Rajasthan Agriculture and Animal Husbandry कृषि और पशुपालन
Rajasthan Agriculture and Animal Husbandry
राजस्थान में कृषि, बागवानी, डेयरी और पशुपालन
प्र 1. बारानी खेती विकास कार्यक्रम क्या है ?
उत्तर-राज्य में कम सिंचाई वाली फसलों का विकास करने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने बारानी खेती पर बल दिया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत तालाबों,एनीकटों का निर्माण करवाया गया तथा वर्षा के जल का संरक्षण कर उसका अधिकतम उपयोग करने पर बल दिया।
प्र 2. "राजफैड" ( RAJFED )
उत्तर- इसकी स्थापना 1957 में की गई। प्राथमिक क्रय-विक्रय सहकारी समितियों के माध्यम से राज्य के किसानों को उचित मूल्य पर उन्नत बीज,उर्वरक, कीटनाशक उपलब्ध करवाना एवं उनके कृषि उत्पादकों को उचित मूल्य दिलवाना एवं प्रोसेसिंग की समुचित व्यवस्था कर आवश्यक मार्गदर्शन उपलब्ध कराना है।
प्र 3. "काजरी" ( CAZRI ) का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-Central Arid Zone Research lnstitute की स्थापना जोधपुर में विश्व बैंक के सहयोग से की गई। काजरी संस्था ने मरुस्थलीय क्षेत्रों में अनेक किस्मों का विकास किया है। इसके अलावा जल प्रबंधन, पशुओं का नस्ल सुधार, वनारोपण,भू संरक्षण तकनीकों का विकास किया,जो बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई।
प्र 4. "ऑपरेशन फ्लड" का प्रमुख लक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- दुग्ध उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं में निकट संपर्क स्थापित करने तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 1970 में चलाया गया एक अभियान है।
प्र 5. राजस्थान के प्रमुख गौवंश की नस्लों के नाम बताइये ?
उत्तर-राजस्थान की प्रमुख गौवंश की नस्लें- राठी, कांकरेज, थारपारकर, नागौरी, सांचौरी, गिर, मालवी आदि।
लघूतरात्मक ( 50 से 60 शब्द )
प्र 6. राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान के किन जिलों को सम्मिलित किया है ? इस मिशन के प्रमुख लक्ष्यों को रेखांकित कीजिए
उत्तर-राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान के 24 जिलों का चयन किया गया। (जयपुर अजमेर अलवर चित्तौड़ कोटा बारां झालावाड़ जोधपुर पाली जालोर बाड़मेर नागौर बांसवाड़ा टोंक आदि) इस मिशन में व्यय केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों द्वारा वहन किया जाएगा। इसका प्रमुख लक्ष्य उद्यानिकी फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना है। इस मिशन के अंतर्गत दिसंबर 2017 तक 49•44 करोड़ रूपये व्यय हुआ है।
प्र 7. राजस्थान में डेयरी उद्योग की भूमिका को समझाये।
उत्तर-राजस्थान में डेयरी उद्योग का प्रारंभ 1971 से हुआ। राज्य में डेयरी व्यवसाय का संचालन एवं उन्नयन करने हेतु राष्ट्रीय डेयरी विकास के निर्देशन में राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन की स्थापना की गई। राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन का प्रमुख लक्ष्य दुग्ध उत्पादकों को उचित मूल्य प्रदान करना तथा पशुपालकों ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना
प्र 8. राजस्थान की कृषि संबंधी समस्याओं का विस्तारपूर्वक विवेचन कीजिए? ( निबंधात्मक )
उत्तर-राजस्थान की कृषि वर्तमान में अनेकोनेक समस्याओं से ग्रसित है। जो निम्न है-
राजस्थान राज्य अनेक प्राकृतिक समस्याओं से ग्रसित है,जिनका कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैसे- मरुस्थलीय क्षेत्र की प्रधानता, मृदा अपरदन, पर्वतीय क्षेत्र न्यूनतम वर्षा,अकाल, प्राकृतिक जल स्रोतों की कमी,सेम एवं लवणता की समस्या आदि।
राजस्थान की कृषि प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ आर्थिक कारण से ग्रसित है, जिसका प्रभाव कृषि व्यवस्था पर पड़ता है। जैसे- कृषि निर्धनता,सिंचाई की कमी, परिवहन सुविधा की कमी, कृषि में कम पूंजी निवेश, उन्नत बीज तथा कीटनाशकों का अधिक मूल्य,कृषि आधारित उद्योगों की कमी, योजनाओं का उचित तरीके से क्रियान्वयन नहीं होना, भंडारण ग्रेडिंग तथा विपणन की पूर्ण सुविधा के अभाव में किसानों को उचित मूल्य प्राप्त न होना आदि आर्थिक कठिनाइयों के कारण से राजस्थान में कृषि विकास मंद गति से हो रहा है। यहां के अधिकांश किसान छोटे एवं मध्यम श्रेणी के हैं,जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। अधिकांश किसान आज भी ऋण के बोझ में दबे हुए हैं।
