Sardar Vallabh Bhai Patel

Sardar Vallabh Bhai Patel 


सरदार वल्लभ भाई पटेल




जन्म - 31 अक्टूबर, 1875
जन्मभूमि - नडियाड, गुजरात
मृत्यु - 15 दिसंबर 1950 ( उम्र- 75 )


मृत्यु स्थान -  मुम्बई, महाराष्ट्र मृत्यु  का कारण दिल का दौरा
पिता- झवेरभाई पटेल
माता- लाड़बाई
पत्नी:- झवेरबा
संतान पुत्र- दहयाभाई पटेल, पुत्री- मणिबेन
उपाधि - लौह पुरुष,भारत का बिस्मार्क


भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने।आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है

जीवन परिचय ( Life introduction )


पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पाटीदार कृषक परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई।


लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया।

बारडोली के किसानों के साथ (1928) - बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।

आजादी के बाद ( After Independence )


यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।

गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन 1950 में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।

देसी राज्यों ( रियासतों ) का एकीकरण ( Integration of indigenous princely states )


सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है।

गांधीजी, पटेल और मौलाना आजाद (1940)


स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे।

नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" पं॰ नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।

देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।

एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले।

इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा।

आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था।

जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"

यद्यपि विदेश विभाग पं॰ नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था।

अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं॰ नेहरू सहमत न थे।

1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा "क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।" नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।

गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता।

सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे।

लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के ह्मदय के सरदार थे।

अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालयसन १९९१ में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित

वल्लभभाई पटेल का प्रारम्भिक जीवन परिचय ( Early life introduction of Vallabhbhai Patel ):-


वल्लभभाई पटेल एक कृषक परिवार से थे जिसमे चार बेटे थे | एक साधारण मनुष्य की तरह इनके जीवन के भी कुछ लक्ष्य थे | यह पढ़ना चाहते थे, कुछ कमाना चाहते थे और उस कमाई का कुछ हिस्सा जमा करके इंग्लैंड जाकर अपनी पढाई पूरी करना चाहते थे |इन सबमे इन्हें कई परिशानियों का सामना करना पड़ा |

पैसे की कमी, घर की जिम्मेदारी इन सभी के बीच वे धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहे |शुरुवाती दिनों में इन्हें घर के लोग नाकारा समझते थे | उन्हें लगता था ये कुछ नहीं कर सकते | इन्होने 22 वर्ष की उम्र में मेट्रिक की पढाई पूरी की और कई सालों तक घरवालो से दूर रहकर अपनी वकालत की पढाई की जिसके लिए उन्हें उधार किताबे लेनी पड़ती थी

इस दौरान इन्होने नौकरी भी की और परिवार का पालन भी किया | एक साधारण मनुष्य की तरह ही यह जिन्दगी से लड़ते- लड़ते आगे बढ़ते रहे इस बात से बेखबर कि ये देश के लोह पुरुष कहलाने वाले हैं |

इनके जीवन की एक विशेष घटना से इनके कर्तव्यनिष्ठा का अनुमान लगाया जा सकता हैं यह घटना जबकि थी जब इनकी पत्नी बम्बई के हॉस्पिटल में एडमिट थी | *

वल्लभभाई के जीवन से जुडी घटना कहानी ( Story related to the life of Vallabhbhai ):-


कैंसर से पीढित इनकी पत्नी का देहांत हो गया जिसके बाद इन्होने दुसरे विवाह के लिए इनकार कर दिया और अपने बच्चो को सुखद भविष्य देने हेतु मेहनत में लग गए | इंग्लेंड जाकर इन्होने 36 महीने की पढाई को 30 महीने में पूरा किया उस वक्त इन्होने कॉलेज में टॉप किया |इसके बाद वापस स्वदेश लोट कर अहमदाबाद में एक सफल और प्रसिद्ध बेरिस्टर के रूप कार्य करने लगे |इंग्लैंड से वापस आये थे इसलिए उनकी चल ढाल बदल चुकी थी |

वे सूट बूट यूरोपियन स्टाइल में कपड़े पहनने लगे थे | इनका सपना था ये बहुत पैसे कमाये और अपने बच्चो को एक अच्छा भविष्य दे | लेकिन नियति ने इनका भविष्य तय कर रखा था | गाँधी जी के विचारों से प्रेरित होकर इन्होने सामाजिक बुराई के खिलाफ अपनी आवाज उठाई | भाषण के जरिये लोगो को एकत्र किया | इस प्रकार रूचि ना होते हुए भी धीरे-धीरे सक्रीय राजनीती का हिस्सा बन गए |

स्वतंत्रता संग्राम में वल्लभभाई पटेल का योगदान ( Vallabhbhai Patel's contribution in the freedom struggle ) :-


