महात्मा गांधी की जीवनी | Biography of Mahatma Gandhi
प्रथम महायुद्ध के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एवं राजनीति में अनेक गुणात्मक परिवर्तन आए महात्मा गांधी यह गुणात्मक परिवर्तन करने वाले राष्ट्रीय नेताओं में अग्रणी थे 1919 के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति तक महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन एवं राजनीति में सर्व प्रमुख नेता बने गए है।
महात्मा गांधी जी का जन्म
"बापू" के नाम से लोकप्रिय हमारे देश के राष्ट्रपिता (फादर ऑफ नेशन) महात्मा गांधी (वास्तविक नाम मोहनदास करमचंद गांधी) का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ईसवीं को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। यह स्थान गुजरात के काठियावाड़ वर्तमान सौराष्ट्र इलाके में स्थित है । उनके पिता का नाम करमचंद गांधी एवं माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी के पिता पहले पोरबंदर के और बाद में राजकोट रियासत के दीवान थे। गांधीजी के स्वभाव एवं चरित्र पर उनकी माता का व्यापक प्रभाव पड़ा एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी । उन्होंने बालक मोहन जिसे प्यार से मुनिया कहती थी के लालन पालन में पुत्र के मन पर अपने धार्मिक एवं सरल स्वभाव व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी। 13 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह कस्तूरी बाई से कर दिया गया।
महात्मा गांधी जी की शिक्षा
गांधी जी का विद्यार्थी जीवन में वे एक औसत विद्यार्थी के रूप में रहे । उनके अध्यापक ने उनकी अंक तालिका पर टिपणी लिखी थी कि "अंग्रेजी में अच्छा , गणित में ठीक ठाक, भूगोल में खराब, चाल चलन अच्छा और लिखावट अत्यंत खराब मोहनदास एक औसत विद्यार्थी हैं । " किशोरावस्था में उन्होंने छोटी-मोटी चोरियां एवं धूम्रपान भी किया था ।महात्मा गांधी जी ने 1887 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर भावनगर के कॉलेज में पढ़ने के बाद 4 सितंबर सन 1888 को 19 वर्ष की आयु में बैरिस्टरी करने कानून की शिक्षा प्राप्त करने साउथैप्टन गए कथा जून 1891 ईस्वी में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का विकास एक बैरिस्टर वकील के रुप में प्रारंभ हुआ उनके व्यक्तित्व के निर्माण में उनके सन 1893 से सन 1914 तक के दक्षिण अफ्रीका के प्रवास का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
महात्मा गांधी सन 1893 में एक भारतीय के केस के सिलसिले में पैरवी करने हेतु बैरिस्टर के रूप में पहली बार दक्षिण अफ्रीका गए। काठियावाड़ की एक फारसी व्यापारी दादा अब्दुल्ला नहीं जिसका दक्षिण अफ्रीका में बड़ा कारोबार था महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका में अपने कारोबार की वकालत में सहायता करने हेतु भेज दिया महात्मा गांधी अप्रैल 1893 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन ( पोर्ट नटाल) के लिए जहाज से रवाना हो गए।
नटाल (डरबन) पहुंचने के दो-तीन दिन बाद ही अदालत में मजिस्ट्रेट ने गांधीजी को पगड़ी उतारने को कहा। गांधी जी इस अपमान के विरुद्ध अदालत से बाहर आ गए ।इनके कुछ समय बाद ही उन्होंने प्रीटोरिया जाना पड़ा । दक्षिण अफ्रीका पहुंचकर गांधीजी ने देखा कि उस देश में भारतीयों को बड़े अपमान का जीवन बिताना पड़ता है। वहां के गोरे अंग्रेज लोग हिंदुस्तानियों एवं अफ्रीका के काले लोगों को अछूत समझते थे । सभी भारतीय वहां खुली या सामी के नाम से पुकारे जाते थे ।
वहां अश्वोतो के प्रति गौरों का दुर्व्यवहार देखकर गांधीजी बहुत दुखी हुए। उन्होंने गोरे और काले के भेदभाव को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कमर कस ली दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को पग पग पर गोरे लोगों द्वारा किए गए अपमान के घूंट पीने पड़े। प्रीटोरिया प्रवास के दौरान गांधीजी ने भारत वासियों की एक सभा आयोजित की तथा उसमें उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक भाषण दिया गांधीजी के सार्वजनिक जीवन का आरंभ किसी सभा से हुआ यहां की से सरकार की नस्लभेदी वादी रवैये और नस्ल के आधार पर अश्वेतों पर अनेक को प्रतिबंध एवं अत्याचारों ने गांधीजी के मन को उद्वेलित कर दिया।
