ज्वालामुखी एक छिद्र होता है, जिससे होकर पृथ्वी के अत्यंत तप्त गर्म लावा, गैस, जल एवं चट्टानों के टुकड़ों से युक्त पदार्थ पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होते हैं जबकि ज्वालामुखीयता में पृथ्वी के आन्तरिक भाग में मैग्मा व गैंस के उत्पन्न होने से लेकर भू-पटल के नीचे व ऊपर लावा प्रकट होने तथा उसके शीतल व ठोस होने की समस्त प्रक्रियाएं शामिल की जाती हैं इसके दो रूप हैं
आभ्यान्तरिक
बाह्य
आभ्यान्तरिक क्रिया में पिघला पदार्थ (लावा) धरातल के नीचे ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है जिनमें वे बैथोलिथ, लैकोलिथ, सिल तथा डाइक प्रमुख है बाह्य क्रिया में धरातलीय प्रवाह के रूप में लावा का जमकर ठोस रूप लेना, गर्म जल के झरने और गेसर का उत्पन्न होना प्रमुख है
ज्वालामुखी शंकु के शीर्ष पर एक विदर (क्रेटर) होता है जिसका आकार कीप जैसा होता है ज्वालामुखी के शांत होने के बाद इसमें जल भर जाता है जिसे क्रेटर झील कहते हैं उत्तरी सुमात्रा की टोबा झील विश्व की विशालतम क्रेटर जिलों में से एक है भारत में महाराष्ट्र की लोनार झील क्रेटर झील का ही उदाहरण है
ज्वालामुखी के तीव्र विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग उड़ जाने या धंस से जाने से काल्डेरा का निर्माण होता है विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो है ज्वालामुखी के मैग्मा में उपस्थित सिलिका की मात्रा से ज्वालामुखी की तीव्रता निर्धारित होती है जैसे- मैग्मा में सिलिका की मात्रा अधिक होने पर ज्वालामुखी में विस्फोटक उद्गार होते हैं जब कि सिलिका की मात्रा कम होने पर प्राय: शांत ज्वालामुखी उद्गार होता है
ज्वालामुखी के प्रकार ( Types of volcano )
ज्वालामुखी के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं
मृत ज्वालामुखी ( Dead Volcano ) - इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोट प्रायः बन्द हो जाते हैं और भविष्य में भी कोई विस्फोट होने की सम्भावना नहीं होती । इसका मुख मिट्टी, लावा आदि पदार्थों से बन्द हो जाता है और मुख का गहरा क्षेत्र कालांतर में झील के रूप में बदल जाता है जिसके ऊपर पेड़-पौधे उग जाते हैं म्यांमार का पोपा मृत ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है
प्रसुप्त ज्वालामुखी ( Dormant Volcano ) - प्रसुप्त ज्वालामुखी में दीर्घकाल से उदभेदन (विस्फोट) नहीं हुआ होता, किन्तु इसकी संभावनाएं बनी रहती हैं ये जब कभी अचानक क्रियाशील हो जाते हैं तो जन-धन की अपार क्षति होती है इसके मुख से गैंसें तथा वाष्प निकला करती हैं इटली का विसुवियस ज्वालामुखी कई वर्ष तक प्रसुप्त रहने के पश्चात वर्ष 1931 में अचानक फूट पड़ा
सक्रिय ज्वालामुखी ( Active Volcano ) - सक्रिय ज्वालामुखी में प्राय: विस्फोट तथा उदभेदन होता ही रहता है इसका मुख सर्वदा खुला रहता है और समय-समय पर लावा, धुआँ तथा अन्य पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं जिससे शंकु का निर्माण होता रहता है इटली में पाया जाने वाला एटना ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है जो कि 2500 वर्षों से सक्रिय है सिसली द्वीप का स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी प्रत्येक 15 मिनट बाद फटता है इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहा जाता है
ज्वालामुखी उद्गार के कारण ( Volcanoes Reason )