राज्य की कृषि संबंधी समस्याओं में प्राकृतिक आपदा और आर्थिक कारण के साथ साथ सामाजिक और प्रशासनिक कठिनाइयाँ भी बाधक है जैसे किसानों के बड़ा परिवार तथा छोटे खेत, अशिक्षा, दोषपूर्ण भू स्वामित्व प्रणाली, भूमि का उप विभाजन एवं अपखंडन,कृषि नीतियों का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होना।
प्र 9. राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पशुपालन के योगदान को स्पष्ट कीजिए।( निबंधात्मक )
उत्तर-राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
पशुपालन शुष्क और अर्ध शुष्क प्रदेशों में आजीविका का प्रमुख साधन है।
कृषि कार्यों में पशुधन का उपयोग होता है,विशेषकर छोटे किसानों द्वारा अधिक किया जाता है।
डेयरी उद्योग के विकास में दूध देने वाले पशुओं का पालन अधिक होने लगा है,क्योंकि यह आय का एक उत्तम साधन है।
राजस्थान और पशुपालन
राजस्थान में पहले से ही ग्रामीण अंचल में पशुपालन का विशेष महत्व रहा है यहां ऊंट पालन से लेकर बकरी और भेड़ पालन तक हर प्रकार का पशु पालन किया जाता है प्रत्येक पशुपालन का अपना अलग महत्व है
पशुधन का आकलन
राजस्थान में देश के कुल पशुधन का लगभग 11.5 प्रतिशत हिस्सा आता है। यहाँ पशुपालन रोजगार का प्रमुख स्रोत है। पशुपालन से राज्य की अर्थव्यवस्था बहुत अधिक लाभान्वित हुई है। नई उन्नत किस्म की नस्लें राजस्थान की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे साबित हुई है
राजस्थान की पशु संपदा एक दृष्टि में
पशु संपदा के मामले में राजस्थान देश के राज्य में अग्रणी रहा है। यहाँ भारत के कुल पशुधन का लगभग 11.5 प्रतिशत मौजूद है। क्षेत्रफल की दृष्टि से पशुओं का औसत घनत्व 120 पशु प्रति वर्ग किलोमीटर है जो सम्पूर्ण भारत के औसत घनत्व 112 पशु प्रति वर्ग से अधिक है।
राज्य में 1988 में पशुओं की कुल संख्या 409 लाख थी जो बढ़कर 1992 में 492.67 लाख तथा 1996 में 568.19 लाख तक पहुँच गई। पशुओं की बढ़ती हुई संख्या अकाल और सूखे से पीड़ित राजस्थान के लिये वर्दान सिद्ध हो रही है। आज राज्य की शुद्ध घरेलू उत्पत्ति का लगभग 15 प्रतिशत भाग पशु सम्पदा से ही प्राप्त हो रहा है।
सम्पूर्ण भारत के सन्दर्भ में राजस्थान का योगदान ऊन उत्पादन में 45 प्रतिशत, पशुओं की माल वाहक क्षमता में 35 प्रतिशत और दूध उत्पादन में 10 प्रतिशत है।
राजस्थान में अर्थव्यवस्था पर पशुपालन का प्रभाव
भेड़ों तथा ऊँटों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का देशभर में प्रथम स्थान है। राज्य के लगभग सभी जिलों में कम या अधिक पशुपालन का कार्य किया जाता है परन्तु व्यवसाय के रूप में मुख्य रूप से मरुस्थलीय,शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में यह कार्य किया जाता है।
पशुपालन से न केवल ग्रामीण लोगों को स्थायी रोजगार मिलता है, बल्कि पशुओं पर आधारित उद्योगों के विकास का मार्ग भी प्रशस्त होता है। अकाल एवं सूखे की स्थिति में पशुपालन ही एक सहारा बचता है। इस व्यवसाय से पौष्टिक आहार-घी, मक्खन, छाछ, दही आदि की प्राप्ति के साथ-साथ डेयरी, ऊन, परिवहन, चमड़ा चारा आदि उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन मिलता है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर मांस प्राप्ति के साथ-साथ चमड़ा और हड्डियाँ भी प्राप्त होती हैं, जिनका विदेशों से निर्यात किया जाता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजस्थान की अर्थव्यवस्था को पशुपालन से एक संबल प्राप्त हुआ है। भविष्य में इस दिशा में ओर सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए। विशेष रूप से योजनाओं के क्रियान्वयन को उचित ढंग से लागू किया जाना चाहिए ताकि इसका लाभ अधिक से अधिक पशुपालकों तक पहुंचे।
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