राजस्थान की धरोहर- प्रदर्शन व ललित कलाएं, हस्तशिल्प व वास्तुशिल्प
अतिलघुतरात्मक ( 15 से 20 शब्द )
प्र 1. हेला ख्याल ?
उत्तर- यह राजस्थान के लालसोट, करौली शसवाई माधोपुर क्षेत्र में प्रदर्शित किया जाने वाला रंगमंच है। जिसमें नौबत वाद्य यंत्र की थाप पर समसामयिक एवं पौराणिक विषयों पर लंबी टेर के साथ हेला दिया जाता है।
प्र 2. फड़ चित्रण ?
उत्तर- रेजी अथवा खादी के कपड़े पर लोक देवी-देवताओं की पौराणिक, ऐतिहासिक कथाओं का चित्रण फड चित्रण कहलाता है। शाहपुरा, भीलवाड़ा इसका प्रमुख केंद्र है तथा श्री लाल जोशी ख्याति प्राप्त फड चितेरे हैं।
प्र 3. सांगानेरी प्रिंट ?
उत्तर- सांगानेरी प्रिंट अपनी ठप्पा छपाई, वेजेटेबल कलर एवं अत्यंत आकर्षक सुरुचिपूर्ण अलंकरण के कारण संसार भर में प्रसिद्ध हो गई है। इस में मुख्यतः लाल व काला रंग का प्रयोग किया जाता है।
प्र 4. बेणेश्वर धाम ?
उत्तर- बागड़ का कुंभ या आदिवासियों के कुंभ के नाम से प्रसिद्ध डूंगरपुर का बेणेश्वर धाम सोम, माही, जाखम तीनों नदियों के संगम पर नवा टापरा गांव में स्थित है। बेणेश्वर स्थित शिव मंदिर इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए सर्वाधिक पूज्य माना जाने वाला आस्था स्थल है।
प्र 5. नाकोड़ा ?
उत्तर- नाकोडा, बालोतरा जंक्शन से लगभग 9 किलोमीटर दूर पश्चिम में जैन संप्रदाय का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। 12-13 वींशताब्दी के इस स्थल पर 23 वें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ व नाकोड़ा भैरव जी का प्रसिद्ध मंदिर है। नाकोड़ा मेवानगर के नाम से भी जाना जाता है।
लघूतरात्मक (50 से 60 शब्द)
प्र 6. चित्तौड़गढ़ दुर्ग का ऐतिहासिक एवं स्थापत्य महत्व समझाइए ।
उत्तर- गिरि दुर्गों में राजस्थान का गौरव चित्तौड़गढ़ सबसे प्राचीन व प्रमुख है जिसका निर्माण चित्रांगद मोर्य ने किया तथा कुंभा ने परिवर्धन किया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर इतिहास के प्रसिद्ध 3 शाके हुए। मातृभूमि और स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीरता और बलिदान की जो रोमांचक गाथाएं चित्तौड़गढ़ के साथ जुड़ी है वह अन्यत्र दुर्लभ है।
यह रानी पद्मिनी का जौहर, गोरा, बादल व जयमल- फत्ता के पराक्रम का साक्षी रहा है। यहां विजय स्तंभ, कीर्ति स्तंभ, पद्मिनी महल, कुंभश्याम मंदिर आदि अनेक स्मारक इसकी गौरव गाथा के साक्षी है।
प्र 7. बूंदी शैली की चित्रकला पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर- राव उमेद सिंह के समय बूंदी शैली का समृद्ध स्वरुप उभरा। इस पर मेवाड़ तथा मुगल शैली का प्रभाव रहा है। आकृतियां लंबी, पतले शरीर, स्त्रियों के अरुण अधर, पटोलाक्ष, नुकीली नाक, प्रकृति का सुरम्य सतरंगा चित्रण, श्वेत, गुलाबी,, लाल, हिंगलू, हरा रंगों का प्रयोग बूंदी शैली की विशेषता रही है।
राग रागिनी, नायिका भेद, ऋतु वर्णन, बारहमासा, दरबार, शिकार आदि इस शैली के विषय रहे हैं। बूंदी शैली का भित्ति चित्रण पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। राजस्थानी शैली का पूर्ण विकास बूंदी शैली में दृष्टिगोचर होता है।
प्र 8. शेखावाटी ख्याल ?
