शरीर के तंत्र | Organ System in Hindi

आपकी बेहतरीन तैयारी के लिए यहाँ हमने भविष्य में होने वाली परीक्षाओं (UPSC, SSC, RPSC, UPPSSC, MPPSC, RAS, Police, Patwari, Indian Navy, Air Force, CDS, NDA, BSF, Railway, RRB NTPC, Group D, Banking, Army Group C, LDC Clerk, KVS, DSSSB, REET, PTET, CTET, HTET, Lekhpal, Forest Guard and all other exams) को ध्यान में रखते हुए शरीर के तंत्र (Body Mechanism) से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियों को सम्मिलित किया है, सभी परीक्षाओं में इनसे संबंधित 2-3 प्रश्न अवश्य पूछे जाते हैं, इसलिएआप इसे ध्यान से पढ़कर अच्छे अंक प्राप्त करके अपना एग्जाम क्लियर कर सकते है

शरीर के तंत्र (Systems of Body)


प्रत्येक कार्य के लिए कई अंग मिलकर एक तंत्र बनाते हैं जैसे भोजन के पाचन के लिए पाचनतंत्र (Digestive system), श्वसन के लिए श्वसन तंत्र आदि। शरीर के अंगों को उनकी क्रियाओं के अनुसार कुछ प्रमुख तंत्रों में निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया गया है-

रक्त के विभिन्न अवयव



  1. प्लाज्मा- यह हल्के पीले रंग का रक्त का तरल भाग होता है, जिसमें 90 फीसदी जल, 8 फीसदी प्रोटीन तथा 1 फीसदी लवण होता है।

  2. लाल रक्त कण- यह गोलाकार,केन्द्रक रहित और हीमोग्लोबिन से युक्त होता है। इसका मुख्य कार्य ऑक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड का संवहन करना है। इसका जीवनकाल 120 दिनों का होता है।

  3. श्वेत रक्त कण- इसमें हीमोग्लोबिन का अभाव पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य शरीर की रोगाणुओं से रक्षा के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना होता है। इनका जीवनकाल 24 से 30 घंटे का होता है।

  4. प्लेट्लेट्स- ये रक्त कोशिकाएं केद्रक रहित एवं अनिश्चित आकार की होती हैं। इनका मुख्य कार्य रक्त को जमने में मदद देना होता है।


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रक्त का कार्य-


रक्त का कार्य ऑक्सीजन को फेफड़े से लेकर कोशिकाओं तक तथा कोशिकाओं से कार्बन डाईऑक्साइड को लेकर फेफड़ों तक पहुँचाना होता है। रक्त शरीर के तापक्रम को संतुलित बनाये रखता है। रक्त शरीर में उत्पन्न अपशिष्ट व हानिकारक पदार्र्थों को एकत्रित करके मूत्र तथा पसीने के रूप में शरीर से बाहर पहुँचाने में मदद करता है।रक्त समूह- रक्त समूह की खोज लैंडस्टीनर ने की थी। रक्त चार प्रकार के होते हैं- A, B, AB और O।(1) रक्त समूह AB सर्व प्राप्तकर्ता वर्ग होता है, अर्थात वह किसी भी व्यक्ति का रक्त ग्रहण कर सकता है।(2) रक्त समूह O सर्वदाता वर्ग होता है। अर्थात वह किसी भी रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्तदान कर सकता है। किंतु वह सिर्फ O समूह वाले व्यक्ति से ही रक्त प्राप्त कर सकता है।

पाचन तंत्र ( Digestive system )


पाचन तंत्र में मुख, ग्रासनली, आमाशय, पक्वाशय, यकृत, छोटी आँत, बड़ी आँत इत्यादि होते हैं। पाचन तंत्र में भोजन के पचने की क्रिया होती है। भोजन में हम मुख्य रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइ़ड़्रेट और वसा लेते हैं। इनका पाचन पाचन तंत्र में उपस्थिति एन्जाइम व अम्ल के द्वारा होता है।

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श्वसन तंत्र (Respiratory system)-


श्वसन तंत्र में नासा कोटर कंठ, श्वासनली, श्वसनी, फेंफड़े आते हैं। सांस के माध्यम से शरीर के प्रत्येक भाग में ऑक्सीजन पहुँचता है तथा कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलती है। रक्त श्वसन तंत्र में में सहायता करता है। शिराएं अशुद्ध रक्त का वहन करती हैं और धमनी शुद्ध रक्त विभिन्न अंगों में पहुँचाती है।

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उत्सर्जन तंत्र (Excretory system) -