ज्वालामुखी उद्गार के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
प्लेट विवर्तनिकी ( Plate tectonics )
विनाशी प्लेट किनारों के सहारे विस्फोटक प्रकार के ज्वालामुखी का उद्गार होता है जब दो प्लेट आमने-सामने सरकती हैं तो उनके आपसी टक्कर के कारण कम घनत्व वाली प्लेट नीचे चली जाती है और 100 किमी की गहराई में पहुंचकर पिघल जाती हैं एवं केंद्रीय उदभेदन के रूप में प्रकट होती हैं ऐसी ज्वालामुखी क्रिया परिप्रशांत मेखला में घटित होती हैं
रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे भी ज्वालामुखी क्रिया होती है यहां महासागरीय कटक के सहारे दो प्लेट विपरीत दिशाओं में अग्रसर होती हैं जिससे दाबमुक्ति के कारण मेंटल का भाग पिघलकर दरारी उदभेदन के रूप में प्रकट होता है
कमज़ोर भू-पटल का होना
ज्वालामुखी उद्गार के लिए कमजोर भू-भागों का होना अति आवश्यक है ज्वालामुखी का लावा कमजोर भू-भागों को ही तोड़कर धरातल पर आता है प्रशान्त महासागर के तटीय भाग, पश्चिमी द्वीप समूह और एण्डीज पर्वत क्षेत्र के ज्वालामुखी इसका प्रमाण है
भू-गर्भ मे अत्यधिक तापमान का होना यह उच्च तापमान वहां पर पाए जाने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन, रासायनिक प्रक्रमो तथा ऊपरी दबाव के कारण होता है इस प्रकार अधिक गहराई पर पदार्थ पिघल जाता है और भू-तल के कमजोर भागों को तोड़कर बाहर निकल आता है
गैंसो की उत्पत्ति
गैंसो मे जलवाष्प सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वर्षा का जल भू-तल की दरारों तथा रन्ध्रों द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भागों में पहुंच जाता है और वहां पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है समुद्र तट के निकट समुंद्री जल भी रिसकर नीचे की ओर चला जाता है और जलवाष्प बन जाता है जब जल से जलवाष्प बनती है तो उसका आयतन तथा दबाव बहुत बढ़ जाता है अतः वह भू-तल पर कोई कमजोर स्थान पाकर विस्फोट के साथ बाहर निकल आती है
ज्वालामुखी के उद्गार का वर्गीकरण ( Classification of Volcanoes )
ज्वालामुखी के उद्गार के अनुसार उनका वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है
1. दरारी उद्गार इसमें लावा एक दरार या भ्रंश के सहारे शान्त रूप से निकलता है एंव उसमें गैस की मात्रा अधिक नहीं होती है
2. केन्द्रीय उद्गार इसमें उद्गार प्रायः एक संकरी नली या द्रोणी के सहारे एक छिद्र से होता है इन्हें उद्गार में अन्तर निकलने वाले पदार्थों की विविधता एवं उद्गार अवधि के अनुसार निम्न भागों में बांटा गया है
हवाई तुल्य इनका उद्गार शान्त व लावा पतला होता है
स्ट्राम्बोली तुल्य इनका उद्गार हवाई तुल्य की तुलना में तीव्रता से होता है
वालकैनो तुल्य ये विस्फोटक व भयंकर उद्गार है
पिलियन तुल्य ये सर्वाधिक विस्फोटक भयंकर एवं विनाशकारी उद्गार है
ज्वालामुखी से निःसृत पदार्थ
ज्वालामुखी से गैस, तरल एव ठोस तीनों प्रकार के पदार्थ निकलते हैं ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाली गैसों में 60-90% अंश जलवाष्प का ही होता है जो वातावरण के संपर्क में आते ही शीतल होकर संघनित हो जाती है एवं मूसलाधार वर्षा करती है ज्वालामुखी से निकलने वाली गैंसो में प्रज्वलित गैंसे (हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइ-सल्फाइड) तथा अन्य गैंसे (हाइड्रोक्लोरिक एसिड व अमोनिया क्लोराइड) सम्मिलित है