गांधीजी ने वहां सत्याग्रह सत्य और अहिंसा पर आधारित विरोध प्रदर्शन की नीति का प्रयोग कर वहां के आश्रितों विभिन्न समुदाय के लोगों एवं भारतीयों को संगठित कर सरकारी नीतियों का व्यापक विरोध किया । वहां उन्हें कुछ सफलता भी हासिल हुई। उनके साथ इस प्रयोग में सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोग शामिल हुए दक्षिण अफ्रीका में ऐसी राजनीति प्रयोग के कारण गांधीजी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त हुई । उसके बाद दक्षिण अफ्रीका में ही दूसरी बार भी जॉहन्सबर्ग में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सवार हुए तो एक अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें सामान सहित स्टेशन पर फेंक दिया। और कहा कि भारतीयों की जगह वही पर है ।
यहा एक गौरे घोड़ी गाड़ी चालक ने भी उन्हें पीट दिया था। दैनिक जीवन में अनेक लोग अपमानित अपमान करते हैं। लेकिन कोई भी उसे आंदोलन में तब्दील नहीं करता ।लेकिन इस घटनाओं के बाद उन्होंने डरबन में रह रहे भारतीयों को संगठित करना डाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। उन्होंने ब्रिटिश प्रकार के अत्याचारों की सारी दुनिया के सामने पोल खोली।
1906 ट्रांसवाल में ही उन्होंने पहला सत्याग्रह दिया। इसे परिभाषित करते हुए कहा गया कि "यह वेदना पहुंचाने के बजाय उनको झ झेलने द्वेषहीन प्रतिरोध करने तथा हिंसक तरीके से अपने अधिकारियों के लिए लड़ने का एक तरीका है।अंततः भारी दबाव के चलते दक्षिण अफ्रीका सरकार के प्रतिनिधि जॉन क्रिश्चयन स्म्टस ने उनके साथ समझौता किया । किसी के साथ महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा समाप्त हुई
महात्मा गांधी का भारत आगमन
गांधी जी 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से एक महान विजेता के रूप में स्थाई रूप से भारत वापस आ गए। वहां किए की रचनात्मक प्रयोग व अनुभव के कारण गांधी जी के व्यक्तित्व में अनेक सकारात्मक परिवर्तनों का आविर्भाव हो चुका था। इन प्रयोगों से उन्हे भारत में भी प्रयाप्त प्रसिद्धि मिल चुकी थी। महात्मा गांधी ने भारत आने के बाद अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह से ही भारत की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने हेतु कुछ समय शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करने का निश्चय किया *
गांधी जी का भारत भ्रमण
सर्वप्रथम संपूर्ण देश का भ्रमण किया उनका आम भारतीयों की तरह रहना सहना बोलना चलना आचार विचार बोलना चलना आचार विचार सर्वधर्म समभाव एवं नैतिकता के प्रति गहरी आस्था जैसी उनकी खूबियों ने जनता के बीच उनकी गहरी पैठ बना दी गांधी जी भारत भ्रमण के प्रारंभ में रविंदनाथ टैगोर से मिलने शांति निकेतन कोलकाता गए गांधीजी को महात्मा नाम उपाधि गुरुदेव रविंदनाथ टैगोर हीं दिया गांधीजी कुछ समय गुजरात अहमदाबाद में रहे तथा उसके बाद उन्होंने 25 मई 1915 को अहमदाबाद गुजरात के निकट साबरमती नदी के पास अपना आश्रम साबरमती आश्रम स्थापित किया इसे उन्होंने सत्याग्रह आश्रम नाम दिया भारत में गांधीजी ने अपना प्रथम सार्वजनिक भाषण फरवरी 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के समारोह में दिया।
गांधीजी ने अपना राजनीतिक जीवन 1918 तक अंग्रेजों के सहयोगी के रूप में शुरू किया तथा उस समय तक उन्हें अंग्रेजों की न्याय प्रियता में पूरा विश्वास था । उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था तथा गांधी जी ने गवर्नर जनरल एवं वायसराय को अपनी सेवाएं देने का प्रस्ताव भेजा। उसी वर्ष उन्होंने भारतीय के एक "स्वैच्छिक एंबुलेंस दल" गठित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । युद्ध की पारिस्थितिक में गांधीजी ने देशवासियों से सरकार को सहयोग करने का आह्वान किया।
