जुलाई 1945 को इंग्लैंड में अनुदार दल के नेता विंस्टन चर्चिल को परास्त कर मजदूर दल की सरकार का गठन हुआ था, इस दल के नेता मिस्टर एटली इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने थे। मजदूर दल को भारत की स्वतंत्रता के प्रति पहले से ही सहानुभूति थी, अतः सत्ता में आते ही एटली ने 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश संसद में घोषणा कर दी थी कि जून 1948 तक भारत की राज्य सत्ता जिम्मेदार भारतीयों को सौंप दी जाएगी।
इस घोषणा के उपरांत भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवल ने 24 मार्च 1947 को अपने पद से त्याग पत्र दे दिया, लार्ड वेवल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन को गवर्नर बना दिया गया। लॉर्ड वेवेल को इंग्लैंड वापस बुला लिया गया था
लॉर्ड माउंटबेटन ने सांप्रदायिक उन्माद से देश को बचाने के उद्देश्य से सत्ता के हस्तांतरण का कार्य शीघ्रातिशीघ्र करने का फैसला किया, लार्ड माउंटबेटन की नियुक्ति पर लार्ड इस्मेने कहा था कि माउंटबेटन ऐसे समय जहाज का संचालन संभाल रहे हैं जबकि जहाज समुंदर के बीच में है उसमें बारुद बढ़ा हुआ है और उसके ऊपर आग लगी हुई है
परंतु लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने को एक योग्य और सफल नाविक सिद्ध किया, धीरे धीरे जहाज को उस पार तक पहुंचाने में जो दुष्कर कठिनाइयां सामने आ रही थी, उनका हृदय से सच्चा समाधान करते हुए भारतीय जहाज को स्वतंत्रता की मंजिल पर पहुंचा दिया
ब्रिटिश संसद ने वायसराय का तत्संबंधी प्रस्ताव 3 जून 1947 को भारत के स्वतंत्रता विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दी, ब्रिटिश सरकार की पुष्टि होते ही लॉर्ड माउंटबेटन ने 4 जून 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा की, जिससे यह प्रावधान किया गया कि ब्रिटिश सरकार 15 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तांतरित कर देगी
देसी रियासतों का यह अधिकार सुरक्षित रखा गया कि वह भारत संघ में विलय हो या पाकिस्तान में मिले अथवा स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दे, इसी बीच 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया
निसंदेह है इस महान कार्य का श्रेय राष्ट्रीय कांग्रेस को और राजस्थान के राज्य में गठित प्रजा मंडलों को जाता है, 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद अवश्य हो गया था, लेकिन अखंड भारत के रूप में ना की खंडित भारत के रूप में आजाद हुआ था
भारत के ही कुछ प्रांतों को भारत से विलग कर पाकिस्तान नाम का एक नवीन राष्ट्र गठित कर दिया गया, इसके अलावा इस स्वतंत्रता अधिनियम के अंतर्गत केवल प्रत्यक्ष रुप से ब्रिटिश शासित प्रांतों को ही स्वतंत्रता मिली थी। इन 9 प्रांतों के अलावा भारत में लगभग 565 देसी रियासते ओर थी जो कि नरेशों द्वारा वंशानुगत अधिकार के आधार पर शासित होती थी
स्वतंत्रता अधिनियम ने रियासतों पर से अंग्रेजों की सर्वोच्चता अवश्य समाप्त कर दि थी, परंतु यह नरेशो की इच्छा पर छोड़ दिया गया था कि वह चाहे भारत में मिले या पाकिस्तान में इसके अलावा उन्हें स्वतंत्र रहने की भी छूट दी गई थी, अतः स्वतंत्रता अधिनियम की आठवीं धारा ने भारतीय स्वतंत्रता को संकटग्रस्त बना दिया, लेकिन भारत के लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी दूरदर्शिता व कूटनीति से इन रियासतों के मामले को इस प्रकार हल किया कि भारत अनेक खंडों में खंडित होने से बच गया। सैकड़ों की संख्या में विद्यमान देसी रियासतों को मुट्ठी भर राज्यों में बदल दिया गया, देसी रियासतों की आपसी गठन की कार्रवाई
नरेंद्र मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खानने राजपूताने की रियासतों को पाकिस्तान में मिलने के लिए प्रेरित किया. ताकि उन रियासतों की सीमा पाकिस्तान से मिल जाए, इस प्रकार से भोपाल राज्य की सीमा पाकिस्तान से जा लगेगी
उसी की तरह इंदौर के महाराजा यशवंत राव होल्कर को भी कांग्रेसी नेताओं पर कोई भरोसा नहीं था, राजपूताने के बीकानेर और उदयपुर आदि देशी राज्यों ने आरंभ से ही भारत संघ में मिलने का निर्णय कर लिया और भोपाल नवाब के प्रयासों को नकार दिया गया
एक और तो कांग्रेस देशी रियासतो के प्रति अपनी कठोर नीति का प्रदर्शन कर रही थी, दूसरी और मुस्लिम लीग ने ठीक इसके विपरीत बड़ा ही मुलायम रवैया अपनाया। पाकिस्तान का संस्थापक और मुस्लिम लीग का अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना यह प्रयास कर रहा था कि अधिक से अधिक संख्या में देशी रियासते अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दे या फिर पाकिस्तान में शामिल हो जाए।
ताकि भारतीय संघ स्थाई रूप से दुर्बल बन सके, भोपाल का नवाब हमीदुल्ला खां जिन्ना की योजना में शामिल हो गया
