सामाजिक मूल्य वे मानक है जिनके द्वारा हम किसी वस्तु, व्यवहार, लक्ष्य, साधन, गुण आदि को अच्छा या बुरा, उचित या अनुचित, वांछित या अवांछित ठहराते हैं। इन्हें हम उच्च स्तरीय मानदंड कह सकते हैं। सामाजिक मूल्य वे आदर्श है जो सामाजिक जीवन में आचरण में अभिव्यक्त होते हैं।
सामाजिक मूल्यों की विशेषताएं ( Features of social values )
सामाजिक सांस्कृतिक मूल्य सामूहिक होते हैं।
सामाजिक मूल्य सामाजिक मानक है।
सामाजिक - सांस्कृतिक मूल्य समाज द्वारा स्वीकार किए जाते हैं।
सामाजिक - सांस्कृतिक मूल्य भावनाओं से जुड़े होते हैं।
सामाजिक मूल्य गतिशील होते हैं।
सामाजिक मूल्य भिन्नताएं लिए होते हैं।
सामाजिक मूल्य सामाजिक कल्याण व आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
सामाजिक प्रतिमानों का प्रभाव ( Influence of Social Paradigms )
सामाजिक प्रतिमानों के आधार पर हम किसी मानव व्यवहार को उचित या अनुचित ठहराते हैं। सामाजिक जीवन को व्यवस्थित बनाए रखने के लिए ही मनुष्य ने अनेक प्रथाओं, रीति-रिवाजों, परिपाटियों, रूढ़ियों एवं कानून आदि के रचना की है।
यदि हम सामाजिक जीवन पर डालें तो पाएंगे कि सामाजिक संबंधों में आश्चर्यजनक व्यवस्था एवं स्थिरता पाई जाती है। सामाजिक प्रतिमान जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पाए जाते हैं। इनकी संख्या अनगिनत है।खाने-पीने, उठने, नृत्य करने, वस्त्र पहनने, हंसने, रोने, सोने, गाने,लिखने, बोलने, स्वागत- सत्कार करने, विदा करने आदि से संबंधित सामाजिक प्रतिमान पाए जाते हैं। यह हमारे व्यवहार के पथ प्रदर्शक है।
जनरीतियां अथवा लोकरीतियां ( Genera or folklore )
समाज में मान्यता प्राप्त अथवा स्वीकृत व्यवहार की प्रणालियां हैं। यह दैनिक जीवन के व्यवहार के वे प्रतिमान है जो नियोजित अथवा बिना किसी तार्किक विचार के ही सामान्यतः समूह में अचेतन रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। जनरीतियां या लोकरीतियां हमें सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण में रहने की कला सिखलाती है।
सभी युगों तथा संस्कृति की सभी अवस्थाओं में मनुष्य के संपूर्ण जीवन पर प्रारंभिक नियंत्रण जनरीतियों के विशाल समूह से होता रहता है। बार-बार दोहराने के कारण जनरीतियां हमारे कार्य करने और विचार करने की आदत बन जाती है।
जनरीतियों में केवल ऊपरी सतह पर ही परिवर्तन होते हैं। ये अपेक्षाकृत स्थाई इसलिए रहती है कि इनका हस्तांतरण पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहता है। दैनिक जीवन में हम हजारों तरह की जनरीतियों का पालन करते हैं।
लोकाचार एवं रूढ़ियाँ ( Ethos and customs )
मानव व्यवहार के वे प्रतिमान है जिन्हें समूह कल्याणकारी समझता है तथा इनका उल्लंघन करना समाज का अपमान करना समझा जाता है।एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते रहते हैं, जिन्हें बिना किसी विचार या तर्क के स्वीकार कर लिया जाता है।
लोकाचार के प्रमुख उदाहरणों में एक विवाह प्रथा, सती प्रथा, पति व्रत, पति सेवा, मातृ पितृ सेवा, बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, संपत्ति उत्तराधिकार के नियम आदि उल्लेखनीय है। इनका पालन समूह के हित में माना जाता है और उल्लंघन करने पर तीव्र प्रतिक्रिया होती है।
प्रथाएँ ( Customs )
यह भी अनौपचारिक सामाजिक प्रतिमान है। जब जनरीतियों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किया जाता है तो वे प्रथाएँ बन जाती है तथा हमारे संस्कृति की धरोहर मानी जाती है। उनमें तर्क का होना आवश्यक नहीं है। प्रथाएँ ऐसी जनरीतियां है जो एक पीढी तक निरंतर प्रचलन में रहते हुए औपचारिक मान्यता प्राप्त कर लेती है।
पिता की आज्ञा का पालन करना, अपनी जाति में विवाह करना, मृत्युभोज, खुशी के अवसर पर आयोजित प्रीतिभोज, बाल विवाह, दहेज हमारे समाज में प्रचलित है।
परंपरा ( The tradition )
यह मनुष्य को विरासत में मिलती है। व्यक्ति के जीवन यापन के लिए अनेक भौतिक व अभौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती है। यह सब उसे समाज द्वारा प्रदत सामाजिक विरासत के रूप में मिलता है।
घडी, पेन, रेडियो, टेलीविजन, पंखा, वस्त्र आदि हजारों प्रकार की वस्तुएं भौतिक की विरासत है जबकि धर्म, विचार, दर्शन, प्रथाएं, नियम, रीति-रिवाज आदि अभौतिक सामाजिक विरासत है। समस्याओं को सुलझाने एवं परिस्थितियों का सामना करने के पुराने ढंग के आधार पर नए ढंगों की खोज की जा सकती है। परंपराएं हमें धैर्य, साहस एवं आत्मविश्वास प्रदान करती है।
फैशन तथा धुन ( Fashion and tune )
