राजस्थान के प्रशासनिक एकीकरण में कठिनाइयां

राजस्थान के बनने से पूर्व राजस्थान के निर्माण में कई कठिनाइयां आयी थी, जिसके कारण राजस्थान को बनाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था उनमें से कुछ समस्याएं निम्न हैं जैसे - 

राजस्थान के नरेशों का स्वाभिमानी होना

राजस्थान के समस्त नरेश ब्रिटिश हुकूमत के तो पूर्णत: गुलाम बन चुके थे, उनकी दास्तां में वे अपना हित समझते थे, टोक का नवाब पाकिस्तान के गीत गा रहा था लेकिन जहां तक उनकी आपसी प्रतिष्ठा का प्रश्न था वह सब अपने को एक दूसरे के समकक्ष समझते थे।

डूंगरपुर, बांसवाड़ा व शाहपुरा जैसी छोटी रियासतों के नरेश भी अपने को महाराणा जोधपुर नरेश, कोटा के महाराव से कम नहीं समझते थे। अतः जब कभी राजस्थान की रियासतों को मिलाकर एक इकाई में गठित करने की बात आई तो प्रत्येक नरेश का यही प्रयास रहा कि उस इकाई में वह अपने राज्य को प्रभावशाली रखें। 

इसके साथ ही उस इकाई में अपना पद भी गौरवशाली बनाए रखना चाहते थे

मेवाड़ के महाराणा भूपाल सिंह ने जब अपने नेतृत्व में संघ बनाना चाहा तो उन्होंने इसी नीति का आचरण किया, इसी प्रकार जयपुर नरेश मानसिंह ने राजस्थान की दक्षिण पूर्वी रियासतों का संघ बनाना चाहा तो उन्होंने भी जयपुर राज्य का महत्व रखते हुए अपने पद को सम्मानीय बनाए रखने का प्रयास किया।

उनकी इस नीति ने छोटी रियासतों के नरेशों के मस्तिष्क में शंका उत्पन्न कर दी, लेकिन जब इंग्लैंड की सरकार ने भारत की सत्ता भारतवासियों को सौपने का समय निर्धारित कर दिया तो रियासतों में खलबली मचना स्वाभाविक था। रियासतों के भविष्य के संदर्भ में ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट किया था कि भारत को स्वाभाविक ढांचे में समुचित रुप से अपना भाग अदा करने के लिए छोटी छोटी रियासतों को आपस में मिलकर बड़ी इकाइयां बना लेनी चाहिए या उन्हें पड़ोस की बड़ी रियासतों या प्रांतों में मिल जाना चाहिए

इसी संदर्भ में सितंबर 1946 में अखिल भारतीय देशी लोक परिषद भी यह निर्णय ले चुकी थी कि राजस्थान की कोई भी रियासत अपने आप में भारतीय संघ में शामिल होने के योग्य नहीं है, अतः समस्त राजस्थान को एक ही इकाई के रूप में भारतीय संघ में शामिल होना चाहिए

अतः समस्त राजपूताना की रियासतों को एक इकाई के रुप में संगठित करने का सर्वप्रथम कार्य कोटा महारावल भीम सिंह ने किया था, परंतु उसे विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई थी इस चेतावनी से छोटी रियासते अपने भविष्य के लिए भयातुर अवश्य थी। 

मेवाड़ के महाराणा भोपाल सिंह ने समय के बदलाव को पहचाना और समय का लाभ उठाते हुए उन्होंने पड़ोसी छोटी रियासतों को मिलाकर उनकी एक बड़ी इकाई बनाने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने सम्मेलनों का आयोजन किया।

महाराणा द्वारा आयोजित सम्मेलनों मे डूंगरपुर, प्रतापगढ़बांसवाड़ा, शाहपुरा आदि रियासतों के नरेश यही सोचने लगे कि महाराणा हमारा विलय कर के हमारे अस्तित्व को समाप्त करना चाहते हैं और वह मेवाड का प्रवाह क्षेत्र बढ़ाना चाहते हैं 

इसी प्रकार जब जयपुर नरेश मानसिंह की अनुमति से उनके प्रधानमंत्री वी टी कृष्णमाचारी ने प्रदेश के शासकों का सम्मेलन बुलाया। अलवर, भरतपुर व करौली को अपना अस्तित्व संकट में लगा। इसी प्रकार राजस्थान की अन्य छोटी रियासते भी पारस्परिक अविश्वास के कारण संघ में मिलने को तैयार नहीं हो रही थी

राजस्थान के नरेशों के विभिन्न दृष्टिकोण

राजस्थान की छोटी रियासतों के विलय के संदर्भ में राजस्थान की रियासतों को बड़ी ईकाई के रूप में बदलने के प्रस्ताव पर राजस्थान के लगभग सभी राजा सहमत थे, लेकिन वह अपने विचारों को असली जामा विभिन्न स्वरुपों में पहनाना चाहते थे।

