प्रागैतिहासिक काल से 18 वीं शताब्दी के अवसान तक राजस्थान के इतिहास के महत्वपूर्ण सोपान तथा प्रमुख राजवंश
अतिलघुतरात्मक (15 से 20 शब्द)
प्र 1. बागौर के बारे में बताइए ?
उत्तर- बागौर कोठारी नदी (भीलवाड़ा) में स्थित प्राचीन सभ्यता है जहाँ से मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल के साक्ष्य और कृषि तथा पशुपालन के सबसे प्राचीन साक्ष्य मिलते है।
प्र 2. रणकपुर प्रशस्ति ?
उत्तर-महाराणा कुंभा के समय धरनक शाह द्वारा 1439 ई में स्थापित प्रशस्ति जिसमें बप्पा और रावल को अलग अलग व्यक्ति बताया गया है तथा कुम्भा की प्रारंभिक विजयों का पता चलता है।
प्र 3. चंपानेर समझौता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- महाराणा कुंभा के विरुद्ध मालवा व गुजरात के सुल्तानों का 1456 ईस्वी में चंपानेर एक समझौता था। समझौते के अनुसार दोनों की संयुक्त सेना मेवाड विजय कर मेवाड़ को आपस में बांट लेंगे, लेकिन कुंभा ने उन्हें विपुल कर दिया।
प्र 4. खानवा युद्ध के बारे में बताइए।
उत्तर- राणा सांगा एवं बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 ईस्वी को खानवा (भरतपुर) युद्ध हुआ। तोपखाने तथा सलहदी तंवर के विश्वासघात के कारण बाबर विजयी हुआ तथा भारत में मुगल वंश स्थापित करने में सफल रहा। यह पहला एवं अंतिम अवसर था जब सभी राजपूत शासक एकजुट होकर शत्रु के विरुद्ध लड़े।
प्र 5. सपादलक्ष ?
उत्तर- बिजौलिया शिलालेख के अनुसार सांभर का प्राचीन नाम सपादलक्ष था जहां 551 ईस्वी में वासुदेव चहमान ने चौहान राज्य की स्थापना की। उसने अहिच्छत्रपुर (नागौर) को राजधानी बनाया था तथा सांभर झील का निर्माण करवाया।
प्र 6. नागभट्ट प्रथम ?
उत्तर- यह आठवीं सदी में गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रतापी शासक था जिसका दरबार 'नागावलोक का दरबार' कहलाता था। जिसमें तत्कालीन समय के सभी राजपूत वंश यथा गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चालुक्य आदि उसके सामंत की हैसियत से रहते थे।
लघूतरात्मक (50 से 60 शब्द)
प्र 7. बिजोलिया शिलालेख ?
उत्तर- गुण भद्र द्वारा 12 वीं सदी में संस्कृत भाषा में रचित अभिलेख जिसमें शाकंभरी के चौहानों का इतिहास तथा तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक दशा का वर्णन किया गया है। इस अभिलेख के अनुसार चौहानों के आदि पुरुष वासुदेव चौहान वत्स गोत्र ब्राह्मण था, जिसने शाकंभरी में चौहान राज्य की स्थापना की। उसे सांभर झील का निर्माता भी कहा गया है।
इसमें प्राचीन स्थलों के नामों की जानकारी भी मिल जाती है जैसे जालौर (जाबालिपुर), सांभर (शाकंभरी), भीनमाल (श्रीमाल), नागौर (अहिच्छत्रपुर) आदि। लेखक ने प्रशस्ति में अपनी विद्वता का परिचय अनुप्रास, श्लेष और विरोधाभास के प्रयोग द्वारा दिया है
प्र 8. राणा कुंभा का दुर्ग स्थापत्य में योगदान बताइए।
उत्तर- कुंभा ने परंपरागत दुर्ग शैली में सामरिक आवश्यकता एवं सुरक्षा का अंश मिलाकर उसे विशेष रूप से पल्लवित एवं विकसित किया। कविराजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुंभा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया जिनमें कुंभलगढ़, अचलगढ़, बसंतीगढ़, मचानगढ आदि बड़े प्रसिद्ध है
