Tribe of Rajasthan ( राजस्थान की जनजातियां )

Tribe of Rajasthan ( राजस्थान की जनजातियां )



1. Bhil, Bhil Garasia, Dholi Bhil, Dungri Bhil, Dungri Garasia, Mewasi Bhil, Rawal Bhil, Tadvi, Bhagalia, Bhilala, Pawra, Vasava, vasave.


2. Bhil Mina
3. Damor, Damaria
4. Dhanka, Tadvi, Tetaria, Valvi
5. Garasia (Excluding Rajput Garasia)
6. Kathodi, Katkari, Dhor Kathodi, Dhor Katkari, Son Kathodi, Son Katkari
7. Kokna, Kokni, Kukna
8. Koli dhor, tokre Koli, Kolcha, Kolgha
9. Mina
10. Naikda, Nayaka, Cholivala Nayaka, Kapadia Nayaka, Mota Nayaka, Nana Nayaka
11. Patelia Seharia, Sehria, Sahariya.
12. Seharia, Sehria, Sahariya.

डामोर जनजाति ( Dhamor tribe )


यह जनजाति डूंगरपुर जिले की सीमलवाड़ा पंचायत समिति के दक्षिण - पश्चिमी केन्द्र (पुनावाड़ा - डूंका आदि गाँवों में) केन्द्रित है।
डूंगरपुर के अलावा बांसवाड़ा एवं उदयपुर जिले में भी इस जनजाति के लोग रहते हैं।


डामोर जनजाति के परमार गौत्र के लोगों का मानना है कि उनकी उत्पत्ति राजपूतों वंश से हुई जबकि सिसोदिया गौत्र के डामोर अपने को चित्तौड़ राज्य के सिसोदिया वंश से मानते हैं।  राठौर, चौहान, सोलंकी, मालीवाड़ तथा बारिया आदि गौत्र के डामोर स्वयं को उच्च वर्ग का मानते हैं। 

गुजरात के चौहान एवं परमार वंश का सरदार पारिवारिक कलह से तंग आकर राजस्थान में बस गया और धीरे - धीरे उन्होंने स्थानीय डामोर से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए। ये लोग कालांतर में निम्न वर्ग के डामोर कहलाए।  गुजरात में भी भारी संख्या में अनेक गौत्रों के डामोर रहते हैं।

एक किंवदन्ती के अनुसार, डोम जाति के घर का पानी पी लेने वाले राजपूत सरदार के वंशज डामोर जनजाति में गिने गए। भीलों की अपेक्षा डामोर अपने तन की शुद्धता का विशेष महत्व रखते हैं।

इनके अन्य संस्कार व रीति रिवाज, सामाजिक व्यवस्था मीणा व भील जनजाति से काफी मिलते जुलते हैं। इस जनजाति के लोग एकल-परिवारवादी होते है। विवाह होते ही लड़के को मूल परिवार से अलग कर दिया जाता है। डामोर जनजाति की पंचायत के मुखिया को मुखीकहा जाता है।

होली के अवसर पर डामोर जनजाति द्वारा आयोजित उत्सव चाड़िया कहलाता है। इनके भाषा व रहन सहन में गुजरात का काफी प्रभाव देखने को मिलता है। ये सब खूबियां डामोर को एक अलग पहचान देती है।

सहरिया जनजाति ( Saharia tribe )


सहरिया जाति को भारत सरकार ने आदिम जनजाति समूह (पी.टी.जी) में शामिल किया है। ये लोग मुख्यत: बारां जिले की शाहाबाद व किशनगढ़पंचायत समितियों में निवास करते हैं।

सहरिया शब्द सहरा से बना है जिसका अर्थ रेगिस्तानहोता है। इनका जन्म सहारा के रेगिस्तान में हुआ माना जाता है। मुगल आक्रमणों से त्रस्त होकर ये लोग भाग गए और झूम खेती करने लगे। सहराना – इनकी बस्ती को सहराना कहते है। इस जनजाति के गांव सहरोल कहलाते हैं।

