साहित्य समाज का दर्पण है जिंदगी के हर पक्षों पर अर्पण है। कुछ अनसुलझे पहलुओं के राज़ खोलता है। समाज में जो देखता है, वही बोलता है।
जो साहित्य मनुष्य को उसकी समस्त आशा-आकांक्षाओं के साथ उसकी सभी सफलताओं और दुर्बलताओं के साथ हमारे सामने प्रत्यक्ष ले आकर खड़ा कर देता है, वही महान् साहित्य है। - डॉ. हजारीप्रसादद्विवेदी
प्रस्तावना
साहित्य समाज का दर्पण है क्योंकि किसी देश की स्थिति कैसी है, यह वहां के साहित्य से पता चलती है। जिस प्रकार देश में प्रचलित गीत कविताएं, दोहे, शायरी आदि में समाज प्रकृति की मानवीय झलक देखने को मिलती है।
वैसे ही….. ऐ मेरे वतन के लोगों गीत से लेकर ........बारिश की जाए तक के गीतों में साहित्य को गीत के माध्यम से प्रकट किया गया है। कविता लेखन साहित्य को समाज से जोड़कर अपने अनुभव व्यक्त करते हैं।
साहित्यकाअर्थ
साहित्य में प्राणी के हित की भावना निहित होती है। साहित्य द्वारा साहित्यकार अपने भावों को विचारों को समाज में प्रसारित करता है।
मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य को - "जीवन की आलोचना बताया है।
"आंग्ल विद्वान मैथ्यू अर्नाल्ड ने भी "साहित्य को आलोचना" माना है।
Poetry is the brain of humanity अर्थात साहित्य मानवता का मस्तिष्क है।
पाश्चात्य विद्वान वर्सफिल्ड ने कहा है- Literature is the brain of humanity. अर्थात "साहित्य मानवता का मस्तिष्क है।"
साहित्यकारकामहत्व
कवि व लेखक समाज के मस्तिष्क भी है और मुख भी। साहित्यकार समाज के भाव को व्यक्त कर सजीव व शक्तिशाली बना देते हैं।
सामाजिकपरिवर्तनऔरसाहित्य
साहित्य और समाज के अटूट संबंध को हम विश्व इतिहास के पृष्ठों पर पढ़ते हैं।
फ्रांस की राज्य क्रांति के जन्मदाता वहां के साहित्यकार रूसो और वाल्टेयर हैं।
इटली में मैजिन के लेखों ने देश को प्रगति की ओर अग्रसर किया।
हमारे देश में प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में भारतीय ग्रामों की व्यथा- कथा को मार्मिक रूप से व्यक्त किया।
बिहारी ने तो मात्र 1 दोहे से राजा जयसिंह को राज़कार्य की ओर प्रेरित कर दिया था।
साहित्य की विजय शाश्वत होती है और शस्त्र की विजय क्षणिक। हिंदी को आगे बढ़ाना है। उन्नति की राह ले जाना है, केवल 1 दिन ही नहीं हमने नित्य हिंदी दिवस मनाना है। साहित्य का लक्ष्य सीमित नहीं विस्तृत है। कवि, लेखक, गायक आदि गीत- काव्य के माध्यम से साहित्य का दर्पण प्रस्तुत करते है।
उपसंहार
अंत में कह सकते हैं कि समाज और साहित्य में आत्मा और शरीर जैसा संबंध हैं। समाज और साहित्य को एक दूसरे के पूरक हैं इन्हें एक -दूसरे से अलग करना संभव नहीं है। अतः साहित्यकार सामाजिक कल्याण को ही अपना लक्ष्य बनाकर साहित्य का सृजन करते रहै।
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