प्रथम विश्व युद्ध में सहयोग के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें "केसर ए हिंद" की उपाधि प्रदान की। परंतु दूसरी और महात्मा गांधी अंग्रेजों द्वारा भारतीय पर किए जा रहे स्थानीय अन्ययो के विरोध निरपेक्ष नहीं रहे । बल्कि उनका व्यापक विरोध करते रहें। भारत आगमन के बाद दूसरे वर्ष के बाद वह सक्रिय रुप से इन अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े हुए गांधीजी ने इस दौरान भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावी परिवर्तन की नीचे के स्तर के स्थानीय मुद्दों को उठाकर नीचे से राजनीतिक को सफल बना कर उसे अखिल भारतीय शुरू प्रदान करने का किया
गांधी जी द्वारा प्रारंभिक वर्षों में किए गए आंदोलन
गिरमिटिया प्रथा की समाप्ति
सर्वप्रथम कार्य अंग्रेजों उतनी वर्षों की सार्थक भारतीय मजदूरों की भर्ती करने की घृणित "गिरमिटिया प्रथा " के विरुद्ध शिक्षक आवाज उठाना तथा उसे पूरी तरह समाप्त करना था उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन के प्रारंभ से ही गरीब और शोषित मजदूरों एवं कृषको के हितों के लिए आंदोलन प्रारंभ किए
गांधीजी के तीन सफल जन आंदोलन
1. चंपारण किसान आंदोलन
आंदोलन महात्मा गांधी ने भारत में सबसे पहला एवं महत्वपूर्ण आंदोलन बिहार के चंपारण क्षेत्र में किया क्षेत्र में यूरोपीय उत्पादकों द्वारा स्थानीय किसानों का अंतहीन शोषण किया जा रहा था । चंपारण के किसानों को अपनी जमीन के तीन बटा दो(3/2) भाग जमीन में मिल प्लांटरों के लिए नील की खेती करना कानूनन अनिवार्य था । इसे ही "तीनकठिया पद्धति "भी कहते थे। नील अंग्रेज प्लांटरों द्वारा मनचाहे मूल्य पर ले ली जाती थी।
राजकुमार शुक्ल द्वारा कांग्रेस लखनऊ अधिवेशन 1917 में गांधीजी को चंपारण के किसानों की समस्याओं से अवगत कराया एवं उन्हें एक बार उनकी समस्याओं को सुनने हेतु वहां भ्रमण करने का आग्रह किया कुछ समय बाद जांच हेतु चंबल क्षेत्र में गए परंतु चंपारण के जिलाधीश अधिकारी ने उन्हें अति शीघ्र यहां से वापस चले जाने का आदेश दिया गांधी जी ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया अंततःबिहार सरकार के प्रयासों से पुणे वहां जांच करने की अनुमति मिल गई
गांधीजी ने जुलाई 1917 में एक खुली जांच बैठक एवं चंपारण के किसानों की शिकायतों को सारे देश के सम्मुख प्रस्तुत किया अंततः अंग्रेज सरकार ने सर फ्रैंक स्लाई की अध्यक्षता में एक जांच समिति जिसने गांधीजी भी एक सदस्य थे बनाई समिति ने किसानों पर हो रहे अत्याचारों एवं शोषण को सही माना और श्वेत नील प्लांटों द्वारा किसानों पर की जा रही जातियों की शिकायत को स्वीकार कर लिया फलक सरकार द्वारा चंपारण में 2 वर्षों से चली आ रही तीन कठिया पद्धति को समाप्त कर दिया गया इस प्रकार गांधी जी को भारत में अपने पहले आंदोलन में ही सफलता हाथ लग गई गांधी जी के प्रयासों से 1917 के अंत तक वहां सारा वैसी की दरों को भी घटा दिया गया था, चंपारण सत्याग्रह में राजेंद्र प्रसाद, मजहरूल हक, जे बी कृपलानी ,महादेव देसाई, रामवृक्ष भगत नेचुआ, नुग्रह नारायण सिंह एवं श्री कृष्ण सिंह गांधीजी के सहायक थे
2. अहमदाबाद के श्रमिकों का आंदोलन
अहमदाबाद 19वीं सदी के अंत में एक औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित होने लगा था 1917 ईस्वी में यहां के मिल मालिकों ने मजदूरों को दिया जा रहा है बोनस बंद करने का निर्णय लिया गया इसके विपरीत बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही थी श्रमिकों ने प्लेग बोनस समाप्त करने के एवज में उनकी मजदूरी में 50% वृद्धि करने की मांग की जबकि मालिक 20% वृद्धि पर ही राजी हुए फलत: मिल मजदूरों ने महात्मा गांधी से सहायता एवं मार्गदर्शन का आग्रह किया
फरवरी-मार्च 1918 में गांधी जी ने मिल मालिकों एवं मजदूरों के बीच मध्यस्थता करना प्रारंभ किया गांधी जी के कहने पर हड़ताल की गई परंतु शीघ्र ही स्थिति में विकट रूप धारण कर लिया फलस्वरूप गांधीजी ने भारत के स्वतंत्रा संग्राम की प्रथम ऐतिहासिक भूख हड़ताल प्रारंभ की अंततः गांधी जी के प्रयासों से मिल मालिकों मजदूरों को मजदूरी में 35% वृद्धि देने के लिए राजी हो गए इसके बाद गांधी जी ने श्रम विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने तथा श्रमिकों में चेतना उत्पन्न करने हेतु अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की स्थापना की। खेड़ा सत्याग्रह में इंदुलाल याग्निक, वल्लभ भाई पटेल, शंकरलाल बैंकट गांधीजी के सहायक थे
