Rajasthan History-19th Century Events ( 19-20 वीं शताब्दी की प्रमुख घटनाएं )

Rajasthan History-19th Century Events


19-20 वीं शताब्दी की प्रमुख घटनाएं 


अतिलघुतरात्मक (15 से 20 शब्द)


प्र 1. सम्प सभा ?

उत्तर- मेवाड़ अंचल में भील, गरासिया आदि जनजातियों के सामाजिक एवं नैतिक उत्थान, जन जागृति एवं राजनीतिक चेतना उत्पन्न करने के लिए 1883 ईस्वी में गोविंद गिरी ने डूंगरपुर में सम्प सभा की स्थापना की।

प्र 2. राजस्थान के प्रमुख 4 क्रांतिकारियों के बारे में बताइए ?

उत्तर- राजस्थान के प्रमुख चार क्रांतिकारी थे- कुशाल सिंह चंपावत, ज्वाला प्रसाद शर्मा, विजय सिंह पथिक और अर्जुन लाल सेठी। जिन्होंने सशस्त्र क्रांति के जरिए देश को आजाद कराने का बीड़ा उठाया।

प्र 3. वीर भारत सभा?

उत्तर- राजस्थान के राजाओं, सामंतों एवं नवयुवकों को क्रांतिकारी गतिविधियों से जोड़ने हेतु केसरी सिंह बारहट, विजय सिंह पथिक एवं राव गोपाल सिंह खरवा व उनके सहयोगियों ने 1910 ईस्वी में वीर भारत सभा की स्थापना की।

प्र 4. अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद ?

उत्तर- देशी राज्यों की जनता को एक सूत्र में बांधकर उनके आंदोलनों को समन्वित रूप देकर शासकों के तत्वाधान में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए बहादुर रामचंद्र राव की अध्यक्षता में 1927 में मुंबई में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना की गई।

प्र 5. राजस्थान स्थापना दिवस ?

उत्तर- 1 नवंबर 1956 को वर्तमान राजस्थान का एकीकरण कर राजप्रमुख प्रमुखादि राजतंत्र के अवशेष समाप्त कर राज्यपाल पद सृजित कर लोकतंत्र शुरू किया। 1 नवंबर को राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है।

लघूतरात्मक ( 50 से 60 शब्द )


प्र 6. आंग्ल राजपूत संधियों में निहित कारणों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- राजपूताना के लगभग सभी शासकों ने 1817-18 में सहायक संधिया की, जिनके पीछे दोनों के स्वार्थ थे।

राजपूतों के स्वार्थ -

  1. राजपूताना राज्यों में पारस्परिक संघर्ष एवं गृह कलह

  2. राजस्थान की राजनीति में कष्टदायी मराठों का प्रवेश

  3. सामंतों के पारस्परिक झगड़े एवं शासकों का दुर्बल होना

  4. मुगल साम्राज्य का दुर्बल होना

  5. पिंडारियों का आतंक


फलतः अपनी सुरक्षा के लिए राजपूत राज्यों ने कंपनी से संधि की।

अंग्रेजों के स्वार्थ-

  1. ब्रिटिश क्षेत्र में पिंडारियों का आतंक

  2. लॉर्ड हेस्टिंग्ज की भारत में कंपनी की सर्वश्रेष्ठ स्थापित करने की लालसा

  3. राजपूताना को शरण में लेने से वित्तीय साधनों में वृद्धि


प्र 7. विजय सिंह पथिक ।

उत्तर- भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी भूप सिंह (विजय सिंह पथिक) की जन्मभूमि बुलंदशहर एवं कर्मभूमि राजस्थान था। पथिक जी वीर भारत सभा एवं राजस्थान सेवा संघ के संस्थापक एवं संपूर्ण भारत में किसान आंदोलन के जनक व चोटी के क्रांतिकारी थे। पथिक जी ने न केवल बिजोलिया कृषक आंदोलन का सफल नेतृत्व किया अपितु संपूर्ण राजस्थान में आंदोलनों के मुख्य आधार रहे। अजमेर में सशस्त्र क्रांति की क्रियान्विति, क्रांतिकारियों की भर्ती व प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही राजस्थान केसरी, नवीन राजस्थान पत्रिकाओं का संपादन किया। संकट की घड़ी में राजस्थान की जनता एवं स्वतंत्रता सेनानी विजय सिंह पथिक से ही प्रेरणा पाते थे।

प्र 8. अजमेर मेरवाड़ा का विलय कब और कैसे हुआ ?

