होता था जो कि बादशाह की मौजूदगी में शहजादे द्वारा जारी किया जाता था। उत्तराधिकार युद्ध के समय शहजादा औरंगजेब ने अपने हस्ताक्षरित आदेश जारी किए वहीं मन्सूर कहलाए।
रुक्का - राज्य के अधिकारियों के मध्य पत्र व्यवहार को रुक्का कहा जाता था।
वकील रिपोर्ट - मनसबदार, जागीरदार एवं अन्य सरदार मुगल दरबार में अपने प्रतिनिधि नियुक्त करते थे जिनको वकील कहा जाता था। वे अपने रियासती स्वामी से संबंधित खबरों का संकलन कर दरबार की गतिविधियां अपनी रियासत को भेजा करते थे। जिसे वकील रिपोर्ट कहा जाता था।
वाक्या - इसके तहत बादशाह या राजा की व्यक्तिगत एवं राजकार्य संबंधी गतिविधियां तथा राज परिवार के सदस्यों की सामाजिक रस्म, व्यवहार, शिष्टाचार आदि का वर्णन किया जाता था।
सनद - यह एक प्रकार की स्वीकृति होती थी, जिसके द्वारा मुगल सम्राट अपने अधीनस्थ राजा को जागीर प्रदान करता था।
खतूत महाराजगान व अहलकारान- इनके द्वारा देशी शासकों, मराठों, पिंडारियों, मुगल दरबार एवं पड़ोसी राज्यों के साथ शासन संबंधी पत्र व्यवहार हुआ करता था।
राजस्थान में सामंती व्यवस्था के सामाजिक प्रभाव की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
राजस्थान में सामंती व्यवस्था होने से राजस्थान के रीति-रिवाजों पर इसकी गहरी छाप रही है। इस व्यवस्था के प्रभाव से यहां बाल विवाह, वृद्ध विवाह, अनमेल विवाह का भी प्रचलन रहा है। शासकों - सामंतों की कन्या के साथ दहेज में लड़कियां वस्तुओं की भांति भेंट दी जाती थी।
इसके अलावा सती प्रथा, कन्या वध प्रथा, सागड़ी प्रथा, बेगार प्रथा, ऊंच नीच का भेदभाव, जौहर प्रथा, लड़कों व लड़कियों का क्रय-विक्रय आदि रिवाज भी एक सामाजिक बुराई के रूप में सामंती व्यवस्था के प्रभाव से उत्पन्न हुए।
मध्यकालीन राजस्थान की स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को परगनों में बांटा गया। प्रत्येक परगने में 20 या इससे अधिक मोजे अर्थात गांव होते थे। जयपुर राज्य में परगना अधिकारियों के तीन श्रेणियां थी- प्रथम श्रेणी में केवल आमिल या हाकिम आते थे।
दूसरी श्रेणी में फोजदार, नायब फौजदार, कोतवाल खुफियानवीस, फोतेदार, तहसीलदार, मुशरिफ, आवारजा नवीन, दरोगा, शतायत आदि होते थे। तीसरी श्रेणी में महीनदार आते थे जिनमें हाजिरी नवीस, चोबदार, निशानबदार, दफलरबंद दफ्तरी आदि भी होते थे। रोजिनदारो में साधारण मजदूर व नौकर आते थे जिन्हें वेतन प्रतिदिन मिलता था।
हाकिम- सभी शासकीय तथा न्याय संबंधी कार्यों के लिए हाकिम परगने का सर्वेसर्वा था,जो सीधा महाराजा द्वारा नियुक्त या पदच्युत किया जाता था।
फौजदार- परगने का दूसरा उच्च अधिकारी फौजदार होता था। पुलिस और सेना का अध्यक्ष होता था। वह परगने की सीमा की सुरक्षा का प्रबंध करता था। वह अमलगुजार, अमीन तथा आमिल को राजस्व वसूल करने के संबंध में सहायता पहुंचाता था। उसके नीचे कई थानों के थानेदार रहते थे जो चोर और डाकू का पता लगाते थे या उनकी निगरानी रखते थे।
आमिल- यह परगने का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी था। परगने में इसे सर्वाधिक वेतन मिलता था। आमिल का मुख्य कार्य परगने में राजस्व की वसूली करना था। भूमि राजस्व वसूली में कानूनगो, पटेल, पटवारी, चौधरी आदि इसकी सहायता करते थे। आमिल के अन्य कार्यों में किसानों के हितों का ख्याल रखना, कृषि को बढ़ावा देना, सूखा पड़ने पर तकाबी ऋण बांटना आदि थे।
ओहदेदार- कई बड़े बड़े परगनों में एक ओहदेदार भी होता था जो हाकिम को शासन में सहायता पहुंचाता था। इन अधिकारियों के सहयोगी शिकदार, कानूनगो, खंचाजी, सहने आदि होते थे जो वैतनिक या फसली अनाज के एवज में राजकीय सेवा करते थे।
खुफिया नवीस- यह परगने की प्रगति रिपोर्ट दीवान के पास भेजता था। परगने का खंचाजी पोतदार होता था जो परगना खजाने में आमद व खर्च का हिसाब रखता था।
गांव का प्रशासन - मध्य काल में राज्य में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती थी, जिन्हें ग्राम, मंडल, दुर्ग आदि कहते थे। ग्राम का प्रमुख अधिकारी ग्रामिक, मंडल का मंडलपति, दुर्ग का दुर्गाधिपति तथा तलारक्ष होता था।
गांव की स्थानीय व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत में गांव का मुखिया तथा गांव के सयाने व्यक्ति रहते थे। यह लोग मिलकर न्याय करना, झगड़े निपटाना, धार्मिक और सामाजिक विषयों पर विचार करना आदि कार्यों को संपादित करते थे। इन संस्थाओं और अधिकारियों के बीच ऐसा तारतम्य रहता था कि एक दूसरे से मिलजुल कर काम करते थे। ग्राम पंचायत तथा जाति पंचायत के निर्णय राज्य द्वारा मान्य होते थे।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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