3. खेड़ा सत्याग्रह
स्वदेश वापसी के पश्चात महात्मा गांधी का तीसरा महत्वपूर्ण आंदोलन गुजरात के खेड़ा के क्षेत्र किसानों की समस्याओं के निपटान हेतु किया गया सत्याग्रह था खेड़ा में उस समय फसल बर्बाद होने के कारण किसान मालगुजारी देने में असमर्थ थे छोटे पाटीदारों किसानों की स्थिति समृद्धि किसानों कम भी पाटीदारों की तुलना में अधिक खराब थी साथ ही बलिया नामक निम्न जाति के खेतिहर मजदूरों की मजदूरों की भी रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुओं की बढ़ती कीमतों की वजह से त्रस्त थे
ऐसी स्थिति में खड़ा में मोहनलाल पंड्या एवं शंकर लाल पारीक ने गांधी जी को पत्र द्वारा खेड़ा आकर वहां की वास्तविक स्थिति से अवगत विनोद अवगत हेतु हेतु बुलाया गांधीजी ने मार्च 1918 में खेड़ा आंदोलन का नेतृत्व संभाला इससे पूर्व मोहनलाल पंड्या आदि स्थानीय नेता समय समय पर किसानो की समस्याओं को उठा रहे थे
जून 1918 में सरकार द्वारा कुछ रियासत अली देने के बाद यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया इस आंदोलन का क्षेत्र से मीठा खेड़ा आंदोलन से गांधी जी का प्रभाव पूरे गुजरात में फैल गया गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत एवं वैष्णव भक्ति के कारण पाटीदार किसानों ने महात्मा गांधी का सदैव समर्थन किया इस आंदोलन में इंदुलाल याज्ञनिक ने गांधीजी को पूरा सहयोग दिया। अहमदाबाद आंदोलन में अनुसूया बहन गांधीजी के सहायक थे
रोलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह एवं जलियांवाला बाग हत्याकांड
अखिल भारतीय नेता के रूप में गांधी जी की सर्वप्रथम पहचान रौलट एक्ट सत्याग्रह के समय बनी न्यायाधीश सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में बनी एडिशन कमेटी ने भारत में क्रांतिकारी घटनाओं के संबंध में अप्रैल 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें भारतीयों के लिए अत्यंत कठोर एवं उत्पादन भरे प्रावधान करने की सिफारिश की गई इस प्रावधान के प्रभाव से भर्तियों पर होने वाले अत्याचारों से फरवरी 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा रोलट 8 पास करने के बाद गांधी जी की रणनीति में परिवर्तन आया
इस कानून जीने हम काले कानून की संज्ञा दी गई है के विरोध में गांधी जी ने अखिल भारतीय स्तर का सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया गांधी जी के नेतृत्व में 30 मार्च 1919 की तिथि रोलट एक्ट के विरोध में एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन के लिए निर्धारित की गई परंतु बाद में इसे बढ़ाकर 6 अप्रैल 1919 कर दिया गया गांधी जी द्वारा वायसराय को पत्र द्वारा हड़ताल की चेतावनी दी गई राष्ट्रीय आंदोलन में हड़ताल शब्द का प्रयोग पहली बार किया गया ।
6 अप्रैल 1919 को संपूर्ण देश में हड़ताल रखी गई क्या सत्याग्रह संपूर्ण देश में पूरे जोर जोर जोर जोर से आयोजित किया जा रहा था इसी बीच 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर पंजाब में बैसाखी के दिन जनरल डायर नहीं जलियांवाला बाग में रोलट एक्ट के विरोध में आयोजित अहिंसक सभा पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर हत्या कांड को अंजाम दिया सैकड़ों लोग मारे गए हजारों घायल हो गए गांधीजी ने 18 अप्रैल को रोलट सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया सत्याग्रह का शुभ फल यह हुआ कि रोलट एक्ट के तहत सरकार द्वारा भर्तियों के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की गई एवं 3 वर्ष बाद इसे वापस ले लिया गया
असहयोग आंदोलन
गांधीजी ने कांग्रेस के कोलकाता विशेष अधिवेशन 1920 में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित करवाया तथा दिसंबर 1920 के नागपुर वार्षिक अधिवेशन में पुणे से मंजूरी दे दी गई महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जनवरी 1921 के से असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया यह महात्मा जी गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया जाने वाला पहला अखिल भारतीय स्तर पर जन आंदोलन था यहां आंदोलन निम्न मुख्य महाप्रबंधक बल देने हेतु प्रारंभ किया गया खिलाफत मुद्दा दूसरा रोलट एक्ट तीसरा पंजाब में जलियांवाला बाग एवं उसके बाद उत्पीड़ित के विरुद्ध न्याय की मांग चौथा स्वराज प्राप्ति इस आंदोलन में