स्थानीय कार्य :- गुजरात के रहवासी वल्लभभाई ने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रो में शराब, छुआछूत एवं नारियों के अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की | इन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता को बनाये रखने की पुरजोर कोशिश की |

खेड़ा आन्दोलन:- 1917 में गाँधी जी ने वल्लभभाई पटेल से कहा कि वे खेडा के किसानो को एकत्र करे और उन्हें अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करे | उन दिनों बस कृषि ही भारत का सबसे बड़ा आय का स्त्रोत थी लेकिन कृषि हमेशा ही प्रकृति पर निर्भर करती आई हैं | वैसा ही कुछ उन दिनों का आलम था |

1917 में जब अधिक वर्षा के कारण किसानो की फसल नष्ट हो गई थी लेकिन फिर भी अंग्रेजी हुकूमत को विधिवत कर देना बाकि था | इस विपदा को देख वल्लभ भाई ने गाँधी जी के साथ मिलकर किसानो को कर ना देने के लिए बाध्य किया और अंतः अंग्रेजी हुकूमत को हामी भरनी पड़ी और यह थी सबसे पहली बड़ी जीत जिसेखेडा आन्दोलन के नाम से याद किया जाता हैं |

इन्होने गाँधी जी के हर आन्दोलन में उनका साथ दिया | इन्होने और इनके पुरे परिवार ने अंग्रेजी कपड़ो का बहिष्कार किया और खादी को अपनाया |

कैसे मिला सरदार पटेल नाम (बारडोली सत्याग्रह)


इस बुलंद आवाज नेता वल्लभभाई ने बारडोली में सत्याग्रह का नेतृत्व किया | यह सत्याग्रह 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ किया गया था | इसमें सरकार द्वारा बढ़ाये गए कर का विरोध किया गया और किसान भाइयों को एक देख ब्रिटिश वायसराय को झुकना पड़ा |

इस बारडोली सत्याग्रह के कारण पुरे देश में वल्लभभाई पटेल का नाम प्रसिद्द हुआ और लोगो में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी | इस आन्दोलन की सफलता के कारण वल्लभ भाई पटेल को बारडोली के लोग सरदार कहने लगे जिसके बाद इन्हें सरदार पटेल के नाम से ख्याति मिलने लगी |

स्थानीय लड़ाई से देश व्यापी आन्दोलन ( Country wide movement from local fight ):-


गाँधी जी की अहिंसा की निति ने इन्हें बहुत ज्यादा प्रभावित किया था और इनके कार्यों ने गाँधी जी पर अमिट छाप थी | इसलिए स्वतंत्रता के लिए किये गए सभी आंदोलन जैसे असहयोग आन्दोलन, स्वराज आन्दोलन, दांडी यात्रा, भारत छोडो आन्दोलन इन सभी में सरदार पटेल की भूमिका अहम् थी | अंग्रेजो की आँखों में खटने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे सरदार पटेल |


1923 में जब गाँधी जी जेल में थे | तब इन्होने नागपुर में सत्याग्रह आंदोलन का नेत्रत्व किया |इन्होने अंग्रेजी सरकार द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को बंद करने के खिलाफ आवाज उठाई जिसके लिए अलग- अलग प्रान्तों से लोगो को इकट्ठा कर मोर्चा निकाला गया | इस मोर्चे के कारण अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और उन्होंने कई कैदियों को जेल से रिहा किया |


इनकी वाक् शक्ति ही इनकी सबसे बड़ी ताकत थी जिस कारण उन्होंने देश के लोगो को संगठित किया | इनके प्रभाव के कारण ही एक आवाज पर आवाम इनके साथ हो चलती थी |

आजादी के पहले एवम बाद में अहम् पद:-


इनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी इन्होने लगातार नगर के चुनाव जीते और 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद के नगर निगम के अध्यक्ष के रूप में चुने गए |1920 के आसपास के दशक में पटेल ने गुजरात कांग्रेस को ज्वाइन किया जिसके बाद वे 1945 तक गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे  |

1932 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया | इन्हें कांग्रेस में सभी बहुत पसंद करते थे | उस वक्त गाँधी जी, नेहरु जी एवं सरदार पटेल ही नेशनल कांग्रेस के मुख्य बिंदु थे | आजादी के बाद वे देश के गृहमंत्री एवं उपप्रधानमंत्री चुने गए | वैसे सरदार पटेल प्रधानमंत्री के प्रथम दावेदार थे उन्हें कांग्रेस पार्टी के सर्वाधिक वोट मिलने के पुरे आसार थे लेकिन गाँधी जी के कारण उन्होंने स्वयं को इस दौड़ से दूर रखा |

