State Human Rights Commission ( राज्य मानवाधिकार आयोग )
State Human Rights Commission
( राज्य मानवाधिकार आयोग )
मानवाधिकार का अर्थ ( Meaning of Human Rights )
मानवाधिकार ऐसे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव प्राणी होने के नाते प्राप्त होते हैं भले ही उसकी राष्ट्रीयता, वर्ग, जाति, व्यवसाय व सामाजिक, आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 (वुमन राइट्स प्रोटेक्शन एक्ट) की धारा 2(घ) में मानवाधिकार की परिभाषा दी गई।
इसके अनुसार मानव अधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा से संबंधित उन अधिकारों से है जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत है। अथवा अंतर्राष्ट्रीय करारों में सम्मिलित है और भारत में न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है।
प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक लास्की के अनुसार "अधिकार सामाजिक जीवन कि वह परिस्थितियां होती हैं जिनके अभाव में कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर पाता।"
मानवाधिकारों को मूल अधिकार या आधारभूत अधिकार या जन्मजात अधिकार भी कहा जाता है।
मानवाधिकार इतिहास ( Human Rights History )
विश्व में प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में मानवाधिकार की अवधारणा ने अपना स्थान बना लिया था प्राचीन यूनान में अरस्तू का न्याय का सिद्धांत हमारे सामने आया। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में प्रजा के कल्याण में राजा का कल्याण बताया। सम्राट अशोक ने कलिंग अभिलेख में प्रजा को संतान की तरह माना और अधिकारियों को जनता पर अत्याचार न करने का निर्देश दिया।
मानवाधिकार के संबंध में भारतीय परंपरा को देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि पुरातन काल में हमारे यहां मानव अधिकार के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सभी प्रकार की आवश्यकताएं की गई है। "वसुधैव कुटुंबकम" का सार्वभौमिक सिद्धांत हमारी संस्कृति का मूल रहा है जिसमें ना केवल देश बल्कि संपूर्ण विश्व के सभी प्राणियों को एक ही परिवार का सदस्य माना गया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को मानव अधिकारों को स्वीकार किया था अतः 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है
भारत में मानवाधिकारों की रक्षा हेतु 28 सितम्बर 1993 से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम लागु किया इस अधिनियम के तहत 10 अक्टूबर 1993 में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र की अद्यक्षता में दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की
एक राज्य मानवाधिकार आयोग भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची और समवर्ती सूची के अंतर्गत शामिल विषयों से संबंधित मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है। राज्य मानवाधिकार आयोग एक सांविधिक निकाय है यह उन्ही मामलों की जांच करता है जिन्हें बीते हुए 1 वर्ष से कम समय हुआ है इसकी कार्यवाही सलाहाकरी है
राज्य सरकार इसकी बातों को मानने के लिए बाध्य नही है, लेकिन सरकार द्वारा क्या कार्यवाही की गई इसके बारे में आयोग को रिपोर्ट देनी होगी यह किसी व्यक्ति को दंड/आर्थिक सहायता नही दे सकता
आयोग का संगठन ( Structure of Commission )
इस आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ही हो सकता है इस आयोग में निम्न 2 सदस्य होंगे
उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त या कार्यरत एक न्यायाधीश होता हो |
सदस्य जो उस राज्य में एक जिला न्यायाधीश है या रहा है (सात साल का अनुभव) जिन्हे मानव अधिकारों से संबंधित मामलो का ज्ञान हो या उसमें व्यावहारिक अनुभव हो।
ध्यान रहे यंहा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश का उल्लेख है न की मुख्य का।
आयोग का 1 सदस्य वह होगा जो ज़िला न्यायाधीश हो अथवा रह चुका हो ।
आयोग के 2 सदस्य वे होंगे जो मानवाधिकारो के संदर्भ में विशेष जानकारी रखते हो।
Note: वर्ष 2006 में इस अधिनियम में संशोधन कर राज्य मानवाधिकार आयोग की सदस्य संख्या तथा सदस्यों की योग्यता में बदलाव किया गया।
सदस्यों की संख्या में बदलाव: संगठन 1+4 सदस्य लेकिन राजस्थान मे 2006 मे संशोधन करके1+2 कर दिया गया ।
सदस्यो की योग्यता में बदलाव: अध्यक्ष पूर्व अनुसार ही। एक सदस्य भी पूर्व अनुसार उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो अथवा रह चुका हो। एक अन्य सदस्य वह होगा जो ज़िला न्यायाधीश हो अथवा उसे 7 वर्ष का न्यायिक अनुभव हो। या वह व्यक्ति जो मानवाधिकार के विषय में अच्छी जानकारी रखता हो।
आयोग में सदस्यों की नियुक्ति ( Appointment of members in Commission )
राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में 6 सदस्य एक समिति के सिफारिश पर की जाती है राजस्थान में समिति में वर्तमान में केवल 4 सदस्य हैं समिति की सिफ़ारिशों को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य है।
अध्यक्ष व सदस्यों को शपथ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश दिलवाता है (धारा -22) राज्यपाल द्वारा एक कमेटी की अनुशंसा पर की जाएगी, इस समिति में शामिल होते हैं–