सहरिया के पच्चास गौत्र हैं। इनमें चौहान और डोडिया गोत्र राजपूत गौत्र से मिलते हैं। सहरिया जनजाति के मुखिया को कोतवाल कहा जाता हैं। सहारिया जाति के लोग स्थायी वैवाहिक जीवन को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। यद्यपि नाता प्रथा विवाहिता एवं कुंवारी दोनों मानते हैं। अतीत में नाता प्रथा के लिए स्रियों को शारीरिक दण्ड दिया जाता था, आजकल आर्थिक दंड व कोतवाल के हस्तक्षेप द्वारा मामला सुलटा लिया जाता है।

अन्य समाज में जो स्थान मुखिया व पटेल का होता है, वही स्थान सहरिया समाज में कोतवाल का होता है। सहरिया जनजाति के गुरू महर्षि वाल्मिकी है। इस जनजाति की सबसे बड़ी पंचायत चौरसिया कहलाती है, जिसका आयोजन सीता बाड़ी नामक स्थान परवाल्मिकी जी के मंदिर में होता है।

इस जाति के लोग हिन्दू त्यौहारों और देवी देवताओं से जुड़े धार्मिक उत्सव मनाते हैं, ये लोग तेजाजी को आराध्य के रूप में विशेष तौर पर मानते हैं। तेजाजी को इनका कुलदेवता माना जाता है।

तेजाजी की स्मृति में भंवरगढ़ में एक मेला लगता है जिसमें इस जनजाति के लोग बड़े ही उत्साह व श्रद्धा से भाग लेते हैं। ये लोग अपनी परम्परा के अनुसार उठकर स्रियों के साथ मिल - जुलकर नाचते गाते हैं तथा राई नृत्य का आयोजन करते हैं, होली के बाद के दिनों में ये सम्पन्न होता है।

सहरिया जनजाति की कुल देवी 'कोडिया देवी' कहलाती है। सहरिया जनजाति का सबसे बड़ा मेला 'सीताबाड़ी का मेला' है जो बारां जिले के सीताबाड़ी नामक स्थान पर वैशाख अमावस्या को भरता है। यह मेलाहाडौती आंचल का सबसे बड़ा मेला है। इस मेले कोसहरिया जनजाति का कुंभ कहते है।

इस जनजाति का एक अन्य मेला कपिल धारा का मेला है जो बारां जिले में कार्तिक पूर्णिमा को आयोजित होता है। सहरिया पुरूषों की अंगरखी को सलुका तथा इनके साफे को खफ्टा कहते हैं इनका जबकि इनकी धोतीपंछा कहलाती है। ये लोग स्थानांतरित कृषि  करते हैं। इस जनजाति में भीख मांगना वर्जित है।

सहरिया जनजाति में लड़की का जन्म शुभ माना जाता है। इस जनजाति का प्रमुख नृत्य शिकारी नृत्य है। सहरिया जनजाति राज्य की सर्वाधिक पिछड़ी जनजाति होने के कारण भारत सरकार ने राज्य की केवल इसी जनजाति को आदिम जनजाति समूह की सूची में रखा गया है।

इनके सघन गाँव देखने को मिलते हैं। ये छितरेछतरीनुमा घरों में निवास करते हैं। इनके मिट्टी, पत्थर, लकडी और घासफूस के बने घरों को टापरी कहते है। इनका एक सामूहिक घर भी होता है जहां वे पंचायत आदि का भी आयोजन करते हैं। इसे वे 'बंगला' कहते हैं।

एक ही गाँव के लोगों के घरों के समूह को इनकी भाषा में 'थोक' कहा जाता है। इसे ही अन्य जाति समूह फला भी कहते हैं। ये लोग घने जंगलों में पेड़ों पर या बल्लियों पर जो मचाननुमा झोपड़ी बनाते है, उसको टोपा (गोपना, कोरूआ) कहते है। सहरिया लोग अनाज संग्रह हेतु मिट्टी से कोठियां बनाते हैं, जिन्हें कुसिला कहते हैं। इनके आटा संग्रह करने का पात्र भडेरी कहलाता है।

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