प्रश्न 1. राव चंद्रसेन को प्रताप का अग्रगामी तथा मारवाड़ का प्रताप कहा जाता था क्यों
Ans - चंद्रसेन अकबरकालीन राजस्थान का प्रथम स्वतंत्र प्रकृति का शासक था उसके भाई शाही सत्ता का सुख भोगते रहे,वहीं उसे अपने रतन आभूषण बेचकर गुजारा चलाना पड़ा। चंद्रसेन ने जोधपुर राज्य को छोड़कर रात दिन पहाड़ों में घूमना और मुग़ल सैनिकों से लड़ते रहना अंगीकार कर लिया किंतु अधीनता स्वीकार नहीं की।
संघर्ष की जो शुरुआत चंद्रसेन की उसी राह पर आगे चलकर महाराणा प्रताप ने प्रसिद्धि प्राप्त की। इसी कारण चंद्रसेन को प्रताप का अग्रगामी तथा मारवाड़ का प्रताप भी कहा जाता है।
प्रश्न2. महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएं बताएं
Ans. निहत्थे पर वार नहीं करना- उन्होंने कभी भी निहत्थे पर वार नहीं करने का प्रण ले रखा था वह सदैव दो तलवारें रखते थे एक तलवार दुश्मन को देने के लिए भी रखते थे। मेवाड़ का राज्य चिन्ह सामाजिक समरसता का प्रतीक हैं एक तरफ क्षत्रीय और एक तरफ भीथ योद्धा, सर्व समाज समभाव का सूचक है। महाराणा प्रताप सभी के प्रिय थे सब लोग उनके लिए प्राण देने के लिए तैयार रहते थे।
स्वतंत्रता प्रेमी- महाराणा प्रताप स्वाधीनता प्रेमी थे अनेक कष्टों के बाद भी किसी भी कीमत पर अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए।
धर्म रक्षक और राज्य चिन्ह सम्मान- धर्म रक्षक और राज्य चिन्ह की सदैव रक्षा की। उनकी मान्यता थी "जो दृढ़ राखे धर्म को तिहि राखे करतार"।
शील-नारी सम्मान - नारी सम्मान के लिए भारतीय परंपरा का उदाहरण प्रस्तुत किया। कुंवर अमरसिंह ने 1580 में जब अचानक शेरपुर के मुगल शिविर पर आक्रमण का सूबेदार खानखाना के परिवार को बंदी बना लिया गया,तो प्रताप ने खानखाना की स्त्रियों एवं बच्चों को ससम्मान एवं सुरक्षित वापस लौटाने के आदेश भिजवाए।
उनकी विलक्षण सहयोगी प्रतिभा के कारण ही भामाशाह ने अपनी समस्त संपदा महाराणा के चरणों में समर्पित कर दी।
प्रश्न 3. पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन कीजिए
Ans - पृथ्वीराज चौहान एक वीर और साहसी योद्धा था अपने शासनकाल के प्रारंभ से ही वह युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहता था जो उसे अच्छे सैनिक और सेनाअध्यक्ष होने को प्रमाणित करता है। अनेक युद्धों में सफलता प्राप्त कर उसने "दलपुंगल" अर्थात विश्व विजेता की उपाधि धारण की।
तराइन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद गोरी द्वारा छल कपट का सहारा लेने से पूर्व वह किसी भी लड़ाई में नहीं हारा था एक विश्व विजेता के साथ साथ वह विद्यानुरागी था उसके दरबार में अनेक विद्वान रहते थे जिनमें विद्यापति गौंड़, वागीश्वरी,जनार्दन, जयानक,विश्वरूप,आशाधर आदि प्रमुख थे। चंदबरदाई उसका राज कवि था जिसका ग्रंथ "पृथ्वीराज रासो" हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।
प्रश्न 4. पृथ्वीराज चौहान की हार के प्रमुख कारणों की समीक्षा कीजिए।
Ans - विश्व विजेता होने के बावजूद भी पृथ्वीराज चौहान में दूरदर्शिता और कूटनीति का अभाव था उसने अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित नहीं किए अपितु उनके साथ युद्ध करके शत्रुता कर ली। इसी कारण मोहम्मद गोरी के विरुद्ध संघर्ष में उसे किसी का भी सहयोग नहीं मिल पाया। 1178 ईस्वी में जब मोहम्मद गोरी ने गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय पर आक्रमण किया था
उस समय पृथ्वीराज चौहान ने गुजरात की कोई सहायता न करके एक बहुत बड़ी भूल की। तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित होकर भागती तुर्क सेना पर आक्रमण ना करना भी उसकी एक भयंकर भूल सिद्ध हुई। यदि उस समय शत्रु सेना पर प्रबल आक्रमण करता तो मोहम्मद गौरी भारत पर पुनः आक्रमण करने के बारे में कभी नहीं सोचता। संयोगिता के साथ विवाह करने के बाद उसने राजकार्यों की उपेक्षा कर अपना जीवन विलासिता में व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया था।