विरोधात्मक पक्ष के अंतर्गत उपाधियों एवम अवैतनिक पदों का परित्याग करना सरकारी शिक्षण संस्थाओं से बच्चों को निकालना वकीलों द्वारा अंग्रेज न्यायालय का बहिष्कार विधान परिषदों के चुनाव का बहिष्कार एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि शामील थे। रचनात्मक पक्ष- में न्यायालय के स्थान पर पंच फैसला संगठन राष्ट्रीय विद्यालय एवं कॉलेजों की स्थापना स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना चरखा खादी को लोकप्रिय बनाना आदि शामिल थे।
संपूर्ण देश विशेषता पश्चिमी भारत बंगाल एवं उत्तरी भारत में असहयोग आंदोलन की अभूतपूर्व सफलता मिली। अलीगढ़ में जामिय मिलिया इस्लामिया बाद में दिल्ली में स्थांतरित एवं काशी विद्यापीठ जैसी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए वकीलों ने वकालत छोड़ दी और विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई
आंदोलन अपने चरम पर था कि अचानक उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चोरी चोरा स्थान पर 5 फरवरी 1922 को पुलिस द्वारा शांतिपूर्ण जुलूस पर गोलाबारी करने के कारण कुरूद जनता ने पुलिस थाने को घेर कर उसमें आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई आंदोलन की इस प्रकार हिंसक हो जाने के मध्य नजर रखते हुए गांधीजी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बारदोली बैठक में 12 फरवरी 1922 को इस आंदोलन को समाप्त कर लिया गांधीजी के आंदोलन को वापस लेने का निर्णय सर्वोत्तम व्यापक विरोध हुआ मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे गांधी जी की बड़ी "हिमालयन भूल" कहां।
आन्दोलन होने के बाद उसका प्रभाव गांधीजी के असहयोग आंदोलन का सबसे सफल प्रभाव था कि विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कार्यक्रम इस आंदोलन से जनमानस में अंग्रेजी सरकार की प्रति तीव्र विरोधी वातावरण बना कांग्रेस ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया खादी का प्रयोग एवं स्वदेशी का प्रचार आगामी आंदोलन का भाग बन गया कांग्रेस अब राष्ट्रव्यापी संस्था बन चुकी थी
प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन
जनवरी 1930 में गांधीजी के 11 सूत्रीय मांगपत्र को वायसराय लॉर्ड विवरण द्वारा स्वीकृत कर दिए जाने के बाद गांधीजी ने कहा कि "मैंने घुटने टेक कर रोटी मांगी थी और बदले में मुझे पत्थर मिला ।" इसके बाद गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया सभी सविनय अवज्ञा आंदोलन में मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार थे
नमक कानून का उल्लंघन करना
स्कूलों का परिचय एवं सरकारी नौकरियों से इस्तीफा
विदेशी कपड़ों की होली जलाना
स्त्रियों का शराब की दुकानों के आगे धरना देना पेंकेटिंग करना
12 मार्च 1930 में गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने हेतु अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से गुजरात तट के दांडी नामक स्थान के लिए लगभग 200 मिल (322 किलोमीटर) की पैदल यात्रा जिसे डांडी मार्च हम कहते हैं प्रारंभ किया रास्ते में हर जगह लोगों ने गांधी जी का बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया तथा लोग डांडी मार्च में शामिल होते गए
78 लोगों से प्रारंभ 30 मार्च में एक बड़ी रैली का रूप धारण कर लिया 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने दांडी समुद्र तट पर एक मुट्ठी नमक हाथ में लेकर कानून तोडा और इसके साथ संपूर्ण देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया गांधी चाहिए एवं कई बड़े कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया जुलाई 1930 तक आंदोलन देशव्यापी हो चुका था आंदोलन को कुचलने हेतु सरकार द्वारा स्थानीय स्थान पर मार्शल लॉ लगाया गया
कुछ पैक्ट महात्मा गांधी के द्वारा किए गए जो इस प्रकार से है
गांधी इरविन पैक्ट