ज्वालामुखी से निकलने वाले ठोस पदार्थों में बारीक धूलकण (टेल्क) से लेकर बड़े-बड़े टुकड़े (बम), लैपिली (मटर के दाने जैसे) होते हैं जब छोटे छोटे नुकीले शीलाखण्ड लावा से चिपककर संगठित हो जाते हैं उन्हें शंकोणाश्म कहा जाता है छोटे छोटे टुकड़ों को स्कोरिया एंव लावा के झाग से निर्मित पदार्थ को प्यूमिस कहते हैं
ज्वालामुखी स्थलाकृतियाँ ( Volcanic topography )
बाह्य स्थलाकृतियाँ ( Outer Topography )
ज्वालामुखी की बाह्य स्थलाकृतियाँ निम्न है
राख अथवा सिण्डर शंकु ज्वालामुखी निकास से बाहर हवा में उड़ा हुआ लावा शीघ्र ही ठण्डा होकर ठोस टुकड़ों में परिवर्तित हो जाता है जिसे सिण्डर कहते हैं विस्फोेटीय ज्वालामुखी द्वारा जमा की गई राख तथा अंगारों से बनने वाली शंक्वाकार आकृति को सिण्डर शंकु कहते हैं सिण्डर शंकु हवाई द्वीप में अधिक पाए जाते हैं
मिश्रित शंकु ये सबसे ऊंचे और बड़े शंकु होते हैं इनका निर्माण लावा, राख तथा अन्य ज्वालामुखी पदार्थों के बारी-बारी से जमा होने से होता है यह जमाव समानान्तर परतो में होता है इसकी ढलानों पर अन्य कई छोटे-छोटे शंकु बन जाते हैं जिन्हें परजीवी शंकु कहते हैं जापान का फ्यूजीयामा, संयुक्त राज्य अमेरिका का शास्ता, रेनियर और हुड, फिलीपाइन का मेयान, अलास्का का एजकोम्ब तथा इटली का स्ट्राम्बोली मिश्रित शंकु के मुख्य उदाहरण है
शंकुस्थ शंकु इन शंकुओं को घोसला शंकु भी कहते हैं प्राय: एक शंकु के अंदर ही एक अन्य शंकु बन जाता है ऐसे शंकुओं में विसूवियस का शंकु सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है
क्षारीय लावा शंकु अथवा लावा शील्ड पैठिक लावा में सिलिका की मात्रा कम होती है और यह अम्ल लावा की अपेक्षा अधिक तरल तथा पतला होता है यह दूर-दूर तक फैल जाता है और कम ऊंचाई तथा मन्द ढाल वाले शंकु का निर्माण करता है हवाई द्वीप का मोनालोआ शंकु इसका उत्तम उदाहरण है
लावा पठार ज्वालामुखी विस्फोट से लावा निकलने पर विस्तृत पठारो का निर्माण होता है भारत का दक्कन पठार इसका सबसे अच्छा उदाहरण है संयुक्त अमेरिका का कोलम्बिया पठार इसका एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है
ज्वालामुखी पर्वत जब ज्वालामुखी उद्गार से शंकु बहुत बड़े आकार के हो जाते हैं तो ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण होता है इस प्रकार के पर्वत इटली, जापान तथा अलास्का में पाए जाते हैं जापान का फ्यूजीयामा सबसे महत्वपूर्ण ज्वालामुखी पर्वत है
अन्तर्वेधी स्थलाकृतियाँ ( Endowment topography )
ज्वालामुखी की अन्तर्वेधी स्थलाकृतियाँ निम्न है
बैथोलिथ यह भू-पर्पटी में अत्यधिक गहराई पर निर्मित होता है एवं अनाच्छादन की प्रक्रिया के द्वारा भू-पटल पर प्रकट होता है यह ग्रेनाइट के बने पिण्ड हैं मुख्यत: ये मैग्मा भण्डार के जमे हुए भाग है
लैकोलिथ यह गुम्बदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टान है जिसका तल समतल व एक पाइपरूपी लावा वाहक नली से जुड़ा होता है ऐसी आकृति कर्नाटक के पठार में मिलती है इनमें अधिकतर चटाने अपत्रित हो चुकी हैं
डाइक इसका निर्माण तब होता है, जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के समकोण पर होता है यह दीवार की भाँति सरंचना बनाता है पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र में इसके उदाहरण मिलते हैं दक्कन ट्रैप के विकास में भी डाइक की भूमिका मानी जाती है