प्रश्न 5. राणा सांगा की पराजय के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिए
Ans. इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार सांगा की पराजय का मुख्य कारण बयाना विजय के तुरंत बाद ही युद्ध न करके बाबर को तैयारी का पूरा समय देना था। लंबे समय तक युद्ध को स्थगित रखना महाराणा की बहुत बड़ी भूल सिद्ध हुई। महाराणा के विभिन्न सरदार देश प्रेम के भाव से इस युद्ध में शामिल नहीं हो रहे थे सभी के अलग-अलग स्वार्थ थे यहां तक कि कईयों में तो परस्पर शत्रुता भी थी संधिवार्ताओं के कारण कई दिन शांत बैठे रहने से उन्हें युद्ध के प्रति वह जोश व उत्साह नहीं रहा जो युद्ध के लिए रवाना होते समय था
राजपूत सैनिक परंपरागत हथियारों से युद्ध लड़ रहे थे वह तीरकमान भालों और तलवारों से बाबर की तोपों के गोलों का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
हाथी पर सवार होकर भी सांगा ने बहुत बड़ी भूल की क्योंकि इससे शत्रु को उस पर सटीक निशाना लगाकर घायल करने का मौका मिला। उसके युद्ध भूमि से बाहर जाने से सेना का मनोबल काफी कमजोर हुआ।
राजपूत सेना में एकता और तालमेल का अभाव था क्योंकि संपूर्ण सेना अलग-अलग सरदारों के नेतृत्व में एकत्रित हुई थी
अपनी गतिशीलता के कारण राजपूतों की सेना पर बाबर की अश्व सेना भारी पड़ी। बाबर की तोपों के गोलों से भयभीत हाथियों ने पीछे लौटते समय अपनी सेना को रौंदकर नुकसान पहुंचाया।
प्रश्न-6 "बीघोड़ी"
उत्तर- राजस्व का निर्धारण प्रति बीघा भूमि की उर्वरा एवं पैदावार के आधार पर किया जाता था जिसे "बीघोड़ी" कहा जाता था।
प्रश्न-7 "सनद"
उत्तर- यह एक प्रकार की स्वीकृति होती थी जिसके द्वारा मुगल सम्राट अपने अधीनस्थ राजाओं को जागीर प्रदान करता था।
प्रश्न-8 पुरंदर की संधि कब और किसके बीच हुई।
उत्तर- पुरंदर की संधि 1665 में शिवाजी और जयसिंह के बीच हुई।
प्रश्न-9 "घुड़ला त्यौहार"
उत्तर- यह त्यौहार राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में चैत्र कृष्णा अष्टमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक मनाया जाता है। इस त्यौहार में स्त्रियां एकत्रित होकर कुम्हार के घर जाकर छिद्र किए हुए एक घड़े में दीपक रखकर अपने घर गीत गाती हुई वापस लौटती हैं। यह घड़ा बाद में तालाब में बहा दिया जाता है। इस त्यौहार पर चैत्र सुदी तीज को मेला भी भरता है।
( लघुरात्मक प्रश्न )
प्रश्न-10 "औरंगजेब के समय राजपूत-मुगल सहयोग का अवसान काल था" उक्त कथन को स्पष्ट कीजिए
उत्तर- औरंगजेब के समय बीकानेर के राव कर्णसिंह ने निरंतर विद्रोही रवैया अपनाया जिससे तंग आकर औरंगजेब ने कर्णसिंह के पुत्र अनूप सिंह को बीकानेर राव बना दिया गया।
जोधपुर के शासक जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद नागौर के शासक इंद्रसिंह की ओर से अपना झुकाव बनाकर जसवंत सिंह के पुत्र अजीतसिंह और उसके सहयोगियों को नष्ट करने की नीति अपनाई। औरंगजेब ने अजीतसिंह के बजाय इंद्रसिंह को जोधपुर के लिए टीका भेजा। जिसका सभी राठौड़ों ने दुर्गादास के नेतृत्व में पुरजोर विरोध किया।
कोटा के महाराव किशोरसिंह के उत्तराधिकारी रामसिंह को "राव" की उपाधि देकर यह स्पष्ट कर दिया कि सम्राट की इच्छा सर्वोपरि है।
यहीं कारण है कि औरंगजेब के समय को राजपूत मुगल सहयोग का अवसान काल कहा जाता है।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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