4 मार्च 1931 को वायसराय लॉर्ड इरविन एवं महात्मा गांधी के मध्य समझौता जिसे गांधी इरविन पैक्ट कहते हैं वह गांधी जी सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने हेतु सहमत हो गए तथा दूसरे गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की ओर से भाग लेने हेतु राजी हो गए 7 सितंबर से 1 दिसंबर 1931 की अवधि में लंदन के सेंट जेम्स पैलेस में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन हुआ जिसमें कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी सम्मेलन मैं शामिल हुए
मुस्लिम लिखकर अड़ियल रवैया के कारण सम्मेलन असफल हुआ फलस्वरुप कांग्रेस कार्यसमिति ने 1 जनवरी 1932 को प्रस्ताव पारित कर सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया तथा तदनुसार सविनय अवज्ञा आंदोलन पूर्ण शुरू हुआ 4 जनवरी 1932 को महात्मा गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ।दूसरा पूना पैक्ट जिसे पूना समझौता भी कहते हैं
ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड द्वारा अगस्त 1932 में सांप्रदायिक पंचायत की घोषणा किए जाने पर गांधीजी ने इसका यह कहते हुए विरोध किया कि यह हिंदू समाज को विभाजित कर देगा इस पंचायत में अछूत वर्ग के लिए दलित वर्ग शब्द प्रयोग किया गया उन्होंने सरकार के इस निर्णय के विरोध 20 सितंबर 1932 को यरवदा जेल महाराष्ट्र में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया इस पंचायत में मुस्लिम वर्ग की तरह दलित वर्ग को भी प्रथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया
तत्पश्चात अंबेडकर एवम् गांधीजी के मध्य 24 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा जेल में पूना समझौता हुआ जिसमें दलितों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था को समाप्त करने एवं दलित वर्गों हेतु सामान्य सीटों में से कुछ सीटों को आरक्षित करने का समझौता हुआ मई 1935 में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया मई 1934 में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने औपचारिक रूप से समाप्त घोषित किया
व्यक्तिगत सत्याग्रह
भारतीय की इच्छा के विरुद्ध भारत को अंग्रेजी सरकार द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल करने के विरोध में देश में हड़ताल एवं प्रदर्शन प्रारंभ हुए गवर्नर जनरल एवं वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 में भारत की स्वतंत्रता की मांग के प्रत्युत्तर मैं कुछ प्रस्ताव रखे जीने अगस्त प्रस्ताव कहते हैं परंतु अगस्त प्रस्ताव में को कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग दोनों द्वारा ही अस्वीकार कर दिया गया उग्र सुधारवादी वह वामपंथी विचारधारा के नेता इसके विरोध में व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की पक्षधर में थे
परंतु गांधी जी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ करने पर बल दिया गांधीजी के प्रस्ताव पर 17 अक्टूबर 1940 से कांग्रेस ने प्रतीकात्मक विरोध स्वरूप व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया गया पवनार महाराष्ट्र से यह सत्याग्रह प्रारंभ किया गया व्यक्तिगत सत्याग्रह का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना ही नहीं था बल्कि बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार को पुष्ट करना था पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही विनोबा भावे एवं दूसरी सत्याग्रह जवाहरलाल नेहरु बने एवं तीसरी सत्याग्रह सत्याग्रह ब्रम्हदत्त बनेगी
इस आंदोलन में लगभग 30000 सत्याग्रह जेल गए व्यक्तिगत सत्याग्रह जनवरी 1942 तक चला जिसमें विनोबा भावे एवं एवं नेहरू के अलावा राजगोपालाचार्य सरोजिनी नायडू एवं अरुणा आसफ अली जैसे नेता भी जेल गए। गांधीजी का का महत्वपूर्ण आंदोलन जो भारत के स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण आंदोलन रहा उसकी चर्चा हम निम्न प्रकार से कर रहे हैं
भारत छोड़ो आन्दोलन
द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ होने के बाद कांग्रेस एवं सरकार में कोई समझौता न होने के कारण मन तथा कांग्रेस ने एक्ट्रेस को प्रभावित आंदोलन करने का निर्णय लिया 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति नई वर्धा में अपनी बैठक में आंदोलन प्रारंभ करने हेतु गांधीजी को अधिकृत कर दिया वर्धा बैठक में गांधीजी ने कहा कि भारतीय समस्या का हल अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने में ही है गांधीजी के इस प्रस्ताव को वर्धा प्रस्ताव कहते हैं गांधी जी ने मांग की कि अब अंग्रेजों को धीरे-धीरे भारत छोड़ देना चाहिए