तथा चित्तौड़गढ़ जैसे पुराने अनेक दुर्गों का जीर्णोद्धार करवाया। सभी दुर्गों में सादगी पूर्ण शाही आवास, सैन्य आवास, कृषि भूमि, जल व्यवस्था, मंदिर, गोदाम आदि का निर्माण सैनिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया। कुंभलगढ़ का दुर्ग राणा कुंभा की गौरव गाथा का प्रतीक है।
प्र 9. वीर दुर्गादास का मारवाड़ के इतिहास में स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर- स्वामी भक्त वीर शिरोमणि दुर्गादास महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण के पुत्र थे। यह जसवंत सिंह की सेना में रहे। महाराजा की मृत्यु के बाद उनकी रानियों, खालसा हुए जोधपुर के उत्तराधिकारी अजीत सिंह की रक्षा के लिए मुगल सम्राट औरंगजेब से उसकी मृत्यु पर्यंत राठौड़- सिसोदिया संघ का निर्माण कर संघर्ष किया।
शहजादा अकबर को औरंगजेब के विरुद्ध सहायता दी तथा शहजादा के पुत्र- पुत्री को इस्लामोचित शिक्षा देकर मित्र धर्म निभाया एवं सहिष्णुता का परिचय दिया। अंत में महाराजा अजीत सिंह से अनबन होने पर सकुटुंब मेवाड़ चला आया और अपने स्वावलंबी होने का परिचय दिया। उसकी वीरता एवं साहस के गुणगान में मारवाड़ में यह उक्ति प्रचलित है- 'मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास'।
प्र 10. राजकुमारी चारुमति के विवाह की समस्या क्या थी ? इसका क्या समाधान निकला ?
उत्तर- चारुमति किशनगढ़ के राजा मानसिंह की बहन थी जिसका विवाह मानसिंह ने औरंगजेब के साथ करना स्वीकार किया। औरंगजेब ने 1658 ईस्वी में चारुमति से विवाह करने के लिए अपना डोला भिजवाया परंतु चारुमति ने इसका विरोध किया और उसने महाराजा राजसिंह को पत्र लिखकर उसे विवाह करने का अनुरोध किया।
राज सिंह सिसोदिया मुगल सम्राट औरंगजेब के विरोध की परवाह किए बिना ससैन्य किशनगढ़ पहुंचा और चारुमति से विवाह कर उसे अपने साथ ले आया। यह घटना औरंगजेब के लिए अपमानजनक थी। उसने नाराज होकर महाराणा से अनेक परगने भी छीन लिए।
प्र 11. सवाई जयसिंह एक समाज सुधारक के रूप में हमेशा अग्रणी शासकों की पंक्ति में खड़ा रहेगा। विवेचना कीजिए। (निबन्धात्मक प्रश्न)
उत्तर- वह पहला राजपूत हिंदू शासक था जिसने सती प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की। वह पहला हिंदू राजपूत राजा था जिसने विधवा पुनर्विवाह को वैधता प्रदान करने हेतु नियम बनाए तथा उन्हें लागू करने का प्रयास किया।
सवाई जयसिंह पहला शासक था जिसने अंतर्जातीय विवाह प्रारंभ करने का प्रयास किया। उसने विवाह के अवसर पर अधिक खर्च करने और विशेष रूप से राजपूतों में विवाह के समय अपव्यय करने की प्रथा पर रोक लगवाई।
जनहित कल्याणकारी संस्थाओं को बनाकर जिनमें कुएँ, धर्मशाला, अनाथालय सदा व्रत आदि मुख्य थे, उसने समाज के हित की रक्षा की।