मेवाड़ के महाराणा राजस्थान की बड़ी रियासतों जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर का अस्तित्व रखते हुए ऐसा संघ बनाना चाहते थे, जो एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में भावी भारतीय संघ में भूमिका निभा सके। जबकि कोटा के महाराव भीमसिंह कोटा, बूंदी व झालावाड को मिलाकर उनका एक संयुक्त संघ बनाना चाहते थे।

इसी प्रकार डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह डूंगरपुरबांसवाडा, कुशलगढप्रतापगढ़ को मिलाकर एक अलग इकाई बनाना चाहते थे। जबकी जयपुर नरेश अलवर और करौली को लेकर अलग संघ बनाना चाहते थे, नरेश के विभिन्न विचारों के कारण राजपूताने की रियासते आपस में एकता में परिणित नहीं हो पा रही थी।

जोधपुर वह बीकानेर नरेशो की अलग धारणा

जोधपुर नरेश हनुवंत सिंह ब्रिटिश सरकार की घोषणा के उपरांत अपनी नई धारणा बना रहा था, महत्वकांशी होने के कारण वह अपने राज्य के लिए अधिक सुविधाएं व अधिकार प्राप्त करने का इच्छुक था, धौलपुर का शासक उदयभान सिह उसे पाकिस्तान में मिलने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था।

भोपाल नवाब के माध्यम से जोधपुर नरेश ने पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना से मुलाकात की थी, मोहम्मद अली जिन्ना ने उसे निम्न प्रलोभन देने का आश्वासन देखकर अपना बनाने का प्रयास किया था

1. जोधपुर राज्य को कराची बंदरगाह की सभी सुविधाएं प्रदान की जावेगी
2. जोधपुर राज्य को शस्त्र आयत करने की छूट रहेगी
3. जोधपुर सिंध रेलवे पर जोधपुर का अधिकार रहेगा
4. जोधपुर राज्य को अकाल के समय यथेष्ट अनाज उपलब्ध कराया जाएगा

उपयुक्त प्रलोभनों से प्रभावित होकर जोधपुर नरेश पाकिस्तान में अपने राज्य केविलय के संदर्भ में मानस बना चुका था।

उसका साथ जैसलमेर व बीकानेर के नरेश भी दे रहे थे, लेकिन वी० पी० मेनन के ठीक समय पर किए गए प्रयासो व लॉर्ड माउंटबेटन के समझाने के कारण जोधपुर नरेश ने अपनी रियासत को पाकिस्तान में विलय करने का विचार त्याग दिया। इसके साथ ही जैसलमेर नरेश की हिंदुत्व की भावना ने भी उसको इस मार्ग से हटा लिया

जब जोधपुर नरेश जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान के साथ समझौता करने को उद्यत हो गए थे, तो उन्होंने जैसलमेर के नरेश से पूछा कि तुम मेरे साथ पाकिस्तान में विलय पर हस्ताक्षर करोगे या नहीं 

प्रत्युतर मे जैसलमेर के राजा ने कहा कि यदि हिंदू व मुसलमानों के मध्य कोई संकट उत्पन्न हुआ तो वह हिंदुओं के विरुद्ध मुसलमान का साथ नहीं देगा। जैसलमेर के नरेश का यह कहना जोधपुर के नरेश को एक वज्रपात के सदृश लगा, उसने पाकिस्तान में विलय का विचार त्याग भारतीय संघ में मिलने का इरादा कर लिया।

इसी प्रकार बीकानेर नरेश शार्दुलसिह पहले बीकानेर को राजस्थान संघ में विलय करने के पक्ष में नहीं था, दिसंबर 1946 में वी० पी० मेनन बीकानेर नरेश से भी इसी संदर्भ में मिले थे, उन्होंने वी० पी० मेनन को इनकार कर दिया लेकिन जब जैसलमेर, जोधपुर के नरेश राजस्थान में विलय के लिए राजी हो गए,  तब कहीं बीकानेर नरेश ने राजस्थान मे  विलय की सहमति दे दी थी।

30 मार्च 1949 को जब वृहद राजस्थान का निर्माण हो गया तो बीकानेर रियासत का अस्तित्व ही समाप्त हो गया, इस प्रकार जोधपुर, बीकानेर रियासत के नरेश ने भी राजस्थान के निर्माण में कुछ विलंब किया था

Specially thanks to Post Author - Mamta Sharma, Kota Rajasthan

आपको हमारी पोस्ट कैसी लगी नीचे Comment Box में अपने विचार जरूर लिखे – धन्यवाद


0 Comments

Leave a Reply Cancel

Add Comment *

Name*

Email*

Website