उत्तर- अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की राजपूताना प्रांतीय सभा की सदैव यह मांग रही थी कि वृहद राजस्थान में न केवल प्रांत की सभी रियासतें वरन अजमेर का इलाका भी शामिल हो। अजमेर का कांग्रेस नेतृत्व कभी इस पक्ष में नहीं रहा। सन 1952 के आम चुनाव के बाद वहां श्री हरिभाऊ उपाध्याय के नेतृत्व में कांग्रेस मंत्रिमंडल बन चुका था। अब तो वहां का नेतृत्व यह दलील देने लगा कि प्रशासन की दृष्टि से छोटे राज्य ही बनाए रखना उचित है। राज्य पुनर्गठन आयोग ने अजमेर के नेताओं के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और सिफारिश की कि अजमेर को राजस्थान में मिला देना चाहिए। तदनुसार दिनांक 1 नवंबर 1956 को माउंट आबू क्षेत्र के साथ ही अजमेर मेरवाड़ा भी राजस्थान में मिला दिया गया।

प्र 9. ब्रिटिश आधिपत्य काल में राजस्थान में हुए सामाजिक सुधारों की विवेचना कीजिए । (निबन्धात्मक)

उत्तर- 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में राजस्थान में सामाजिक ढांचा परंपरागत था। जन्म आधारित जाति व्यवस्था में छुआछूत, सती प्रथा, डाकन प्रथा, बाल विवाह, बहु पत्नी प्रथा, बेमेल विवाह व त्याग प्रथा आदि अनेकों प्रथाओं को धर्म से संबंध कर महत्वपूर्ण बना दिया गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा राजनीतिक- प्रशासनिक व आर्थिक ढांचे में किए गए परिवर्तनों एवं दबाव के फलस्वरूप राजपूत शासकों ने कुछ कुप्रथाओं को गैरकानूनी घोषित कर समाप्त कर दिया गया।

1. परंपरागत जातीय व्यवसाय में परिवर्तन- राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य के बाद यहां सैन्य विघटन, व्यापार - वाणिज्य अंग्रेजी नियंत्रण, संचार के साधनों एवं शिक्षा में वृद्धि आदि से सभी जातियों ने अपने व्यवसाय बदल लिए। परम्परागत समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ।

2. सती प्रथा का अंत - राजपूत शासकों, सामंतों एवं ऊंची जातियों में मृत पति के साथ जीवित पत्नी का चिता में जलना एक धार्मिक कार्य हो गया था। हालांकि यह प्रथा स्वत ही कम होती जा रही थी। साथ ही ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे समाप्त करने हेतु राजस्थानी शासकों पर दबाव डाला तो वे धीरे-धीरे तैयार होते गए। सर्वप्रथम 1822 ईस्वी में बूंदी में इसे गैरकानूनी घोषित किया गया तो उसके बाद अन्य रियासतों ने भी ऐसा ही किया। उन्नीसवीं सदी के अंत तक यह प्रथा अपवाद मात्र रह गई।

3. त्याग प्रथा का निवारण- राजपूतों में लड़की की शादी पर चारण, भाट आदि मुंह मांगी दान दक्षिणा (त्याग) लेते थे, जो कन्या वध के लिए उत्तरदायी थी। सर्वप्रथम 1841 ईसवी में जोधपुर में और बाद में अन्य राज्यों ने भी अंग्रेज अधिकारियों के सहयोग से नियम बनाकर इसे सीमित कर दिया। अब यह प्रथा विद्यमान नहीं है।

4. कन्या वध प्रथा का अंत - यह कुप्रथा मुख्यतः राजपूतों में प्रचलित थी। दहेज, त्याग, टीका आदि इसके प्रमुख कारण थे। सर्वप्रथम कोटा राज्य ने 1834 ईस्वी में, तत्पश्चात अन्य राज्यों ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया।

5. डाकन प्रथा का अंत- विशेषकर भील, मीणा, गरासिया आदि जनजातियों में स्त्रियों पर डाकन का आरोप लगाकर उन्हें मार दिया जाता था। सर्वप्रथम ए जी जी के निर्देश से 1853 ईसवी में उदयपुर ने, तत्पश्चात अन्य राज्यों ने भी इसे गैरकानूनी घोषित किया। बीसवीं सदी में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से ही यह प्रथा समाप्त हो सकी। फिर भी यदा कदा यह प्रथा अभी भी देखी जा सकती है।

6. मानव व्यापार का अंत- 19वीं सदी में राजस्थान में लड़के लड़कियों तथा औरतों का व्यापार सामान्य था। सर्वप्रथम जयपुर राज्य ने 1847 ईस्वी में, तत्पश्चात अन्य राज्यों ने भी इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि कोटा ने 1831 ईस्वी में रोक लगाई लेकिन यह बेअसर रही, बाद में 1862 ईस्वी के आदेशों से यह सीमित हो पाई।

7. बाल विवाह- यह राजस्थानी समाज की एक सामान्य प्रथा रही है। हालांकि 1929 ईस्वी में शारदा एक्ट के अनुसार लड़के- लड़की की विवाह की आयु क्रमशः 18 वर्ष व 14 वर्ष एवं 1956 में 21 वर्ष व 18 वर्ष की गई, लेकिन इस दिशा में और सामान्य उपाय करना अपेक्षित है।

8. दास प्रथा - दास प्रथा भी एक सामान्य प्रथा थी। अंग्रेजी प्रभाव से सर्वप्रथम 1832 ईस्वी में कोटा - बूंदी राज्य ने इस पर रोक लगाई।

ब्रिटिश अधिकारियों ने इन कुप्रथाओं एवं अन्य कुरीतियों जैसे बहु विवाह, दहेज प्रथा, टीका, रीत, नुक्ता आदि को मिटाने के लिए सरकारी कानूनों के साथ साथ देश हितैषनी सभा (1877ई) एवं वाल्टर हितकारिणी सभा (1889ई) जैसी संस्थायें भी स्थापित की। जिनके प्रयास सराहनीय रहे।

 

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

P K Nagauri


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