आजादी के बाद सरदार पटेल द्वारा किया गया अहम् कार्य


15 अगस्त 1947 के दिन देश आजाद हो गया इस आजादी के बाद देश की हालत बहुत गंभीर थी | पाकिस्तान के अलग होने से कई लोग बेघर थे | उस वक्त रियासत होती थी हर एक राज्य एक स्वतंत्र देश की तरह था जिन्हें भारत में मिलाना बहुत जरुरी थी |यह कार्य बहुत कठिन था

कई वर्षो की गुलामी के बाद कोई भी राजा अब किसी भी तरह की आधीनता के लिए तैयार नहीं था लेकिन वल्लभभाई पर सभी को यकीन था उन्होंने ने ही रियासतों को राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बाध्य किया और बिना किसी युद्ध के रियासतों को देश में मिलाया | जम्मू कश्मीर, हैदराबाद एवं जूनागढ़ के राजा इस समझौते के लिए तैयार न थे |

इनके खिलाफ सैन्यबल का उपयोग करना पड़ा और आखिकार ये रियासते भी भारत में आकर मिल गई | इस प्रकार वल्लभभाई पटेल की कोशिशों के कारण बिना रक्त बहे 560 रियासते भारत में आ मिली | रियासतों को भारत में मिलाने का यह कार्य नम्बर 1947 आजादी के महज कुछ महीनो में ही पूरा किया गया | गाँधी जी ने कहा कि यह कार्य केवल सरदार पटेल ही कर सकते थे |

इतिहास से लेकर आज तक इन जैसा व्यक्ति पुरे विश्व में नहीं था जिसने बिना हिंसा के देश एकीकरण का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया हो | उन दिनों इनकी इस सफलता के चर्चे पुरे विश्व के समाचार पत्रों में थे |इनकी तुलना बड़े-बड़े महान लोगो से की जाने लगी थी |

कहा जाता हैं अगर पटेल प्रधानमंत्री होते तो आज पाकिस्तान, चीन जैसी समस्या इतना बड़ा रूप नहीं लेती | पटेल की सोच इतनी परिपक्व थी कि वे पत्र की भाषा पढ़कर ही सामने वाले के मन के भाव समझ जाते थे | उन्होंने कई बार नेहरु जी को चीन के लिए सतर्क किया लेकिन नेहरु ने इनकी कभी ना सुनी |

पटेल एवं नेहरु के बीच अंतर ( Differences between Patel and Nehru )


पटेल एवं नेहरु दोनों गाँधी विचार धारा से प्रेरित थे इसलिए ही शायद एक कमान में थे | वरना तो इन दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर था | जहाँ पटेल भूमि पर थे, मिट्टी में रचे बसे साधारण व्यक्तित्व के तेजस्वी व्यक्ति थे |

वही नेहरु जी अमीर घरानों के नवाब थे, जमीनी हकीकत से दूर, एक ऐसे व्यक्ति जो बस सोचते थे और वही कार्य पटेल करके दिखा देते थे | शैक्षणिक योग्यता हो या व्यवहारिक सोच हो इन सभी में पटेल नेहरु जी से काफी आगे थे | कांग्रेस में नेहरु जी के लिए पटेल एक बहुत बड़ा रोड़ा थे |

वल्लभभाई पटेल की मृत्यु ( Death of Vallabhbhai Patel )


1948 में हुई गाँधी जी की मृत्यु के बाद पटेल को इस बात का गहरा आघात पहुँचा और उन्हें कुछ महीनो बाद हार्ट अटैक हुआ जिससे वे उभर नहीं पाए और 15 दिसम्बर 1950 को इस दुनिया से चले गए |

सरदार बल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय सम्मान ( Sardar Vallabhbhai Patel National Honor )


राष्ट्रीय सम्मान ( Sardar Patel statue ):


1991 में इन्हें भारत रत्न का सम्मान दिया गया |इनके नाम से कई शेक्षणिक संस्थायें हैं | हवाईअड्डे को भी इनका नाम दिया गया |


स्टेच्यु ऑफ़ यूनिटी के नाम से सरदार पटेल के 2013 में उनके जन्मदिन पर गुजरात में उनका स्मृति स्मारक बनाने की शुरुवात की गई यह स्मारक भरूच (गुजरात) के पास नर्मदा जिले में हैं |

सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन परिचय से यह बात सामने आती हैं कि मनुष्य महान बनकर पैदा नहीं होता | उनके प्रारम्भिक जीवन को जानने के बाद हम कह सकते हैं कि यह आप और हम जैसे ही एक व्यक्ति थे जो रूपया पैसा और एक सुरक्षित भविष्य की चाह रखता हैं लेकिन कर्म के पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते बेरिस्टर वल्लभभाई पटेल, सरदार पटेल, लोह पुरुष वल्लभभाई पटेल बन गए |

सरदार पटेल ने राष्ट्रिय एकीकरण कर एकता का एक ऐसा स्वरूप दिखाया जिसके बारे में उस वक्त कोई सोच भी नहीं सकता था | उनके इसी कार्य अवम सोच के कारण उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस  का नाम दिया गया |

सरदार वल्लभभाई पटेल अनमोल वचन, नारे, स्लोगन ( sardar vallabhbhai patel quotes )


कभी- कभी मनुष्य की अच्छाई उसके मार्ग में बाधक बन जाती हैं कभी- कभी क्रोध ही सही रास्ता दिखाता हैं | क्रोध ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत देता हैं |डर का सबसे बड़ा कारण विश्वास में कमी हैं |सरदार पटेल की अहिंसा की परिभाषा :?

