श्वेत रुधिर कणिकाएं ( ल्यूकोसाइट्स) मुख्य तहत 5 प्रकार की होती हैं
कणिकाओं के आधार पर मुख्यतः यह दो प्रकार की होती है प्रथम 3 एग्रेन्यूलोसाइट्स तथा अंतिम दो ग्रेन्यूलोसाइट्स होती है
Neutrophils
Eosinophils
Basophils
Monocytes
Lymphocytes
ग्रेन्यूलोसाइट्स
1 Neutrophils - यह गोल कोशिकाएं हैं जो संख्या में सर्वाधिक 60 से 70% अर्थात 350 से 500 प्रति मिलीलीटर होती है कार्य की की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होती है इनका केंद्रक बहुरूपी होता है यह उदासीन अम्लीय तथा क्षारीय तीनों प्रकार के रंग को द्वारा रंगी जा सकती हैं
अपने पा दावों की मदद से यह बैक्टीरिया तथा अन्य पदार्थों का भक्षण करते हैं अतः इन्हें नष्ट करके शरीर की रक्षा करते हैं इस कारण इन्हें भक्त कारू या मैक्रोफेज कहते हैं इनका जीवन काल 10 से 12 घंटे होता है
2 Eosinophils - इसे एसिडोफिल्स भी कहते हैं यह 10 से 15 माइक्रोमीटर आकार के होते हैं इसमें पाचक एंजाइम पाए जाते हैं यह कल अम्लीय रंज को विशेषकर ईओसीन से रंग जाते हैं यह कुल श्वेता अणुओं का 2 से 4% होते हैं यह शरीर के प्रतिरक्षण एलर्जी तथा हाइपरसेंसटिविटी का कार्य करते हैं
परजीवी संक्रमण पर इनकी संख्या बढ़ जाती है इस रोग को ईओस्नोफीलिया कहते हैं इनका जीवन काल अलग-अलग जीवो में अलग अलग होता है इसके जीवन काल के बारे में अभी शोध कार्य चल रहा है पूर्ण ज्ञान नहीं है
3. Basophils - यह संख्या में बहुत कम लगभग 0.5 से 2% तक होते हैं इन में पाए जाने वाले करण बड़े तथा क्षारीय रंजक जैसे मैथिली ब्लू से अभीरंजित हो सकते हैं इन कणिकाओं में मास्टर कोशिकाओं द्वारा स्रावित हेपरिन हिस्टामिन एवं सेरोटोनिन होते हैं बसोफिल का जीवनकाल 8 से 12 घंटे होता है
एग्रेन्यूलोसाइट्स
4. Monocytes - यह आकार में बहुत बड़ी कोशिकाएं हैं इनका व्यास 12 से 15 माइक्रोमीटर होता है इसका केंद्रक बड़ा तथा अंडाकार होता है इसमें कोशिका द्रव्य की मात्रा अधिक होती है यह 3 से 8% तक हो सकती हैं यह बड़ी फुर्ती से बैक्टीरिया का भक्षण करती है यह उत्तक द्रव में पहुंचकर मैक्रोफेज में बदल जाती हैं
5. Lymphocytes - यह छोटी रुधिर की कणिकाएं हैं जिनका व्यास 6 से 16 माइक्रोन का होता है तथा केंद्र का अपेक्षाकृत बड़ा तथा गोल किंतु एक ओर से पिचका सा होता है यह कुल श्वेता अणुओं का 20 से 50% होती हैं यह भी दो प्रकार की होती हैं छोटी तथा बड़ी यह लिंफ नोड में बनती है इनका जीवन काल केवल कुछ दिन होता है
यह 4 दिन से अधिक या 5 दिन से अधिक जीवित नहीं रहती यह अक्सर रुधिर कोशिकाओं की दीवारों में से निकलकर संयोजी उत्तक में चले जाते हैं यह शरीर की प्रतिरक्षा क्रियाओं के लिए प्रतिरक्षी प्रोटीन अर्थात एंटीबॉडीज का निर्माण करते हैं एड्स रोग में यही कम हो जाते हैं
रक्त के मुख्य कार्य ( Main functions of blood )
कोशिका तक ऑक्सीजन पहुंचाना
शरीर ताप का नियंत्रण बनाए रखना
रोगों से रक्षा
घावो को भरना
PH मान का नियत रखना
रक्त का थक्का बनाना ( विटामिन K रक्त का थक्का बनाने में सहायक होता है )
रक्त समूह
जर्मन विद्वान लेडस्टिनर ने 1900 ई. में रुधिर के 4 वर्ग बताएं
A, B, AB, O
एक यूनिट में 450ml ब्लड होता है
Rh कारक
खोज-: 1940 में लेड स्टीनर व विनर ने की
यह एक एंटीजन है जिसको सर्वप्रथम रीसस बंदर में खोजा गया
जिनमें Rh एंटीजन होता है वह Rh+ tive तथा जिनमें Rh एंटीजन नहीं होता है उन्हें Rh-tive कहते हैं यदि Rh+ व Rh- मिल जाते हैं रक्त का थक्का बन जाता है और रक्त बह नहीं पाता तथा जीव की मृत्यु हो जाती है
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
ANNU GAHLOT, चित्रकूट त्रिपाठी श्री गंगानगर राजस्थान
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