सिल, लैपोलिथ एंव फैकोलिथ मैग्मा जब चट्टानों के बीच में क्षैतिज तल में चादर के रूप में ठण्डा होता है तो यह सिल कहलाता है, कम मोटाई वाले जमाव को शीट कहते हैं यदि मैग्मा या लावा तश्तरी की तरह जम जाए, तो लैपोलिथ कहलाता है परंतु जब चट्टानों की मोरदार अवस्था में अपनती के ऊपर या अभिनति के तल में लावा का जमाव हो, तो फैकोलिथ कहलाता है
ज्वालामुखी का विश्व वितरण ( World distribution of volcano )
प्रशान्त महासागरीय पेटी प्रशान्त महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों पर बड़ी संख्या में ज्वालामुखी पाए जाते हैं यह एक विस्तृत पेटी है, जिसे प्रशान्त महासागर का अग्नि वलय कहते हैं इस पेटी का विस्तार पूर्वी तट पर दक्षिणी अमेरिका के हार्न अन्तरीप से लेकर उतरी अमेरिका के अलास्का तक है पश्चिमी तट पर इसका विस्तार एशिया के पूर्वी तट के साथ साथ है यहां यह पेटी क्यूराइल द्वीप समूह, जपान, फिलीपीन्स तथा पूर्वी द्वीप समूह तक फैली हुई है
मध्य महाद्वीपीय पेटी यह पेटी यूरोप तथा एशिया के मध्यवर्ती भागों में आल्पस तथा हिमालय पर्वत के साथ साथ पूर्व-पश्चिम में फैली हुई है अफ्रीकन रिफ्ट घाटी यह अफ्रीका के पूर्वी भाग में झील क्षेत्र से लाल सागर तक विस्तृत है इसका सबसे क्रियाशील ज्वालामुखी कैमरून पर्वत है तंजानिया का किलिमंजारो एक मृत ज्वालामुखी है जो रिफ्ट घाटी से बाहर स्थित है
अन्य क्षेत्र कुछ ज्वालामुखी अटलाण्टिक महासागर में भी है इस महासागर में केप वर्डे प्रमुख है आइसैलण्ड में 20 से भी अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है एजोर्स, सैण्ट हेलेना आदि अन्य ज्वालामुखी द्वीप है
ज्वालामुखी से मानव को लाभ ( Volcano benefits humans )
ज्वालामुखी से मानव को होने वाले लाभ निम्न है
● यह हमारे लिए प्राकृतिक सुरक्षा वाल्व (safety valve) के रूप में कार्य करता है यह भू-गर्भ में निर्मित उच्च दाब को बाहर निकलने में सहायता करता है ● लावा से निर्मित रेगुर या काली मृदा कपास, गेहूं, गन्ना, तम्बाकू आदि फसलों के लिए विशेष उपजाऊ होती है ● ज्वालामुखी उद्बोधन से सोना, चांदी, तांबा आदि मूल्यवान खनिज प्राप्त होते हैं ● अधिक तापमान वाली भाप को संचित कर भू-तापीय, ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है ● ज्वालामुखी प्रदेशों में गर्म जल के झरने मिलते हैं जिनसे गंधक प्राप्त होती है तथा चर्मरोग की चिकित्सा में सहायक होते हैं ● मिस्र की नील नदी शान्त ज्वालामुखी के विदर (क्रेटर) में जल भरने से निर्मित विक्टोरिया झील से निकलती है ● पृथ्वी के आन्तरिक भाग की स्थिति का ज्ञान होता है ● लावा से ग्रेनाइट (आग्नेय) चट्टानों का निर्माण होता है ● दस हज़ार धूम्र घाटी, जहां से जलवाष्प एवं जल फव्वारे की तरह निकलता रहता है, पर्यटन में सहायक है
भारत में ज्वालामुखी क्षेत्र एंव उद्गार ( Volcano area in India )
● डालमा क्षेत्र को भारत का प्राचीनतम ज्वालामुखी क्षेत्र कहा जा सकता है झारखण्ड की डालमा श्रेणी (जमशेदपुर के निकट) के नाम पर यह क्षेत्र डालमा क्षेत्र कहलाता है ● कुडप्पा एवं ग्वालियर क्षेत्रों में कुडप्पा काल में ज्वालामुखी उद्गार हुआ था ● जोधपुर के मालानी श्रेणि एंव अरावली पहाड़ी के उत्तरी छोर पर किराना पहाड़ी क्षेत्र में विन्ध्यन कल्प में उद्गार हुआ था ● राजमहल एवं असम के अबोर पहाड़ी क्षेत्र में जुरैसिक कल्प में उद्गार हुआ था ● दक्कन लावा क्षेत्र में उद्गार क्रीटेशियस काल में हुआ था
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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