प्राचीन समय में कई प्रसिद्ध शासकों वह उनके समय के सिक्के प्रचलित थे, जो राजस्थान में खुदाई के समय विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं, जहां से यह सिक्के प्राप्त किए गए हैं वह स्थान राजस्थान में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते है, उन्हें राजस्थान में विभिन्न नामों से जाना जाता है
राजस्थान में खुदाई के अतिरिक्त राजस्थान की रियासतों में प्रचलित सिक्कों के द्वारा भी कहा जा सकता है कि प्राचीन काल के सिक्के यहां पर प्रचलन मे थे, राजस्थान के मुख्य स्थलो के उत्खनन से प्राचीन समय के सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिनके द्वारा हमें ज्ञात होता है कि हमारे यहां किन-किन शासकों का शासन था, उनके राज्य की अर्थव्यवस्था, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक स्थिति कैसी थी की जानकारी प्राप्त होती है, इन सिक्कों के माध्यम से प्राचीन समय के इतिहास की जानकारी भी हमें प्राप्त होती है, राजस्थान से प्राप्त प्राचीन काल के सिक्के जो विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं वह निम्न है
आहड से उत्खनन में छह तांबे के सिक्के मिले हैं जिनमें एक चौके और 5 गोल है, एक सिक्के पर त्रिशूल का अंकन है, आहड से उत्खनन में कुछ हिन्द यवन (इण्डो-ग्रीक) मुद्राएं भी प्राप्त हुई है, मुद्रा नंबर 2353 (अ) के एक तरफ हाथ में तीर लिए हुए "अपोलो" और दूसरी और महाराज त्रृतर्स उत्कीर्ण है
इन सिक्कों का समय ईसापूर्व तीसरी शताब्दी माना जाता है, बहुत समय तक मिट्टी में दबे रहने के कारण सिक्कों का अंकन को स्पष्ट रुप से नहीं पढ़ा गया पर उन पर अंकित त्रिशुल अवश्य दृष्टव्य है आहड से उत्खनन में सीले भी प्राप्त हुई है, 1834 नंबर सील पर “विहरम विस”, 1632 नंबर सील पर "पालीतस" अंकित है, 1932 नंबर की सील पर त, की, यू, तू, इत्यादि वर्ण अंकित है
टोंक जिले में स्थित रेढ की सभ्यता से लगभग 3075 चांदी के पंच मार्क सिक्के मिले हैं, जो एक ही स्थान से मिले सिक्कों की सबसे बड़ी संख्या है, इन सिक्कों को धरण या पण कहा जाता था, इन सिक्कों का तौल 32 रत्ती अथवा 57 ग्रेन अथवा 3¾ ग्राम है जो लगभग सभी सिक्कों का समान है, रेढ के सिक्कों पर सूर्य, तीर, मछली, घंटा और पौधा या पशु के चित्र अंकित मिलते हैं
इन सिक्कों का समय छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से द्वितीय शताब्दी ई.पुर्व का अनुमानित किया गया है, रैढ से प्राप्त तांबे के सिक्के जिन्हें गण मुद्राएं कहा जाता है, जो मालवा, सेनापति,मित्र, इण्डो-सेसेनियन इत्यादि वर्ग के हैं,
सेनापति मुद्राएं - रेढ से प्राप्त 6 मुद्राएं जिनमें से पॉच मुद्राएं चौकोर और एक मुद्रा गोल है, जिन पर नंदी के आकार का चित्र है और जो तृतीय शताब्दी ईस्वी पूर्व से द्वितीय शताब्दी ईस्वी पुर्व की है, इन मुद्राओं पर पत्रिका वच्छघोष का अंकन है, ढालित सिक्के रेड (टॉक) से मिले हैं, 7 मई 2012 को डिग्गी मालपुरा रोड स्थित गोहंदी के एक टीले में 200 ईसा पूर्व से 200 ई. काल की मिट्टी के सिक्के मिले हैं
रेढ और पूर्वी राजस्थान से हजारों की संख्या से प्राप्त ये सिक्के द्वित्तीय शताब्दी ईस्वी पूर्व से द्वितीय शताब्दी ईस्वी तक के है, इन सिक्कों पर मालवाना, जय और माव्य, मजुप भापेजय, मगजश इत्यादि सेनापतियों के नाम भी उत्कीर्ण है
यह सिक्के राजस्थान के उत्तर और पश्चिमी भाग के क्षेत्रों से मिले हैं, इन सिक्कों पर ब्राह्मी लिपि में "योधेयाना बहुधाना" उत्कीर्ण है, प्रारंभ के सिक्कों पर षडानन की मूर्ति कमल पर खड़ी चित्रांकित है, बाद के सिक्कों पर कार्तिकेय और सूर्य मूर्ति अंकित है
ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के आसपास के यह सिक्के पूर्वी राजस्थान के क्षेत्रों से मिले हैं, इन सिक्को के अग्रभाग पर मनुष्य की आकृति और पृष्ठ पर नंदी की आकृति मिलती है, अग्रभाग की मनुष्य की मूर्ति पर राजन्य जनपस्य उत्कीर्ण मिलता है
टोंक जिले में उनियारा के निकट नगर अथवा कर्कोट नगर से लगभग 6000 तॉबे सिक्के प्राप्त हुए हैं, यह सिक्के भाऱ में हल्के और आकार में छोटे हैं, इन पर ब्राह्मी लिपि में लगभग 40 मालव सरदारों के नाम उत्कीर्ण है
जयपुर जिले के सांभर से लगभग 200 मुद्राएं प्राप्त हुई है, जिनमें से छः मुद्राएं चांदी की पंचमार्क है 6 मुद्राएं तांबे की है, जयपुर जिले के सांभर से इण्डो-सेसेनियर मुद्रा भी प्राप्त हुई है, यहां से इंडो-ग्रीक एन्टियकोजनिकेफोरस की एक चांदी की मुद्रा भी प्राप्त हुई है, यहां से प्राप्त यौधेय मुद्रा पर ब्राह्मी लिपि में बबुधना और गज शब्द उत्कीर्ण है
जयपुर जिले में स्थित बैराठ की सभ्यता से कुल 36 मुद्राएं प्राप्त हुई है, जो एक मिट्टी के मुद्रभांड में कपड़े से लिपटी हुई थी, इनमें से 84 मुद्राएं पंचमार्क और 28 इंडो ग्रीक शासकों की है, इन यूनानी मुद्राओं में सर्वाधिक 16 मुद्राएं प्रसिद्ध यूनानी शासक मिनेण्डर की है
हनुमानगढ जिले मे स्थित इस सभ्यता से उत्खनन में लगभग 105 सिक्के मिले है, पुरातत्ववेता श्री बीवर के अनुसार कुछ कुषाणकालीन सिक्के हैं,उन्हें मुरण्डा कहा गया, यहॉ से कनिष्क प्रथम का सिक्का भी मिला है इस पर यूनानी भाषा में "ओडो-वायु" उत्कीर्ण मिला है तथा एक अन्य सिक्के पर "नानाइया"उत्कीर्ण है
Specially thanks to Post Author - Mamta Sharma
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