यह समाज में निरंतर बने रहते हैं। इन्हें समझने व इनका विश्लेषण करना व्यवसाय के लिए जरूरी है। मनुष्य नवीनता एवं भिन्नता के लिए परिवर्तन चाहता है। वह प्राचीन आदर्शों का अंधानुकरण करता हुआ भी नवीन व परिवर्तन का प्रेमी है।
लोकाचार,प्रथाएं, परंपरागत नैतिकता, परिपाटी एवं शिष्टाचार में अपेक्षाकृत स्थायित्व पाया जाता है जबकि फैशन पूर्णतः अस्थायी प्रकृति के होते हैं। जब प्रथाओं का पतन होता है तो फैशन का अधिक प्रचलन होता है औद्योगीकरण की वृद्धि के साथ साथ फैशन का प्रचलन भी बढा है।
फैशन व्यक्ति की रुचि को पोषित करता है। फैशन के साथ चलने में आदमी अपने आप को जागरुक व आधुनिक महसूस करता है। धुन भी फैशन ही है पर फैशन से भी अधिक तीव्रता को व्यक्त करती है। जब कोई भी नया डिजाइन निकलता है तो पहले कुछ ही लोग उसे अपनाते हैं और इसे ही धुन कहते हैं।
यदि इसे अधिक लोग अपनाने लग जाते हैं तो यह फैशन कहलाने लगता है। धुन, फैशन की अपेक्षा अधिक परिवर्तनशील, आडंबर पूर्ण, अतार्किक तथा अस्थाई होती है।
सामाजिक मूल्यों का महत्व या सामाजिक मूल्य किस प्रकार प्रभाव डालते हैं
मनुष्य की आधारभूत इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की संतुष्टि करने में मूल्यों का महत्व पूर्ण हाथ होता है। सामाजिक मूल्य समाज में एकता, संगठन व नियंत्रण बनाए रखते हैं *जीवन को सामाजिक मूल्य निम्नांकित ढंग से प्रभावित करते हैं-
सामाजिक मूल्य भौतिक संस्कृति का महत्व बढ़ाते हैं।
सामाजिक मूल्य समाज में एकरूपता उत्पन्न करते हैं।
सामाजिक मूल्य व्यक्ति के व्यवहार एवं प्रगति के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
सामाजिक मूल्य सामाजिक भूमिकाओं का निर्देशन करते हैं।
सामाजिक मूल्य सामाजिक संगठन व एकीकरण में सहायक होते हैं।
सामाजिक मूल्यों के द्वारा सामाजिक क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।
सामाजिक मूल्य सामाजिक नियंत्रण में सहायक होते हैं।
बदलते हुए समय में परिवर्तित सामाजिक मूल्यों को अपनाया जाता है।
सामाजिक मूल्यमानव आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होते हैं।
सामाजिक मूल्य मानवीय मूल्यों व आदर्शों के स्रोत होते हैं।
सामाजिक मूल्य व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।
जाति ( Caste )
भारत में जाति संस्था को विश्व की एक विशिष्ट संस्था माना गया है। भारत में सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार जाति व वर्ग है। जाति का आधार जन्म है तो वर्ग का आधार अर्थ होता है।
वर्ग आधारित समाज में सामाजिक गतिशीलता के बहुत अवसर होते हैं परंतु जब वर्ग का निर्धारण वंशानुगत हो जाता है तो वह जाति का रूप ले लेता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसके जन्म से निर्धारित होती है इसलिए जाति को बंद स्तरीकरण भी कहा जाता है।
जाति का अर्थ ( Meaning of caste )
जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के Cast का हिंदी रूपांतर है जो कि पुर्तगाली शब्द Casta से लिया गया है। Casta एक पुर्तगाली शब्द है जिसका अर्थ है नस्ल। इसी प्रकार शब्द Casta का लातिनी भाषा के शब्द Castus से भी गहरा संबंध है जिसका अर्थ शुद्ध नस्ल या प्रजाति का जन्म होता है।
जाति की परिभाषाएं ( Caste definitions )
रिजले के अनुसार - "जाति परिवार और परिवारों के समूह का संकलन है जिसका इसके अनुरूप नाम होता है और वह काल्पनिक पूर्वज मनुष्य या देवी के वंशज होने का दावा करते हैं। ये सामान पैतृक कार्य अपनाते हैं और वे विचारक ही इस विषय को देव योग मानते हैं। इसको समजाति समुदाय मानते हैं।"
मजूमदार एवं मदान के अनुसार -" जाति एक बंद वर्ग है।"
रॉबर्ट बीयरस्टेड के अनुसार-" जब वर्ग प्रथा का ढांचा एक या अधिक विषयों पर पूरी तरह बंद होता है तो उसको जाति प्रथा कहा जाता है।"
चार्ल्स कूले के अनुसार-" एक वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रम पर आधारित होता है तो हम उसे जाति कहते हैं।"
मेकाइवर तथा पेज के अनुसार - "जब स्थिति पूरी तरह पूर्व निश्चित होती हो तथा व्यक्ति बिना किसी आशा को लेकर पैदा होते हो तो वर्ग जाति का रूप धारण कर लेती है।"
जे एच हट्टन के अनुसार -" जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक समाज एक आत्म केंद्रित तथा एक दूसरे से पूर्ण रूप से अलग इकाईयों में बंटा रहता है। इन विभिन्न इकाईयों में परस्पर संबंध उच्च - निम्न के आधार पर तथा संस्कारों के आधार पर निर्धारित होते हैं।"
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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