उत्सर्जन तंत्र में मलाशय, फुफ्फुस, यकृत, त्वचा तथा वृक्क होते हैं। शारीरिक क्रिया में उत्पन्न उत्कृष्टï पदार्थ और आहार का बिना पचा हुआ भाग उत्सर्जन तंत्र द्वारा शरीर के बाहर निकलते रहते हैं। मानव शरीर में जो पथरी बनती है वह सामान्यत: कैल्शियम ऑक्सलेट से बनती है। फुफ्फुस द्वारा हानिकारक गैसें निकलती हैं। त्वचा के द्वारा पसीने की ग्रंथियों से पानी तथा लवणों का विसर्जन होता है। किडनी में मूत्र का निर्माण होता है।

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परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)-


शरीर के विभिन्न भागों में रक्त का विनिमय परिसंचरण तंत्र के द्वारा होता है। रक्त परिसंचरण तंत्र में हृदय, रक्तवाहिनियां नलियां (Blood vessels), धमनी (Artery), शिराएँ (veins), केशिकाएँ (capillaries) आदि सम्मिलित हैं। हृदय में रक्त का शुद्धीकरण होता है। हृदय की धड़कन से रक्त का संचरण होता है। रक्त संचरण की खोज सन 628 में विलियम हार्वे ने किया था। सामान्य व्यक्ति में एक मिनट में 72 बार हृदय में धकडऩ होती है।

अंत:स्रावी तंत्र (Endorcine system)-


शरीर के विभिन्न भागों में उपस्थित नलिका विहीन ग्रंथियों को अंत:स्रावी तंत्र कहते हैं। इनमें हार्मोन बनते हैं और शरीर की सभी रासायनिक क्रियाओं का नियंत्रण इन्हीं हार्मोनों द्वारा होता है। उदाहरण- अवटु ग्रंथि (thyroid gland), अग्न्याशय (Pancreas), पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland), अधिवृक्क (Adrenal gland) इत्यादि। पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि भी कहते हैं। यह परावटु ग्रंथि को छोड़कर अन्य ग्रंथियों को नियंत्रित करती है।

कंकाल तंत्र (Skeletal System)-


मानव शरीर कुल 206 हड्डिïयों से मिलकर बना है। हड्डिïयों से बने ढांचे को कंकाल-तंत्र कहते हैं। हड्डिïयां आपस में संधियों से जुड़ी रहती हैं। सिर की हड़्डी को को कपाल गुहा कहते हैं।

लसीका तंत्र (Lymphatic System)


लसीका ग्रंथियाँ विषैले तथा हानिकारक पदार्थों को नष्टï कर देती हैं और शुद्ध रक्त में मिलने से रोकती हैं। लसीका तंत्र छोटी-छोटी पतली वाहिकाओं का जाल होता है। लिम्फोसाइट्स ग्रंथियां विषैले तथा हानिकारक पदार्र्थों को नष्ट कर देती हैं और शुद्ध रक्त को मिलने से रोकती है।

त्वचीय तंत्र (Cutaneous System)-


शरीर की रक्षा के लिए सम्पूर्ण शरीर त्वचा से ढंका रहता है। त्वचा का बाहरी भाग स्तरित उपकला (Stratified epithelium) के कड़े स्तरों से बना होता है। बाह्म संवेदनाओं को अनुभव करने के लिए तंत्रिका के स्पर्शकण होते हैं।

पेशी तंत्र (Muscular System)


पेशियाँ त्वचा के नीचे होती हैं। सम्पूर्ण मानव शरीर में 500 से अधिक पेशियाँ होती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं। ऐच्छिक पेशियाँ मनुष्य के इच्छानुसार संकुचित हो जाती हैं। अनैच्छिक पेशियों का संकुचन मनुष्य की इच्छा द्वारा नियंत्रित नहीं होता है।

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तंत्रिका तंत्र (Nervous System)-


तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों एवं सम्पूर्ण जीव की क्रियाओं का नियंत्रण करता है। पेशी संकुचन, ग्रंथि स्राव, हृदय कार्य, उपापचय तथा जीव में निरंतर घटने वाली अनेक क्रियाओं का नियंत्रण तंत्रिका तंत्र करता है। इसमें मस्तिष्क, मेरू रज्जु और तंत्रिकाएँ आती हैं।प्रजनन तंत्र- सभी जीवों में अपने ही जैसी संतान उत्पन्न करने का गुण होता है। पुरुष और स्त्री का प्रजनन तंत्र भिन्न-भिन्न अंगों से मिलकर बना होता है।

विशिष्ट ज्ञानेन्द्रिय तंत्र (Special Organ System)-


देखने के लिए आँखें, सुनने के लिए कान, सूँघने के लिए नाक, स्वाद के लिए जीभ तथा संवेदना के लिए त्वचा ज्ञानेन्द्रियों का काम करती हैं। इनका सम्बंध मस्तिष्क से बना रहता है।

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