सवाई जयसिंह ने यह नियम बना दिया कि भविष्य में वैरागी, स्वामी व सन्यासी अस्त्र-शस्त्र नहीं रखेंगे। संपत्ति जमा नहीं करेंगे और अपने घरों में स्त्रियां नहीं रखेंगे। वैरागियों व साधुओं को गृहस्थ जीवन की ओर प्रेरित किया ताकि कुछ वर्गों में बढ़ते हुए व्यभिचार पर रोक लगे। उसने मथुरा में उनके लिए वैराग्य पूरा नाम की एक बस्ती भी बसाई।
उसने ब्राह्मणों की अनेक उप जातियों में भोजन व्यवहार का अंतर कम करने का प्रयास किया। उसके कहने पर छह उप जातियों में बंटे ब्राह्मणों ने साथ बैठकर भोजन करना स्वीकार किया। यह ब्राह्मण छन्यात कहलाए। उसने संस्कृत भाषा के ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए व्यापक कार्य किए।
सवाई जय सिंह एवं महा राजा रायमल ने विधवा के अधिकार और पालन पोषण से संबंधित समस्या को हल करने का प्रयत्न किया। सवाई जयसिंह ने तो विधवाओं के पुनर्विवाह के संबंध में नियम भी बनाए। कोटा व जयपुर के अभिलेखों में विधवाओं को सहायतार्थ शुल्क देने का भी उल्लेख मिलता है।
उपरोक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि सवाई जयसिंह विद्वान, साहित्य अनुरागी और निर्माणकर्ता ही नहीं बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे।
प्र 12. राजपूतों की उत्पत्ति विषयक विभिन्न मत
पृथ्वीराज रासो के रचनाकार चंद्रवरदाई ने राजपूतों की उत्पत्ति के संबंध में सर्वप्रथम अग्निकुल से उत्पत्ति का मत दिया।
नैंणसी और सूर्यमल मिश्रण ने इस मत को बढ़ा चढ़ाकर लिखा।
वशिष्ठ मुनि द्वारा अपने यज्ञ की राक्षसों से सुरक्षा करने के लिए आबू के यज्ञ कुंड से चार राजपूत योद्धा परमार, प्रतिहार, चौहान एवं चालुक्य उत्पन्न किए जिनसे इन राजपूत वंशों का आविर्भाव हुआ परंतु आज के वैज्ञानिक युग में यह मत इतिहास के पाठक को संतुष्ट नहीं कर पाता है।
राजपूत इतिहास के मर्मज्ञ डॉक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कई साहित्यिक एवं अभिलेखीय प्रमाणों के आधार पर राजपूतों को सूर्यवंशी चंद्रवंशी माना है।
कर्नल टॉड और स्मिथ जैसे विदेशी विद्वानों ने राजपूतों को शक और सिथियन जैसी विदेशी जातियों की संतान माना है।
डॉक्टर डी आर भंडारकर जैसे इतिहासकार ने भी राजपूतों को गुर्जर जाति से उत्पन्न मान कर विदेशी वंश उत्पत्ति के मत को दृढ़ता प्रदान की क्योंकि अनेक विद्वान गुर्जरों को विदेशी मानते हैं।
डॉक्टर भंडारकर ने कुछ राजपूत वंश को ब्राह्मण वंशीय भी माना है। बिजोलिया शिलालेख के आधार पर वह चौहानों को वत्स गोत्र ब्राह्मण मानते हैं लेकिन डॉक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझा और सी वी वैद्य ने भंडारकर के इस मत को अस्वीकार कर दिया।
इस प्रकार राजपूतों की उत्पत्ति के संबंध में कोई सर्वसम्मत मत स्थिर नहीं किया जा सका है।
यह कहा जा सकता है कि विदेशी जातियों का भारतीय युद्धोपजीवी जातियों में विलीनीकरण हो गया। प्राचीन क्षत्रिय शासकों के अवशेष रूप और शासक होने के कारण उन्हें राजपुत्र कहा जाने लगा और कालांतर में यही राजपुत्र 'राजपूत' के नाम से अभिहित किए गए।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
0 Comments