“ जिनके पास शस्त्र चलाने का हुनर हैं लेकिन फिर भी वे उसे अपनी म्यान में रखते हैं असल में वे अहिंसा के पुजारी हैं | कायर अगर अहिंसा की बात करे तो वह व्यर्थ हैं | “

जिस काम में मुसीबत होती हैं,उसे ही करने का मजा हैं जो मुसीबत से डरते हैं,वे योद्धा नहीं | हम मुसीबत से नहीं डरते |फालतू मनुष्य सत्यानाश कर सकता हैं इसलिए सदैव कर्मठ रहे क्यूंकि कर्मठ ही ज्ञानेन्द्रियो पर विजय प्राप्त कर सकता हैं |

यह थे सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा कहे कुछ अनमोल वचन जो हमें एक सफल जीवन का पथ दिखाते हैं | महानत व्यक्ति के बोल महज शब्द जाल नहीं होते उनमे अनुभवों की विशालता एवं गहराई होती हैं जो मनुष्य के जीवन को सही दिशा देती हैं |

सरदार पटेल और रियासतों का एकीकरण और विलय


राष्ट्रीय अस्थायी सरकार मे सरदार पटेल रियासती विभाग के कार्यवाहक थे। (5जुलाई,1947कार्यभार लिया)

उन्होंने भारतीय रियासतों की देशभक्ति को ललकारा और अनुरोध(आग्रह)किया कि वे भारतीय संघ मे अपनी रक्षा,विदेशी मामले और संचार व्यवस्था को भारत अधीनस्त बनाकर,शामिल हो जाये। 15 अगस्त,1947 तक 136 रियासतें भारत मे शामिल हो गई।

कश्मीर ने विलय पत्रों पर 26 अक्टूबर,1947 को जूनागढ़ एवं हैदराबाद ने 1948 मे हस्ताक्षर किये। सरदार पटेल ने भारत की 562 रियासतों का एकीकरण करवाया।

सरदार पटेल के अनमोल विचार ( Priceless views of Sardar Vallabh Bhai Patel )


1.चर्चिल से कहो कि भारत को बचाने से पहले इंग्लैंड को बचाए।
2.आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।
3.ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, उनके साथ अक्सर मैं हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमयी छाया से दूर रह सकता है जो इंसान के माथे पर चिंता की रेखाएं छोड़ जाती है।

4.जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है, इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती।
5.शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है. विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।
6.इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है।
7.यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत गवां दें, और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए।

8.स्वतंत्र भारत में कोई भी भूख से नहीं मरेगा. अनाज निर्यात नहीं किया जायेगा. कपड़ों का आयात नहीं किया जाएगा. इसके नेता ना विदेशी भाषा का प्रयोग करेंगे ना किसी दूरस्थ स्थान, समुद्र स्तर से 7000 फुट ऊपर से शासन करेंगे. इसके सैन्य खर्च भारी नहीं होंगे. इसकी सेना अपने ही लोगों या किसी और की भूमि को अधीन नहीं करेगी. इसके सबसे अच्छे वेतन पाने वाले अधिकारी इसके सबसे कम वेतन पाने वाले सेवकों से बहुत ज्यादा नहीं कमाएंगे. और यहाँ न्याय पाना ना खर्चीला होगा ना कठिन होगा।

9.बोलने में मर्यादा मत छोड़ना, गालियाँ देना तो कायरों का काम है।

10.यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है. हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है. उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं।

11.बेशक कर्म पूजा है किन्तु हास्य जीवन है. जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए. जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है।

12.शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाये, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है।
13कठिन समय में कायर बहाना ढूंढ़ते हैं बहादुर व्यक्ति रास्ता खोजते हैं।
14.जीवन में सब कुछ एक दिन में नहीं हो जाता है!
15.उतावले उत्साह से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिये।
16.हमें अपमान सहना सीखना चाहिए।

17.हर इंसान सम्मान के योग्य है, जितना उसे ऊपर सम्मान चाहिए उतना ही उसे नीचे गिरने का डर नहीं होना चाहिए।
18.अविश्वास भय का कारण है।
19.मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा ना रहे।

20.एकता के बिना जनशक्ति, शक्ति नहीं है जब तक उसे ठीक ढंग से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।

✍संकलन कर्ता


रमेश डामोर सिरोही


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