Sanskritization ( संस्कृतिकरण )

Sanskritization


( संस्कृतिकरण )


 

संस्कृति मानव की श्रेष्ठतम धरोहर है जिसकी सहायता से वह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता जा रहा है। बिना संस्कृति के मानव समाज का निर्माण संभव नहीं है। संस्कृति जीवन की संपूर्ण विधि है तथा मानसिक, सामाजिक एवं भौतिक साधन है जिससे की जीवन की संपूर्ण विधि बनी हुई है।

एक मनुष्य का पालन-पोषण किसी सांस्कृतिक पर्यावरण में होता है। संस्कृति में प्रचलित रीति-रिवाजों, धर्म, दर्शन, कला,संगीत, विज्ञान, प्रथाओं व व्यवहारों की छांव व्यक्ति के व्यक्तित्व पर पड़ती है।

संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। संस्कृत और संस्कृति दोनों ही शब्द संस्कार से बने हैं। संस्कार का अर्थ है कुछ कृत्यों की पूर्ति करना।

एक हिंदू जन्म से ही अनेक प्रकार के संस्कारों का निर्वाह करता है। जिनमें उसे विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभानी पड़ती है। संस्कृति का अर्थ विभिन्न संस्कारों के द्वारा सामाजिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति है।

यह परिमार्जन की एक प्रक्रिया है। संस्कारों को संपन्न करके ही मानव एक श्रेष्ठ सामाजिक प्राणी बनता है।

संस्कृति की प्रकृति या विशेषताएं ( Nature or characteristics of culture )



  • संस्कृति मानव निर्मित है।

  • संस्कृति किसी भी समाज की एक अमूल्य धरोहर है।

  • संस्कृति सीखी व अपनाई जाती है।

  • पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति का हस्तांतरण होता रहता है।

  • प्रत्येक समाज की एक विशिष्ट संस्कृति होती है।

  • संस्कृति में सामाजिक गुण निहित होता है।

  • संस्कृति समूह के लिए आदर्श होती है।

  • संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।

  • संस्कृति में अनुकूलन की क्षमता होती है।

  • संस्कृति में संतुलन एवं संगठन होता है।

  • मानव व्यक्तित्व के निर्माण में संस्कृति निरंतर सहायक होती है।

  • संस्कृति मनुष्य और जीवन से ऊपर श्रेष्ठ है।


भारतीय संस्कृति में अन्य बातों को आत्मसात करने का एक बड़ा गुण विद्यमान है।

अनेक प्रभावों के बावजूद भी हमारी संस्कृति का मूल स्वरूप यथावत है। आत्मसात को सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकीकरण की प्रक्रिया मानते हैं। आत्मसात धीमी गति से व अचेतन रूप से होता है। व्यक्ति धीरे-धीरे ही सीखता है।

आत्मसात या सात्मीकरण में मनोवृतियों, प्रस्थितियों, भूमिकाओं एवं प्रतीकों में परिवर्तन होता है किंतु ऐसा एकदम नहीं होता है। आत्मसात खुले एवं गतिशील समाज की विशेषता है जहां लोगों को विभिन्न सांस्कृतिक मूल्यों एवं तत्वों को अपनाने की क्षमता होती है।

ऐसा ही कुछ संस्कृतिकरण है। संस्कृतिकरण वह अवधारणा है जिसमें कोई व्यक्ति या समूह विचार, मूल्य, रीति-रिवाज, , धर्म, दर्शन, प्रथा एवं व्यवहार को अपनाता है।

एक अन्य अर्थ में यह भारत में देखा जाने वाला एक विशेष सामाजिक परिवर्तन है जिसमें जाति व्यवस्था में निचले पायदान पर स्थित जातियां एवं जनजातियां ऊंचा उठने का प्रयास करती है। ऐसा करने के लिए वे उच्च प्रभावी जातियों के रीती रिवाज या प्रचलनों को अपनाती है।

ऐसे परिवर्तन के साथ ही वे जाति व्यवस्था में उस स्थिति से उच्चतर स्थिति के दावेदार भी बन जाते हैं जो कि परंपरागत रूप से स्थानीय समुदाय उन्हें प्रदान कर पाया हो।

भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों में आधुनिकता, शहरीकरण, पश्चिमी प्रभाव, दूसरी संस्कृतियों का प्रवेश, पारिवारिक विघटन के कारण अनेक अच्छी और बुरी, वांछनीय व अवांछनीय नवीनताओं का संपर्क व जुडाव होता रहता है। इस प्रक्रिया बहुत सी बातें छूट जाती है तथा अनेक बातों में नवीनता का प्रभाव दिखाई देता है।

निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि संस्कृतिकरण ऐसी प्रक्रिया की ओर संकेत करती है जिसमें कोई जाति या समूह सांस्कृतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित समूह के रीति रिवाजों या नामों का अनुकरण कर अपनी सामाजिक स्थिति को उच्च बनाते हैं।

 

Specially thanks to Post makers ( With Regards )

P K Nagauri


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