8 अगस्त को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान ऑफ अगस्त क्रांति मैदान में हुई ऐतिहासिक बैठक में 9 अगस्त 1942 से भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ करने का प्रस्ताव पारित हुआ प्रस्ताव में कहा गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत भारत के लिए एवं मित्र राष्ट्रों की आदर्श के लिए अत्यंत आवश्यक है इस पर ही युद्ध का भविष्य एवं स्वतंत्रता और प्रजातंत्र की सफलता निर्भर है
गांधीजी ने इस आंदोलन में करो या मरो का नारा दिया एवं कहां की अब कांग्रेस पूर्ण स्वराज से कम किसी भी सरकारी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी सरकार ने कुछ ही घंटों में सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गांधी जी को पुनह के आगा खान महाल में कैद रखा गया कांग्रेस को गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया 9 अगस्त 1942 को समस्त देश में भारत छोड़ो आंदोलन पुरे वेग से प्रारंभ हुआ गांधीजी ने कहा कि या तो हम भारत को पूर्ण स्वतंत्र कर आएंगे या फिर इस प्रयास में मर मिटेंगे मुस्लिम लीग व कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आंदोलन का बहिष्कार किया
डॉक्टर अंबेडकर ने इस आंदोलन को अनु उत्तरदायित्वों पूर्ण कार्य बताया यहां आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया गया सबसे महान प्रयास था भारत छोड़ो आंदोलन के बाद इस प्रकार का कोई व्रत स्तर पर जन आंदोलन नहीं छेड़ा गया परंतु धीरे-धीरे की गई राजनीतिक कार्य भाइयों एवं प्रयासों से ही अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ जिसमें महात्मा गांधी के निस्वार्थ एवं अविस्मरणीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकागांधीजी के कुछ ऐसे पहलू जो उनको एक महान व्यक्तित्व के रूप में करते हैं और वह इस प्रकार हैं
महात्मा गांधी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए जो प्रयास किए थे अद्वितीय थे उनके द्वारा कांग्रेस के राष्ट्रीय आंदोलन को जो छोटे वर्ग तक सीमित था जन-जन तक पहुंचाया गया तथा देश का बच्चा-बच्चा देश की स्वतंत्रता के यज्ञ में मौजूद होने के लिए तत्पर हो गया गांधीजी जननायक थे । वे महान चिंतक सत्य के अनुयाई, दरिद्रनारायण के सेवक ,हरिजन सेवक, अहिंसा के व्यावहारिक अनुयाई एवं मानवीय मूल्यों के महान संस्थापक थे
महात्मा गांधी ने सत्याग्रह एवं अहिंसा को व्यावहारिक जीवन में प्रयोग कर देश को स्वतंत्रता दिलाई उन्होंने राष्ट्रीय जनमानस को आंदोलन हेतु उद्वेलित किया सरकार के प्रति जन जन में विरोधी भावनाओं को जाग्रत किया तथा अन्य के विरुद्ध संघर्ष की भावना पैदा कि गांधीजी ने खादी के प्रयोग एवं स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया
ताकि ताकी हमारे देश की कुटीर उद्योग धंधे पुनः पनप सके एवं लोगों की आर्थिक स्थिति सुधर सके उन्होंने देश में बढ़ रही सांप्रदायिकता को समाप्त करने हेतु अथक प्रयत्न किए तथा हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने हेतु 1919 में प्रारंभ खिलाफत आंदोलन को पूरा समर्थन दिया
गांधीजी ने सदैव अपनी विचारधारा में निर्धन लोगों एवं किसानों को महत्वपूर्ण स्थान दिया तथा उनके उद्धार हेतु उन्होंने ग्रामीण पुनर्निर्माण कार्यक्रम पर बल दिया ग्रामीणों के आर्थिक स्वालंबन हेतु महात्मा गांधी ने चरखा खादी अधिकार पुरजोर वकालत की उन्होंने किसानों एवं जमीदारों को आपसी संबंध स्थापित बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने हेतु प्रोत्साहित किया