मुख्यमंत्री समिति के पदेन अध्यक्ष के रुप में
राज्य मंत्रिमंडल सदस्य (गृह मंत्री)
विधानसभा अध्यक्ष
विधानसभा में विपक्ष का नेता
विधान परिषद सभापति
विधान परिषद में विपक्ष का नेता
State Human Rights Commission के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल अवश्य करता है लेकिन बर्खास्त करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है
नोट – राज्य आयोग के अध्यक्ष या सदस्य की कोई नियुक्ति समिति में किसी रिक्ति के कारण है अविधि मान्य नहीं होगी
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है या जब तक वे 70 वर्ष की आयु प्राप्त कर लें, जो भी पहले हो उनके कार्यकाल के पूरा होने के बाद, वे राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधीन आगे रोजगार के पात्र नहीं होते हैं
हालांकि, अध्यक्ष या सदस्य एक और कार्यकाल के लिए योग्य होते हैं (यदि वे 70 वर्ष की तय आयु सीमा के भीतर हों)
आयोग के कार्य ( Commission work )
मानव अधिकार अधिनियम, 1993 के संरक्षण के अनुसार; नीचे दिए गए राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य हैं
मानव अधिकार के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना जिसकी वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व प्रेरणा या न्यायालय के आदेश से करना।
न्यायालय में लंबित किसी मानव अधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना
जेलों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना
मानव अधिकारों की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशे करना
आंतकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना जिससे मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।
मानवाधिकारों से संबंधित है अंतरराष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन एवं उन को प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिश करना
मानव अधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और इसे प्रोत्साहित करना
लोगों के बीच मानवाधिकारों की जानकारी फैलाना व उनकी सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपायों के प्रति जागरुक करना
मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना
ऐसे आवश्यक कार्यों को करना, जो कि मानव अधिकारों के प्रचार व प्रोत्साहन के लिए आवश्यक हो।
आयोग के अधिकार ( Commission Rights )
आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने का अधिकार निहित है
आयोग के पास सिविल अदालत के सभी अधिकार होते हैं और इसकी कार्यवाही में एक न्यायिक प्रतिष्ठा होती है
यह राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के अधीनस्थ से जानकारी या रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कह सकता हैं।
आयोग के पास तत्समय प्रभाव के लिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी विशेषाधिकार के अधीन जो किसी भी कानून के तहत हो, पूछताछ करने का अधिकार है, सार्थक मसलों पर पूछताछ से संबन्धित मसलों पर जानकारी पेश करने का अधिकार है| इसके होने के एक वर्ष के भीतर आयोग इस मामले पर गौर कर सकता है
आयोग की शक्तियाँ ( Powers of commission )
समन जारी करने की शक्ति।
शपथ पत्र अथवा हलफ़नामे पर लिखित गवाही लेने की शक्ति।
गवाही को रिकोर्ड करने की शक्ति।
देश की विभिन्न जेलों का निरीक्षण करने की शक्ति।
Note : आयोग उन्ही मामलों में जाँच कर सकता है जिन्हें घटित हुए एक वर्ष से काम समय हुआ हो। एक वर्ष से पूर्व घटनाओं पर आयोग को कोई अधिकार नहीं है। आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को न तो दंड से सकता है ओर न ही पीड़ित को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता कर सकता है। लेकिन इसका चरित्र न्यायिक है।
अध्यक्ष व सदस्यों को हटाया जाना ( Removal of president and members )
1. अध्यक्ष एवं राज्य आयोग का कोई सदस्य अपने पद से केवल उसी दशा में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जाएगा जब वह सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता युक्त हो | इस संबंध में मामला राष्ट्रपति द्वारा जांच हेतु उच्चतम न्यायालय को निर्दिष्ट किया जाएगा उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच करने के पश्चात ही रिपोर्ट राष्ट्रपति के पास भेजी जाएगी और जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष व सदस्य के विरुद्ध दुर्व्यवहार अथवा असमर्थता पाए जाने पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा
2. उपधारा 1 में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपने आदेश द्वारा पद से हटा सकता है | जिन आधारों पर हटाएगा निम्नवत है – –
यदि वह दिवालिया हो गया हो
यदि आयोग में अपने कार्यकाल के दौरान उसने कोई लाभ का सरकारी पद धारण किया है
यदि वह दिमागी या शारीरिक तौर पर अपने दायित्व के निर्वहन के अयोग्य हो गया हो
यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तथा सक्षम न्यायालय द्वारा उसी अक्षम घोषित कर दिया गया
