उत्तर - आहड आयड नदी (उदयपुर) के किनारे स्थित मुख्य ताम्र पाषाण युगीन स्थल है, जिसका उत्खनन एच डी सांकलिया के नेतृत्व में हुआ। यहां से ताम्र उपकरण, कृषि- पशुपालन, आवास, मुद्राएं आदि के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो एक उन्नत संस्कृति के द्योतक है।
प्रश्न 2. राजस्थान की ताम्र कांस्य युगीन संस्कृतियों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर - - राजस्थान में ताम्र युगीन संस्कृति के अवशेष गणेश्वर, कालीबंगा,, रंग महल पीलीबंगा आदि अनेक स्थानों पर मिले हैं। इस समय का मानव बस्तियों में रहने लग गया था। वह विविध प्रकार के औजारों का प्रयोग करता था तथा कृषि एवं पशुपालन उसका मुख्य व्यवसाय था।
प्रश्न 3. गणेश्वर संस्कृति के बारे में बताइए।
उत्तर - कांतली नदी (नीम का थाना) के किनारे स्थित ताम्र युगीन सभ्यता का प्रमुख स्थल गणेश्वर का उत्खनन आर पी अग्रवाल के नेतृत्व में हुआ। ताम्र सभ्यताओं की आदि संस्कृति होने से इसे 'ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी' कहा गया है।
प्रश्न 4. राजस्थान में लौह युगीन संस्कृति के प्रमुख स्थल कौन-कौन से हैं ।
उत्तर - राजस्थान में लौह युगीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं सलेटी चित्रित मृदभांड संस्कृति, साधारण आवास, लोहे का भली प्रकार उपयोग, कृषि एवं पशुपालन है। रेढ़, (टोंक), नोह (भरतपुर), जोधपुरा (जयपुर), विराटनगर (जयपुर) एवं सुनारी (झुंझुनू) इसके प्रमुख स्थल है ।
प्रश्न 5- रेढ़ ।
उत्तर - टोंक जिले में स्थित लौह युगीन संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण स्थल रेढ़ का उत्खनन एन के पूरी के नेतृत्व में हुआ। ईसा के प्रारंभिक सदी के समय की लौह सामग्री का विशाल भंडार मिलने से यह राजस्थान का टाटानगर के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 6- कालीबंगा सभ्यता।
उत्तर - घग्गर नदी (हनुमानगढ़) के किनारे स्थित इस ताम्र कांस्य युगीन हड़प्पा कालीन संस्कृति के मुख्य स्थल का उत्खनन अमलानंद घोष, बी बी लाल आदि के निर्देशन में हुआ। यहां से जूते हुए खेत, विन्यासित नगर,गढी, हवन कुंड, मेसोपोटामिया की सोने की मोहरे, अलंकृत फर्श व भूकंप आदि के अवशेष मिले हैं।
प्रश्न 7 - राजस्थान में पुरापाषाण कालीन संस्कृति के प्रमुख स्थलों के बारे में बताइए। उत्तर - राजस्थान में पुरापाषाण कालीन संस्कृति के प्रमुख स्थल डीडवाना (सबसे प्राचीन स्थल), जायल (नागौर), विराटनगर (जयपुर), भानगढ़ (अलवर), इंद्रगढ़ (कोटा), दर (भरतपुर) आदि है।
प्रश्न 8- राजस्थान में पूर्व पुरापाषाण कालीन संस्कृति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - राजस्थान में पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति (10 लाख ईस्वी पूर्व से 1 लाख ईस्वी पूर्व) के अवशेष डीडवाना से मिले हैं। यहां का मानव क्वार्टजाइट से हैंड एक्स, क्लीवर व चॉपर चैपिंग बनाता था। वह आखेटक व खाद्य संग्राहक था।
प्रश्न 9 - राजस्थान मध्य पाषाण कालीन संस्कृति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- मध्य पाषाण कालीन संस्कृति (10000 ईसवी पूर्व से 5000 ईसवी पूर्व तक) की मुख्य विशेषता माइक्रोलीथिक (सूक्ष्म पाषाण) है। इस काल के अवशेष बागोर, तिलवाड़ा, डीडवाना आदि से मिले हैं। इस काल के मानव द्वारा अस्थि व पाषाणों के सूक्ष्म उपकरण (फलक, खुरचन) आदि काम में लिए गए। इस समय का मानव आखेटक एवं खाद्य संग्राहक था।
प्रश्न 10- दर के बारे में बताइए।
उत्तर - भरतपुर के दर नामक स्थान से कुछ उत्तर पाषाण कालीन संस्कृति के चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं, जिनमें मानव आकृति, व्याघ्र, सूर्य आदि प्रमुख है जो पाषाण कालीन मानव की कलात्मक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
प्रश्न 11- राजस्थान में ताम्र पाषाण कालीन संस्कृतियां कौन-कौन सी है एवं उनकी विशेषताएं क्या है?
उत्तर - - राजस्थान के दक्षिण पूर्व में बागोर, आहड, गिलुंड, बालाथल, टोंक आदि अनेक स्थानों से ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहां से प्राप्त भंडारगर्त, लाल काले मृदभांड, तंदूर, तांबे का व्यापक प्रयोग, मकानों में पक्की ईंटों का प्रयोग आदि प्रमुख है।
प्रश्न 12- तिलवाड़ा एक मुख्य पाषाणिक संस्कृति के रूप में।
उत्तर - बाड़मेर के निकट स्थित इस ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति के मुख्य स्थल का उत्खनन वी एन मिश्र के निर्देशन में हुआ। यहां से ताम्र पाषाणोपकरण, आभूषण, कृषि कर्म, लिपि व लौह गलन भट्टियों के मिले अवशेषों से ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति के विकास की जानकारी मिलती है।
13. मुण्डियार ठिकाने की ख्यात
नागौर की मुंडियार गांव राठौड़ शासकों द्वारा चरणों को दिया हुआ था इस ख्यात की रचना एवं रचनाकार के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है। इस ख्यात में राठौड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराजा जसवंत सिंह प्रथम की मृत्यु तक का जिक्र किया गया है। मारवाड़ के प्रत्येक राजा के जन्म राज्य अभिषेक और मृत्यु की तिथियों के लिए यह ख्यात बड़ी उपयोगी है। मुगलों और मारवाड़ के राजाओं के मध्य जो वैवाहिक संबंध हुए उनका वर्णन इसके ख्यात में मिलता है। यह ख्यात ऐतिहासिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है।
14. मत्स्य जनपद
मत्स्य जनपद का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। महाभारत काल में मत्स्य जनपद की राजधानी विराट थी। मत्स्य जनपद और शूरसेन जनपद में परस्पर मित्रता के संबंध रहे थे वर्तमान अलवर का दक्षिणी भाग और पश्चिमी भाग मत्स्य देश कहलाता था जयपुर राज्य का अधिकाशं हिस्सा भी इसमें सम्मिलित था।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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