उत्तर- चिड़ावा ख्याल राजस्थानी लोक नाट्य की सबसे लोकप्रिय विधा है। चिड़ावा के नानूराम इसके प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं और वे अपने पीछे इन ख्यालों की धरोहर छोड़ गए हैं। इनमें हीर रांझा, राजा हरिश्चंद्र, भर्तृहरि, जयदेव कलाली, ढोला मरवण और आल्हादेव प्रमुख ख्याल है।
इन खयालों में पौराणिक कथानक, हास्य प्रसंग के साथ समाज सुधार व नैतिक आदर्शों का यथार्थ प्रदर्शन होता है। इस लोकनाट्य की प्रमुख विशेषताएं हैं-
सरल व सुबोध भाषा व मुद्रा में गीत गायन
अच्छा पद संचालन
वाद्ययंत्र की उचित संगत
इन ख्यालों के खिलाड़ी प्राय मिरासी, ढोली एवं सरगड़ा होते हैं।
प्र 9. राजस्थान में हस्तशिल्प पर एक लेख लिखिए । (निबन्धात्मक)
उत्तर- हाथों द्वारा कलात्मक एवं आकर्षक वस्तुएं बनाना ही दस्तकारियां कहलाती है। राजस्थान की अनेक हस्तशिल्प वस्तुएं देश-विदेश में प्रसिद्ध है। जिनमें प्रमुख है जयपुर की मीनाकारी, कुंदन, नक्काशी, लाख की चूड़ियां, चमड़े की जूतियां, धातु व प्रस्तर की प्रतिमाएं, खिलौने, वस्त्र, आभूषण, ब्लू पॉटरी आदि प्रसिद्ध है।
जोधपुर की कशीदाकारी, जूतियां, बटुए, बादले, ओढनिया, मलमल व बीकानेर की ऊंट की खाल से बनी कलात्मक वस्तुएं, लहरिये व मोठडे आदि बड़े प्रसिद्ध है। इसी प्रकार शाहपुरा की फड़ पेंटिंग, प्रतापगढ़ की थेवा कला, मोलेला की मृण्मूर्ति, बस्सी की काष्ठ कला, कोटा की डोरिया मसूरिया साड़ियां, उदयपुर के चंदन के खिलौने, नाथद्वारा की पिछवाई, सांगानेरी व बगरू की प्रिंट, खंडेला की बातिक, बाड़मेर की अजरख प्रिंट आदि अनेक राजस्थानी हस्तशिल्प देश विदेश में प्रसिद्ध है।
राजस्थानी हस्तशिल्प विदेशों में पिछले कुछ वर्षों से अधिक लोकप्रिय हो रही है। परिणाम स्वरूप इस उद्योग में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। साथ ही समय की मांग के अनुरूप और अधिक आकर्षक व कलात्मक वस्तुएं बनाना आरंभ किया गया है। इसके द्वारा राज्य के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर किया जा सकता है।
साथ ही स्थानीय लोगों को वही रोजगार उपलब्ध करवा कर अन्यत्र जाने से रोकना भी संभव हुआ है। राज्य में हस्तशिल्प निर्यात विदेशी मुद्रा अर्जित करने का सर्वाधिक अच्छा स्रोत है। राजस्थान के आर्थिक विकास में हस्तशिल्प अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राज्य का हस्तशिल्प विश्व विख्यात है। यह क्षेत्र स्थानीय लोगों को रोजगार ही नहीं प्रदान करता बल्कि इससे विदेशी मुद्रा भी राज्य को प्राप्त होती है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार राज्य में लगभग 410000 हस्तशिल्प इकाइयां कार्यरत है। इनमें से लगभग 204000 इकाइयां ग्रामीण क्षेत्रों में व 206000 इकाइयां शहरी क्षेत्रों में कार्यरत है। जिसमें लगभग 600000 आर्टिजन कार्यरत है।
राजस्थान के हस्तशिल्प में मुख्यतः धातु शिल्प, पीतल पर नक्काशी, बंधेज, तारकशी, मिनिएचर पेंटिंग, कशीदाकारी, एल्युमीनियमटायज, वुडन कार्विंग फर्नीचर, मार्बल की मूर्तियां, वुडन मेटल क्राफ्ट, कारपेट, ब्लू पॉटरी, टेराकोटा, पेपरमेशी, मार्बल स्टोन कार्विंग, लकड़ी/कागज/हाथी दांत पर नक्काशी, कोटा डोरिया, थेवा क्राफ्ट, डाइंग एंड प्रिंटिंग से संबंधित हस्तशिल्प सम्मिलित है।
राज्य सरकार द्वारा राज्य में हस्तशिल्प के विकास हेतु हाल ही में राजस्थान हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया है जो राज्य में हस्तशिल्प के विकास हेतु निसन्देह रूप से एक मील का पत्थर साबित होगा। राजस्थान की औद्योगिक नीति 1998 के अंतर्गत हस्तशिल्प पर विशेष बल दिया गया।
सीडो द्वारा प्रबंधकीय तकनीकी और आर्थिक सहायता, यूएनडीपी व खादी ग्रामोद्योग द्वारा सांगानेर में हस्तशिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की गई है। राजसीको द्वारा नवीन तकनीकी ज्ञान, रियायती दर पर कच्चा माल, निर्यात विपणन एवं प्रशिक्षण केंद्रों की व्यवस्था करके राजस्थान के हस्तशिल्प को सराहनीय योगदान दिया है। जिससे राजस्थानी हस्तशिल्प की गुणवत्ता एवं मात्रा में वृद्धि हुई है। इनकी विदेशों में निरंतर मांग बढ़ रही है तथा निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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