यदि किसी अपराध के संबंध में उसे दोषी सिद्ध किया गया है तथा उसे कारावास की सजा दी गई हो
5 वर्ष का कार्यकाल अथवा 70 वर्ष की उम्र जो भी पहले पूरी हो तक पद पर बने रह सकते है। लेकिन यंहा दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है :
यदि 70 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं हुई हो तो इस आयु तक पुनर्नियुक्त किए जा सकते है।
कार्यकाल पूर्ण होने के बाद राज्य अथवा केंद्र सरकार के अधीन कोइ पद ग्रहण नहीं कर सकते है।
Rajasthan State Human Rights
राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग देश के अग्रणी राज्य आयोगों में से एक है। इस आयोग ने अल्पावधि में ही मानव अधिकारों के संरक्षण एवं उन्नयन को बढावा देने के लिये अपने उद्देश्य में कई मील के पत्थर हासिल किये है।
राजस्थान सरकार ने 18 जनवरी 1999 को राजस्थान मानवाधिकार आयोग के गठन के सम्बंध में अधिसूचना जारी की, राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने मार्च 2000 से अपना कार्य प्रांरभ किया
गठन के समय इसमे मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधानुसार एक अध्यक्ष और चार सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान था
राजस्थान मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय जयपुर में है राजस्थान मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती ह
मानव अधिकार संरक्षण ( संशोधित ) अधिनियम, 2006 के अनुसार राज्य मानव अधिकार आयोग में एक अध्यक्ष और दो सदस्य का प्रावधान किया गया है।
राजस्थान मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष ह
प्रथम अध्यक्ष कांता भटनागर व द्वितीय सैयद अगीर अहमद थे
आयोग का मुख्य उद्देश्य ( Objective of Commission )
राज्य में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु एक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करना है। 1993 के अधिनियम के अन्तर्गत धारा 2(घ) में मानव अधिकारों को परिभाषित किया गया है और इन न्यायोचित अधिकारों को भारतीय कानून के तहत अदालती आदेश द्वारा लागू कराया जा सकता है।
राज्य मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अन्तर्गत एक स्वशाषी उच्चाधिकार प्राप्त मानव अधिकारों की निगरानी संस्था है। इसके स्वायतता हेतु आयोग के अध्यक्ष एवं नियुक्ति की प्रक्रिया इस प्रकार रखी गई है, जिससे उनके कार्य करने की स्वतंत्रता सुरक्षित रहे, साथ ही उनका कार्यकाल पूर्व में ही निश्चित कर दिया गया है
और अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत वैधानिक गारन्टी प्रदान की गई है और अधिनियम की धारा 33 के अन्तर्गत वित्तीय स्वायतता भी प्रदान की गई है। आयोग का उच्च स्तर आयोग के अध्यक्ष, सदस्य एवं अधिकारीगण के स्तर से परिलक्षित होता है। अन्य आयोगों से भिन्न, आयोग के अध्यक्ष पद पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही नियुक्त किया जा सकता है
और इसी प्रकार, आयोग सचिव राज्य सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी से कम स्तर का अधिकारी नहीं हो सकता। आयोग की अपनी एक अन्वेषण एजेन्सी है, जिसका नेतृत्व ऐसे पुलिस अधिकारी जो महानिरीक्षक पुलिस के पद से कम स्तर का नहीं हो, द्वारा किया जाता है।
राजस्थान मानवाधिकार आयोग द्वारा महत्वपूर्ण पत्रिका जारी की जाती है जिसका नाम है “मानवाधिकार संदेश” ।
पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्तियों के मानव अधिकारों का संरक्षण
गिरफ्तार व्यक्ति तब तक निर्दोष समझाया जाता है,जब तक उसे आरोपी सिद्ध न कर दिया जाए
गिरफ्तारी से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता (आईपीसी) के अनुसार प्रावधान
जब किसी संदिग्ध दोषी को गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस को गिरफ्तार करते समय आईपीसी 1973 की धारा 46 तथा 47(2) को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करनी पड़ती है। परंतु गिरफ्तार करने से पूर्व आईपीसी की धारा 50,55 और 76 के अनुसार उस व्यक्ति को पुलिस यह पूछने का अधिकार है कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है? उसका जुर्म क्या है?
आईपीसी 1973 की धारा 57 के अनुसार प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के लिए बाध्य है,क्योंकि बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के पुलिस हिरासत में रखना गैरकानूनी है।
पुलिस हिरासत में रखे लोगों के साथ मारपीट करना भारतीय दंड संहिता 1807 की धारा 330, 336 और 348 के अनुसार अपराध है।
प्रत्येक संदिग्ध एवं पीड़ित व्यक्ति को अधिकार है, कि वह आईपीसी 1973 की धारा 54 के अनुसार पुलिस द्वारा या अन्य प्रकार से आई चोटों के विषय में सरकारी डाक्टर से डॉक्टरी परीक्षण कर सकता है,ताकि वह अहिंसा को सिद्ध कर सकें।
पूछताछ संबंधी प्रावधान
पूछताछ के दौरान थर्ड डिग्री मेथड का प्रयोग करना या अत्याचार करना गैरकानूनी है,यदि पुलिस द्वारा इस संबंध में मारपीट करके कोई चोट पहुंचाई गई हो,तो वह आईपीसी की धारा 54 के अनुसार सरकारी डॉक्टर से डॉक्टरी जांच करवा सकता है, और मजिस्ट्रेट से इसकी शिकायत कर सकता है।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
0 Comments