जिसके तहत राजाओं को अधिक से अधिक संख्या में या तो पाकिस्तान में मिलने के लिए प्रोत्साहित करना था या फिर उनसे यह घोषणा करवानी थी कि वह अपने राज्य को स्वतंत्र रखेंगे।
भोपाल नवाब चाहता था कि उसे भोपाल से लेकर कराची तक के मार्ग में आने वाली रियासतों का एक समूह बन जाए और यह समूह पाकिस्तान में मिल जाए इसीलिए उसने जिन्ना की सहमति से एक योजना बनाई थी बड़ौदा, इंदौर, भोपाल, उदयपुर, जोधपुर और जैसलमेर रियासतो द्वारा शासित प्रदेश पाकिस्तान का अंग बन जाए। उनकी इस योजना में सबसे बड़ी बाधा उदयपुर और बड़ौदा की ओर से उपस्थित हो सकती थी,
हमीदुल्ला खा ने धोलपुर नरेश महाराज राणा उदय भान सिंह को भी इस योजना में शामिल कर लिया, वास्तव में भोपाल के नवाब और धौलपुर के महाराज राणा देशी नरेशों के उस गुटके नेता थे जो किसी भी मूल्य पर अपने राज्यों को भारतीय संघ में नहीं मिलाने की घोषणा करते रहे। भरतपुर और अलवर के राजाओं ने तो कांग्रेस की केंद्रीय सरकार का तख्ता पलट देने की भी साजिश की थी
देसी रियासतों के मसले को हल करने के लिए 25 जून 1947 को भारत की अंतरिम सरकार ने निर्णय लिया कि एक नये रियासती विभाग का गठन किया जाए, इस निर्णय के अनुसार 5 जुलाई 1947 को सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में रियासती विभाग गठित किया गया| इस रियासती विभाग के सलाहकार व सचिव वी पी मेनन को नियुक्त किया गया, वी पी मेनन को देशी नरेशों के बारे में जानकारी थी।
वह उस समय माउंट बेटन के संवैधानिक सलाहकार के पद पर कार्यरत थे, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजाओं के नाम एक वक्तव्य प्रकाशित करवाया, जिसमें उन्होंने देसी राज्यों को नये संघ शासन में सम्मिलित होकर एकता को बनाए रखने की अपील की। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा कि वह 15 अगस्त 1945 से पूर्व भारत संघ में शामिल हो जाए।
बीकानेर नरेश शार्दुल सिंह सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस घोषणा का तुरंत स्वागत किया, अपने बंधु राजाओं से अनुरोध किया कि वे इस प्रकार आगे बढ़ाए गये मित्रता के हाथ को थाम ले।
दूसरी और जोधपुर के राजा हनुवंतसिंह ने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना व नरेंद्र मंडल के अध्यक्ष भोपाल के नवाब श्री हमीदुल्ला खां से मिलकर अपनी रियासत को एक स्वतंत्र इकाई रखना चाहता था। लेकिन इस षड्यंत्र का पता चलते ही वी०पी०मेनन व लार्ड माउंटबेटन ने बड़ी चतुराई व कूटनीति से उन्हें भारत में सम्मिलित होने के लिए राजी कर लिया और 10 अगस्त 1947 को जोधपुर के राजा हनुवंतसिह से विलिनीकरण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए गए।
प्रारंभ में धौलपुर व जैसलमेर महाराजा भी महाराजा हनुमत सिंह के साथ थे, लेकिन बाद में वह भारत संघ में ही मिल गए इस प्रकार V. P. Menon व सरदार वल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छाशक्ति योग्यता दूरदर्शिता व चतुराई के बल पर 15 अगस्त 1947 तक सभी देसी रियासतों का एकीकरण हुआ व अखंड भारत का स्वरूप सामने आया
लार्ड माउंटबेटन ने देसी रियासत के लिए दो प्रकार के प्रपत्र तैयार करवाए़ -
1. पहला प्रपत्र इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन था। यह एक प्रकार का मिलाप पत्र था, जिस पर हस्ताक्षर कर के कोई भी राजा भारतीय संघ में शामिल हो सकता था और अपना आधिपत्य केंद्र सरकार को समर्पितकर सकता था
2. द्वितीय पत्र स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट था - यह एक प्रकार से यथास्थिति के लिए सहमति पत्र था
25 जुलाई 1947 को वायसराय ने दिल्ली में नरेंद्र मंडल का एक पूर्ण अधिवेशन बुलाया, वायसराय ने राजाओं को न केवल इस बात के लिए हतोत्साहित किया कि वह अपने राज्य को स्वाधीन इकाई के रूप में रखे बल्कि उन्होंने हिंदू बहुल क्षेत्रों के राजाओं को सलाह दी थी कि वह अपने राज्यो का विलय भारत में ही करें।
उनमें से अधिकांश को समझ में आने लगा था कि या तो अत्यंत असम्मानजनक तरीके से हमेशा के लिए मिट जाओ या फिर किसी तरह सम्मानजनक तरीके से अपनी खुद संपत्ति तथा कुछ अधिकारों को बचा लो
लॉर्ड माउंटबेटन ने भारतीय नरेशो से दोनों दस्तावेजों Instrument of Education और Standstill Agreement पर हस्ताक्षर करने का परामर्श दिया, 15 अगस्त 1947 के पश्चात सिर्फ जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर के राज्य तथा पुर्तगाली और फ्रांसीसी उपनिवेशों का भारत में सम्मिलित होना शेष था, बाकी सभी रियासतों में विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे
Specially thanks to Post Author - Mamta Sharma, Kota Rajasthan
आपको हमारी पोस्ट कैसी लगी नीचे Comment Box में अपने विचार जरूर लिखे – धन्यवाद
0 Comments