राजस्थान के इतिहास के कालखंड

राजस्थान के इतिहास को तीन काल खंडो में बांटा गया था 

  1. प्रागैतिहासिक काल
  2. आद्य ऐतिहासिक काल
  3. ऐतिहासिक काल

1. प्रागैतिहासिक काल

सभ्यता और संस्कृति के इस युग में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है, बूंदी जिले के गरडदा क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के मानव की उत्कृष्ट कला के प्रमाण मिले हैं, इसी स्थान पर बर्ड राइटर (पक्षी पर सवार मानव) का चित्र संपूर्ण भारत में पहली बार मिला है मानव ने विश्व का प्रथम महत्वपूर्ण आविष्कार पहिये के रूप में इसी काल में किया था, इस काल में सर्वाधिक सामग्री पत्थर से बनी हुई थी, इसीलिए इस काल को पाषण काल भी कहा जाता है। प्रागेतिहासिक काल को तीन भागों में बांटा गया है

१. प्रारंभिक पाषाण काल- 

इस काल में हमें पाषाण निर्मित सबसे प्राचीन उपकरण हस्त कुठार व खंडक के रूप में मिलते हैं, प्रारंभिक पाषण काल में मानव आग जलाना सीख चुका था। राजस्थान में प्रारंभिक पाषण काल से संबंधित निम्न स्थल पाए जाते हैं -

जयपुर में स्थित ढिगंरिया स्थान पर व इंदरगढ़ में सी.ए. हैकर ने प्रारंभिक पाषाण काल के हैंड एक्स उपकरणों की खोज की है| इसके अतिरिक्त मानगढ़ (बांसवाड़ा), नाथद्वारा (राजसमंद), देवली (टोंक), हमीरपुर बिगोद (भीलवाड़ा), मंडपिया (चित्तौड़गढ़) आदि प्रारंभिक पाषाण काल से संबंधित स्थल है।

२. मध्य पाषाण काल -

इस काल में मानव पशुपालन करने लग गया था, भीलवाड़ा में स्थित बागौर नामक स्थान से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं।राजस्थान में मध्य पाषाण काल से संबंधित निम्न स्थल पाए जाते हैं - सोहनपुरा (सीकर), दरा (कोटा), हरसोरा, सामधा (अलवर), विराटनगर (जयपुर)

३. उत्तर नवपाषाण काल-

इस काल का समय 7000 ईसापूर्व के बाद माना जाता है, आधुनिक सभ्यता की नींव इसी काल में रखी गई थी, इसी काल में पशुपालन और कपास की खेती करना प्रारंभ हुआ था। नवपाषाण काल से ही जाति व्यवस्था और कृषि कार्य शुरू किए गए थे, इसी काल में मानव पहिये से परिचित हुआ था। राजस्थान में उत्तर पाषाण काल से संबंधित निम्न स्थल पाए जाते हैं - भरणी (टोक), समदड़ी (बाड़मेर), जहाजपुर (भीलवाड़ा) 

2. आद्य ऐतिहासिक काल -

सिंधु घाटी व वैदिक सभ्यता इसी युग की देन है, मानव सभ्यता के इस युग की निम्न विशेषताएं थी

  • इस काल का व्यक्ति बस्तियां बना कर रहना सीख गया था
  • सभ्यता और संस्कृति के इस युग में लिखित साक्ष्य तो प्राप्त हुए थे लेकिन वह पढ़े नहीं जा सकते थे
  • इस काल की लिपि को बूस्ट्रो फेदन व सर्पिलाकार लिपि कहते हैं

3. ऐतिहासिक काल 

मानव सभ्यता के इस युग में पूर्ण लिखित पठनीय और प्रमाणित सामग्री प्राप्त होती है हड़प्पा सभ्यता के पुरातात्विक स्थल रेलावन व दुगेरी (बॉरा), आहड़, भगवानपुरा, बालाथल(उदयपुर), गिलूंड (राजसमंद), कालीबंगा, पीलीबंगा ,थेहड, रगंमहल (हनुमानगढ़) आदि पुरातात्विक स्थल से संबंधित है

वेदिका आर्य सभ्यता के समकालीन राजस्थान के प्रमुख पुरातात्विक स्थल सुनारी (झुंझुनू), बैराठ (जयपुर), अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर), चक-84 (श्री गंगानगर), नोह (भरतपुर), तरखाना वाला (श्री गंगानगर), जोधपुरा, बैराठ (उदयपुर) आदि

 

Specially thanks to Post Author - Mamta Sharma

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