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सैनिक के रूप में महात्मा गांधी का योगदान अविस्मरणीय रहा उन्होंने राजनीतिक लक्ष्य के लिए के नैतिक साधनों का प्रयोग किया महात्मा गांधी की सबसे बड़ी देर यह है कि उन्होंने भारत के लोगों के दिलों से सरकार एवं नौकरशाही का भय दूर कर दिया गांधीजी ने सैकड़ों वर्षो की दासता के कारण डरपोक बन चुके भर्तियों के मन से दास्तां को भावनाओं को समाप्त किया उन्होंने लोगों के मन से भय निकाल दिया तथा लोगों को मन में आत्मविश्वास आत्म सम्मान एवं लड़ने की इच्छा उत्पन्न की जिसे लोगों ने निडर होकर आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया,
गांधी जी ने देश में समाज सुधार का महत्त्व कार्य भी किया उन्होंने हिंदू धर्म को कट्टरता एवं अंधविश्वास से दूर रखने का भरकस प्रयत्न किया वह ऐसे समाज के निर्माण हेतू प्रयत्नशील करेंगे जिसमे जातिवाद और अस्पृश्यता का नामोनिशान तक ना हो एवं जिसमें लोगों के हृदय में क्षमता की भावना हो उनके कार्य एवं उद्देश्य से जनता में धर्म निरपेक्षता एवं राष्ट्रवाद पोनप्पाएवं जातिवाद व सांप्रदायिकता कम हुई।
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी
कहते हैं की मजबूरी का नाम महात्मा गांधी लेकिन अधिकांश लोग इसका अर्थ नहीं जानते हैं हम भारतीय परिवार साथ लेकर चलता है और शांतिप्रिय से हैं किसी से लड़ते समय यह गुण किसी काम की कमजोरी ही कहे जाएंगे लेकिन महात्मा गांधी ने इस कमजोरी को भी शक्ति से शक्ति में तब्दील कर दिया उन्होंने स्वदेशी का नारा बुलंद किया अहिंसा असहयोग और सत्याग्रह के बल पर उन्होंने वह कर दिखाया जो इससे पहले ही दुनिया में कहीं घटित नहीं हुआ था
सम्राट अशोक ने भी एक लाख लोगों के रक्त पात के बाद दुनिया को शांति का संदेश दिया था महात्मा गांधी ने शादी के साथ साधन की पवित्रता पर भी जोर दिया और जो कहा उस पर अमल करके दिखाया उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था वह सच्ची धार्मिक थे लेकिन शादी सांप्रदायिकता के भी घोर विरोधी थे। गांधी जी का अंतिम समय 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना के लिए जाते समय एक हिंदू कट्टरवादी नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी।30 जनवरी को शहीद दिवस के रुप में मनाते हैं।
महात्मा गांधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं
भरतीय संसद में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उनके योगदान को स्मरण करते हुए 24 दिसंबर 1969 को प्रस्ताव पास किया कि "यह सदन महात्मा गांधी की शताब्दी के अवसर पर अपने आधार पूर्ण श्रद्धांजलि राष्ट्रपिता के प्रति अर्पित करता है जिन्होंने अहिंसात्मक तरीकों से देश को स्वतंत्रता दिलाईजिन्होंने जनता में एक नई स्फूर्ति फूंक दी जिन्होंने करोड़ों पीड़ित एवं पददलित लोगों को ऊपर उठाया जिन्होंने लोगों में सेवा एवं समर्पित की भावना जगाए तथा अपनी अनंत कृतज्ञता को उस अहिंसा की मूर्ति के प्रति अभी लिखित रुप से प्रकट करता है।"
महात्मा गांधी को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शताब्दी का महानतम व्यक्ति घोषित कियाहै लंदन के मुख्य मार्ग का नामांकरण भी महात्मा गांधी के नाम पर किया गया वर्ष 2008 में उनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी, इस प्रकार इस जीवन की गाथा को पढ़कर आपका अभिमान भी गर्व महसूस कर रहा होगा क्योंकि महात्मा गांधी वह एकमात्र व्यक्तित्व व्यक्ति थे उन्होंने पूरी दुनिया में सत्य कथा अहिंसा के मार्ग पर चलकरअपने व्यक्तित्व का डंका बजाया था
वचन एवं नारे - करो या मरो हे राम_भारत छोड़ो_ महात्मा गांधी द्वारा लिखित पत्र पत्रिकाएं एवं पुस्तकें - यंग इंडिया, हरिजन नवजीवन, हिंदू स्वराज, माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ
उपाधिया
महात्मा गांधी जी को महात्मा रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा जबकि रविंद्र नाथ टैगोर को गुरुदेव महात्मा गांधी ने कहा
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3 Comments
Yajuvendra khemlani
1 year ago - ReplyGreat writing. Thanks for recall everything about bapu.
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1 year ago - Reply[…] 31- महात्मा गांधी के जीवन की भीख मांगने बाबा साहब के पास […]
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2 years ago - Reply[…] महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर जी […]